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राष्ट्रपति का अभिभाषण वास्तविकता का चित्रांकन

राष्ट्रपति का अभिभाषण वास्तविकता का चित्रांकन

राष्ट्रपति का अभिभाषण वास्तविकता का चित्रांकन

अठारहवीं लोकसभा चुनाव के बाद नई संसद में संयुक्त सत्र को सम्बोधित करते हुये राष्ट्रपति का अभिभाषण भी नये प्रकार का था। एक समय ऐसा था जब वास्तविकता जानते हुये भी उसे प्रकट नहीं किया जाता था अर्थात छुपाने का प्रयास न हो तो भी प्रकट करने से बचा जाता था। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि राष्ट्रपति के अभिभाषण में देश की वर्त्तमान स्थिति का वास्तविक चित्रांकन किया गया।

राष्ट्रपति का अभिभाषण वास्तविकता का चित्रांकन

राष्ट्रपति के अभिभाषण में कई महत्वपूर्ण बातें हैं जिनपर विस्तृत चर्चा आने वाले दिनों में देखने को मिलेगी। राष्ट्रपति के अभिभाषण के प्रमुख बिंदुओं को इस प्रकार गिनाया जा सकता है :

विकास के साथ विरासत पर भी काम : विकास के साथ विरासत की चर्चा करने का तात्पर्य है कि जितना आवश्यक विकास है उतना ही आवश्यक विरासत का संरक्षण भी है। कुछ वर्षों पहले तक देश की राजनीति ऐसी बना दी गयी थी जिसमें विरासत के नाम पर ताजमहल जाना जाता था; काशी, उज्जैन, अयोध्या, मथुरा आदि को सांप्रदायिक सिद्ध कर दिया गया था। देश की विरासत वेद, पुराण, उपनिषद, रामायण, महाभारत, गीता आदि को अभी भी सांप्रदायिक कहा जा सकता है जबकि ये विरासत में मिली है।

विरासत उतना ही आवश्यक है जितना कि विकास ये अर्द्धसत्य ही है पूर्ण सत्य है यदि विकास और विरासत दोनों में से किसी एक को चुनने का अवसर मिले तो विरासत को ही चुनना चाहिये। विकास के साथ विरासत नहीं, विरासत के साथ विकास की बात होनी चाहिये। किन्तु कुछ वर्षों पूर्व तक देश दोनों शब्दों की चर्चा भी संभव नहीं थी, विकास तो यदा-कदा मिलता भी था लेकिन विरासत को मिटाने का ही प्रयास किया जा रहा था। ये बहुत बड़ी बात है कि विकास के साथ ही सही किन्तु विरासत की चर्चा तो आरंभ हुई।

आज का समय भारत के अनुकूल : ये भी एक बड़ी बात है जो देश के सभी लोगों को पता है कुछ लोग अनुकूलता का लाभ लेने के लिये प्रयास कर रहे हैं किन्तु कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अनुकूलता को भंग करने के प्रयास में निरंतर जुटे रहते हैं। भारत के अनुकूल है का तात्पर्य चहुमुंखी विकास के अनुकूल है।

भारत को इस अवसर का लाभ उठाने की आवश्यकता है चूकने की नहीं। अवसर जब कभी मिले उसका एक नियम है उसे लपक कर पकड़ लेना चाहिये, अवसर चूकने का तात्पर्य अवसर को खोना होता है और अवसर खोना ही सबसे बड़ी हानि होती है।

संविधान पर कई बार हमले हुये, आपातकाल संविधान पर सबसे बड़ा प्रहार : कुछ वर्षों से संविधान-संविधान बहुत चिल्लाया जा रहा है और अबकी चुनाव में जो राग लगी वो लोकसभा में शपथग्रहण तक देखी गयी। सबसे बड़ी बात है कि संविधान का राग कौन लगा रहे हैं ? ये वही लोग हैं जिन्होंने संविधान पर प्रहार करते रहते हैं। देश के संविधान पर अनेकों बार प्रहार हुये हैं और सबसे बड़ा प्रहार आपातकाल लगाना था। राष्ट्रपति के वक्तव्य का विशेष महत्व होता है, अब यह विषय विशेष रूप जन सामान्य तक विमर्श का विषय बन गया है।

50 वर्ष का अंतराल एक लम्बा कालखंड होता है, जिन लोगों ने आपातकाल देखा भी था, अधिकांशतः भुला चुके हैं साथ ही वर्तमान पीढ़ी उन्हें सुनने के लिये तैयार भी नहीं है। वर्तमान पीढ़ी की सोच को ही विकृत्त कर दिया गया है, जो सही है वो गलत और जो गलत है वही सही समझाया जाता है। साथ ही वर्तमान पीढ़ी मोबाइल में ही डूबी रहती है। यदि पूर्व की घटनायें याद न दिलाई जाय तो वो भ्रमित हो सकते हैं और संविधान खतड़े में है, लोकतंत्र खतड़े में है इन भ्रामक तथ्यों पर भी विश्वास कर सकते हैं।

इन भ्रामक तथ्यों से नयी पीढ़ियां भ्रमित न हो ये भी सरकार का दायित्व है और सरकार को इस दिशा में प्रयास करना चाहिये। एक बार को विपक्षी दल इसे पक्षपात भी कह सकता है किन्तु सत्य को किसी भी प्रकार से दबाया नहीं जा सकता। संविधान पर कब-कब प्रहार किया गया, लोकतंत्र कब समाप्त कर दिया गया था, उस काल में क्या-क्या हुआ था इत्यादि बातों पर विमर्श अपेक्षित है।

भारत का संविधान अब जम्मू-कश्मीर में भी लागू : यह भूत और वर्त्तमान में करनी और कथनी में अंतर को भी प्रकट करता है। भूतकाल में भारत का संविधान जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होता था, वर्तमान जम्मू-कश्मीर में लागू है। भूत में जिन लोगों की सत्ता होने पर जम्मू-कश्मीर में भारत का संविधान लागू नहीं था ये उनकी करनी थी, वर्त्तमान में जब जम्मू-कश्मीर में भारत का कश्मीर लागू है तो वही लोग संविधान लेकर संविधान खतड़े में है ऐसा चिल्लाते देखे जा रहे हैं; ये उनकी कथनी है।

सब कुछ स्पष्ट है किन्तु विमर्श के अभाव के कारण जनता भ्रमित हो सकती है इसलिये इसे विमर्श का विषय बनाया जा रहा है। जनता भ्रमित न हो इसलिये यह आवश्यक है कि जनता को जागरूक किया जाना चाहिये। सही जानकारी जनता तक पहुंचना कठिन होता जा रहा है और तब विशेष रूप से कठिन हो जाता है जब सरकार मौन रहे। ये अच्छा है कि अब सरकार चुप्पी तोड़ती दिख रही है।

लोकतंत्र को कमजोर करने की साजिश, देश के भीतर लोकतंत्र विरोधी शक्तियां : लोकतंत्र को कमजोर करने का षड्यंत्र किया जा रहा है और देश के भीतर भी लोकतंत्र विरोधी शक्तियां हैं यह सिद्ध तथ्य है किन्तु सरकार इस विषय पर बोलने से बचने का प्रयास करती रहती है। ये ठीक वैसा ही प्रयास होता था जैसे बिल्ली को देखकर चूहा आंखें मूंद ले। लगभग एक दशक से EVM का राग अलापा जाता रहा है, पिछले चुनाव में भी निर्वाचन आयोग की शाख को ठेस पहुंचाने का प्रयास किया गया। ये प्रयास देश के भीतर के लोग भी करते रहते हैं।

  • भ्रामक सूचना प्रसारित करके मतदाताओं को भ्रमित करने का प्रयास किया गया, ये लोकतंत्र को कमजोर करने का प्रयास था।
  • EVM पर प्रश्नचिह्न लगाकर बैलेट पेपर की वापसी का राग लगाना लोकतंत्र को कमजोर करने का प्रयास है।
  • चुनाव आयोग की शाख को ठेंस पहुंचाने का प्रयास करना लोकतंत्र को कमजोर करने का प्रयास है।
  • लोकतंत्र के मजबूत होने से परिवारवाद, भ्रष्टाचार आदि को खतड़े का आभास होता है अतः परिवारवादी, भ्रष्टाचारी सभी मिलकर लोकतंत्र को कमजोर करने के प्रयास में लगे रहते हैं।
वोट जिहाद और स्वस्थ लोकतंत्र

पूर्वोत्तर का बजट चार गुना : पूर्वोत्तर के विकास पर सरकार का सजग होना एक नया प्रयास है। बिहार और उत्तरप्रदेश के लोगों को पूरे भारत में जाते देखा जा सकता है किन्तु असम से आगे के जाते नहीं देखा जाता। कहीं न कहीं रणनीति के तहत पूर्वोत्तर भारत को एक तरह से मानसिक रूप से काटकर अलग रखने का प्रयास किया जा रहा था। अब सरकार पूर्वोत्तर भारत को भी भारत से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसी संभावना लगती है कि कहीं न कहीं इसी कारण मणिपुर में अशांति फैलाया जा रहा है।

NEET पेपर लीक की निष्पक्ष जांच, कठोर कानून : परीक्षा के पेपर लीक होना कोई नई बात तो नहीं है किन्तु अब सरकार प्रश्नपत्र लीक होने की घटना को रोकने के लिये कठोर कानून भी बनायेगी, साथ ही NEET के प्रश्नपत्र लीक होने की जो घटना है उसकी भी निष्पक्ष जांच हो रही है। तात्कालिक समस्याओं पर सरकार मौन रहने का प्रयास करती रहती थी और विपक्ष हंगामा, चर्चा की मांग किया करती थी। किन्तु अबकी बार सरकार ने ही आगे बढ़कर NEET प्रश्नपत्र लीक प्रकरण पर विमर्श की चुनौती दे दी।

इसके साथ ही और भी कई महत्वपूर्ण तथ्यों को राष्ट्रपति के अभिभाषण में सम्मिलित किया गया था। ज्वलंत विषय को सम्मिलित करना जिसपर विपक्ष आगे हंगामा भी करने के विचार में है, या प्रदर्शन किये भी जा रहे हैं। अभिभाषण में जो विषय समाहित किये गये वो राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुये किया गया है।

हमने यहां उन महत्वपूर्ण तथ्यों को लिया है जिन विषयों पर सरकार स्पष्ट रुख रखने में भी डरती रहती है। सामान्य रूप से वास्तविक विषय को उठा पाना, बोल पाना बहुत ही कठिन कार्य होता है। लेकिन राष्ट्रपति महोदया के अभिभाषण में देश की वास्तविकता का चित्रांकन किया गया ऐसा प्रतीत होता है।

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