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जनादेश कुछ भी हो, राज हम ही करेंगे नहीं तो ….

जनादेश कुछ भी हो, राज हम ही करेंगे नहीं तो ....

जनादेश कुछ भी हो, राज हम ही करेंगे नहीं तो ....

कल राहुल गांधी ने स्पष्ट रूप से कहा कि राज एक ही विचारधारा करेगी। यदि दूसरी विचारधारा (संघ, भाजपा वाली) सत्ता और तंत्र में घुसेंगे तो ये काम (उत्पात) भी होता रहेगा। वैसे राहुल गांधी वही व्यक्ति हैं जो कई बार देश में आग लगने की बात कर चुके हैं। NEET परीक्षा प्रकरण में राहुल गांधी ने खुलकर ऐसा नहीं बोला लेकिन नपे-तुले शब्दों में बोलते हुये फिर से यही बताया है, समझना तो आवश्यक है।

जनादेश कुछ भी हो, राज हम ही करेंगे नहीं तो ….

हम पहले राहुल गांधी के कुछ दिन पहले के एक वक्तव्य को लेंगे, वैसे इनके ये बोल या मिलते-जुलते बोल विदेशों तक भी सुने गये हैं। कुछ दिनों पहले राहुल गांधी ने कहा था : “मैं सच बोलता हूँ और मेरी बात आप अच्छी तरह सुन लो। अगर हिंदुस्तान में मैच फिक्सिंग का चुनाव BJP जीते और उसके बाद संविधान को उन्होंने बदला तो इस पूरे देश में आग लगने जा रही है। तो मैंने कहा याद रखो ये देश नहीं बचेगा।”

अगर BJP जीती तो … पूरे देश में आग लगने जा रही है … याद रखो ये देश नहीं बचेगा। क्या ये वक्तव्य मतदाता और देश को खुल्लम-खुल्ला धमकी नहीं थी ? संविधान बदलने संबंधी वक्तव्य मात्र एक बहाना ही था, संसद को संविधान बदलने का अधिकार होता है और जब कांग्रेस जीतती थी तब अनेकों बाद बदल चुकी है।

इससे पूर्व भी राहुल गांधी का एक और वक्तव्य आया था जिसमें उन्होंने देश में किरोसिन छिड़के होने की बात कही थी और मात्र तिली लगाने की देर है यह भी बताया था। अब हम राहुल गांधी के नये वक्तव्य को समझेंगे जो NEET परीक्षा प्रकरण में आया है। समझने का तात्पर्य पूर्व पृष्ठभूमि के आलोक में भावार्थ समझने से है, शब्दार्थ समझने मात्र से नहीं।

राहुल गांधी के बिगड़े बोल या बताता है कुछ और …

लोकसभा चुनाव आरंभ होने से पूर्व ही देश में सब कुछ ठीक है ऐसा नहीं लग रहा है। ईमेल बम, अप्रत्याशित अग्निकांड, विभिन्न राज्यों में अलग-अलग उपद्रव, NEET परीक्षा को लेकर हंगामा इत्यादि होते देखे जा रहे हैं। राहुल गांधी ने NEET परीक्षा प्रकरण में भी वक्तव्य दिया है लेकिन एक नया विषय आयुषी पटेल का भी आया जिसमें आरोप ही झूठा सिद्ध हो गया।

हिंदुस्तान में नॉन स्टॉप पेपर लीक हो रहे हैं और आज आप सबको मालूम है कि NEET पेपर एंड UGC NET के जो पेपर है वो लीक हुये हैं और एक कैंसिल भी हुआ है। किसी न किसी कारण जो हिंदुस्तान में पेपर लीक हो रहे हैं उसको नरेंद्र मोदी रोक नहीं पा रहे या रोकना ही नहीं चाहते। एजुकेशन सिस्टम को BJP के लोगों ने उनके पैरेंट ऑर्गनाइजेशन ने कैप्चर कर रखा है। अगर आप मैरिट के बेसिस पर लोगों को नहीं जॉब देंगे, अगर आप आइडियोलॉजिकल लोगों को व्हाईस चांसलर बनायेंगे, इनकैपेबल को व्हाईस चांसलर बनायेंगे …. एक्जाम लेने के स्ट्रक्चर हैं, उनमें आप आइडियोलॉजिकल लोगों को डालेंगे तो ये काम होगा।

पेपर लीक की चिंता : सबसे पहली बात पेपर लीक की करें तो पेपर लीक के मामले राजस्थान में 5 सालों के कांग्रेस शासन काल में हुआ था। तब तो तनिक भी चिंता नहीं हुई थी, एक बार भी वक्तव्य नहीं आया था। अर्थात पेपर लीक की चिंता राहुल गांधी जी को है यह भ्रम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।

राजस्थान की कांग्रेसी सरकार के 5 साल के शासनकाल के दौरान पेपरलीक की 20 से अधिक घटनायें होने के बाद एक पूर्व कांग्रेसी मंत्री और तत्कालीन मुख्यमंत्री गहलोत का करीबी पकड़ा गया था। लेकिन राहुल गांधी तब 5 साल तक गूंगा बना रहे थे।

यदि दूसरे सहयोगी सपा की बात करें तो सपा के शासन काल में अनिल कुमार यादव को UPSC का अध्यक्ष बनाया गया था और कठोर टिप्पणी के साथ इलाहबाद उच्च न्यायालय ने अपदस्थ किया था, और सपा सरकार जब सर्वोच्च न्यायालय गयी थी तो सर्वोच्च न्यायालय ने भी कठोर टिप्पणि के साथ याचिका को निरस्त कर दिया था।

इस प्रकार शिक्षा व्यवस्था, जनहित, देशहित आदि के प्रति इन लोगों की सजगता जगजाहिर है।

तंत्र पर अधिकार करना

दूसरा तथ्य है तंत्र पर अधिकार करना, कई दशकों से देश के पूरे तंत्र पर एक विशेष विचारधारा का एकाधिकार रहा है और वो विचारधारा इसे अपना बपौती मानते हैं। द कश्मीर फाइल फिल्म की जो एक चर्चित पंक्ति है वो है सरकार भले ही उनकी हो सिस्टम तो हमारा ही है। संभवतः राहुल गांधी का संकेत उसी तथ्य पर है कि सरकार भले ही आपकी बन गयी हो किन्तु तंत्र में हमारे लोग ही हैं और रहने चाहिये ये उनका एकाधिकार है। राष्ट्रवादी विचारधारा के लोगों को तंत्र में स्थान नहीं दिया जायेगा। और यदि देंगे तो …. ये काम होगा।

तो ये काम (पेपर लीक, उपद्रव आदि) होगा

आइडियोलॉजिकल लोगों (राष्ट्रवादी विचारधारा के लोग) को डालेंगे तो ये काम (पेपर लीक, उपद्रव आदि) होगा।

ये खुल्लमखुल्ला धमकी नहीं है तो क्या है ?

गंभीर प्रश्न

संवैधानिक रूप से ऐसा कुछ भी नहीं है, इसी को अर्बन नक्सल कहा जाता है। “सरकार भले ही उनकी हो, सिस्टम तो हमारा ही है” को सत्यार्थ करता है।

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