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झूठ बोलना पाप है नदी किनारे सांप है

झूठ बोलना पाप है नदी किनारे सांप है

झूठ बोलना पाप है नदी किनारे सांप है

“झूठ बोलना पाप है नदी किनारे सांप है” ये पंक्ति भले ही आप अब नहीं बोलते हों लेकिन बचपन में अवश्य बोलते-सुनते रहे होंगे। इसके आगे अलग-अलग पंक्ति हुआ करती है जिसमें “काली माई आयेगी, तुमको उठा ले जायेगी” ज्यादा लगाई जाती है। अब सुना भी नहीं जाता है। एक फिल्मी गीत भी है “झूठ बोले कौवा काटे” जिससे झूठ बोलने की वर्जना की जाती थी। ऐसा क्या हो गया कि अब झूठ बोलने की वर्जना भी नहीं की जाती है और राजनीति के सभी स्तम्भ झूठ व मात्र झूठ पर आश्रित क्यों हैं ?

झूठ बोलना पाप है नदी किनारे सांप है

देश की राजनीति देखकर लगता नहीं कि ये वही भारत है जो कथा-पुराणों में सुनने-पढ़ने पर ज्ञात होता है। देश की राजनीति घनघोर संस्कृतिद्रोही हो चुकी है, क्योंकि जहाँ झूठ बोलना पाप माना जाता था वहां चुनाव भी झूठ बोलकर लड़ा जाने लगा। ऐसा भी नहीं कि किसी एक दल और उनके नेताओं को ही झूठ बोलने वाला कहा जाय या किसी विशेष दल जैसे भाजपा के बारे में ये कहा जाय की वो झूठ नहीं बोलती है। हाँ अनुपातिक अंतर अवश्य कहा जा सकता है जो अंतर आकाश-पाताल जैसा है।

मीडिया भी अपने कार्य से अधिक राजनीति करने लगी है मीडिया भी झूठ ही झूठ बोलती है, बताती है और कई ऐसे समाचार पकड़े भी जाते हैं जिसमें एक तात्कालिक प्रकरण मिड दे समाचार पत्र का है जिसमें EVM के लिये OTP वाला झूठ बताया गया था जिसके लिये उसने क्षमायाचना भी नहीं किया मात्र ये स्वीकारा की ये भ्रामक था। हर दिन अनेकों झूठी सूचना सामने आती है जिसे फेक न्यूज कहा जाता है। एक दूसरा पक्ष भी है सत्य को छुपाना भी झूठ के बराबर ही होता है और ये काम तो मीडिया धरल्ले से करती है लेकिन हमें मीडिया के संबंध में अधिक चर्चा नहीं करके राजनीति के संबंध में करनी है।

यहां हम उन झूठों की चर्चा करेंगे जो तात्कालिक हैं, भूतकाल के दशकों पीछे बोले गये झूठ की चर्चा नहीं करेंगे।

EVM पर झूठ

हर चुनाव में EVM को निश्चित रूप से उछाला जाता है। ये सिद्ध हो चुका है कि EVM को हैक नहीं किया जा सकता। सर्वोच्च न्यायालय से भी इसकी पुष्टि हुई। स्वीकार सभी राजनीतिक दलों ने भी किया है क्योंकि जब चुनाव आयोग ने हैक करने की चुनौती दिया था तो सभी राजनीतिक दल भाग खड़े हुये। मोबाइल को हैक किया जा सकता है, ATM को हैक किया जा सकता है, स्वाइप मशीन को हैक किया जा सकता है, टेलीविजन चैनल भी हैक किया जा सकता है, किन्तु क्या कैलकुलेटर को हैक किया जा सकता है ?

उस मोबाईल को भी हैक किया जा सकता है जो सामान्य होता है, जिसमें इंटरनेट नहीं होता है, मात्र कॉल और sms किया जा सकता हो, किन्तु कैलकुलेटर को हैक नहीं किया जा सकता। EVM कैलकुलेटर की श्रेणी का मशीन होता है जिसे हैक नहीं किया जा सकता है।

फिर प्रत्येक चुनाव में EVM को लेकर झूठ क्यों बोला जाता है ? लोकसभा चुनाव 2024 में भी प्रयास हुये ये अलग बात है कि अपेक्षाकृत कम हुये, लेकिन चुनाव के बाद फिर बोला गया और किसी छोटे-मोटे नेता ने ये झूठ नहीं बोला आज जो लोकसभा के नेता-प्रतिपक्ष हैं उन्होंने झूठ बोला।

अन्य कई नेताओं ने भी बोला है लेकिन सबकी चर्चा नहीं की जा सकती। अब मीडिया के बारे में प्रश्न आता है कि मीडिया कैसे झूठ ? क्या मीडिया ने कभी आपको विस्तार से बताया है कि EVM को हैक नहीं किया जा सकता। EVM-EVM जो चिल्लाते हैं वो सफेद झूठ बोल रहे होते हैं। यदि आज तक मीडिया ने ये नहीं बताया है तो सत्य को छुपाकर झूठ को फैलने में सहयोग किया है। इसलिये मीडिया भी झूठी है। एक झूठ मीडिया और बोल दे और कहे कि सत्य, जागरूकता आदि देश को बताने का ठेका उसका नहीं है।

संसदीय परंपरा पर झूठ

पहला झूठ प्रोटेम स्पीकर पर : पहला झूठ प्रोटेम स्पीकर को लेकर बोला गया, संसदीय परंपरा की दुहाई दी गयी कि जो सबसे अधिक काल तक सांसद रहा हो उसे प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है। ये जोर-शोर से बताया गया कि कोडिक्कुनिल सुरेश 8 बार सांसद बने और भर्तृहरि महताब से आगे हैं। दलित कार्ड भी खेला गया और भाजपा को दलित विरोधी भी सिद्ध करने का प्रयास किया गया। मीडिया ने भी भरपूर चर्चा किया लेकिन जब भाजपा ने सच बताया तो मीडिया भी मौन हो गयी और विपक्षी भी।

भाजपा ने भेद खोलते हुये एक शर्त को उजागर किया और वो शर्त है कि सर्वाधिक समय सांसद रहने वाले को तो प्रोटेम स्पीकर बनाया जाये किन्तु अबाधित रूप से जो सांसद रहने वाला काल ही गण्य होता है और इस शर्त के साथ महताब भर्तृहरि ही प्रोटेम स्पीकर पद के योग्य हैं। किन्तु जब ये सत्य प्रकट हुआ तो मीडिया मौन क्यों हो गयी। झूठ को जितना अधिक प्रचारित किया था उससे अधिक सत्य की चर्चा करनी चाहिये थी।

डिप्टी स्पीकर पर झूठ : डिप्टी स्पीकर पर भी भरपूर झूठ बोला गया, विपक्ष का डिप्टी स्पीकर होता है यह संसदीय परंपरा बताया गया। लेकिन सिद्ध तो होता ही नहीं है। आज जो विपक्ष में है दशकों तक सत्ता में रह चुकी है तब कितनी बार इस परंपरा का पालन किया गया था ये तो बताया ही नहीं। वर्त्तमान में भी कुछ राज्यों में विपक्षी गठबंधन की सरकार है लेकिन किसी भी राज्य में उस राज्य के विपक्ष का डिप्टी स्पीकर नहीं है, या तो डिप्टी स्पीकर है ही नहीं और यदि है तो सत्ता पक्ष का ही है।

मीडिया ने भी तब तो बढ़-चढ़ कर चर्चा किया था जब यह झूठ बोला जा रहा था कि विपक्ष का डिप्टी स्पीकर होना ही परंपरा है, किन्तु तब पूरी तरह से मौन हो गयी जब ये बताया गया कि विपक्ष जब सत्ता में थी तब भी ऐसा नहीं था और अभी भी विपक्ष जिन राज्यों की सत्ता में है वहां भी ये परंपरा नहीं है।

संसद की पहली चर्चा में झूठ : अठारहवीं लोकसभा में जब चर्चा का पहला दिन आया और राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा की बात आयी तो तुरंत विपक्ष संसदीय परंपरा को तिलांजलि देकर NEET पर चर्चा करने के लिये हंगामा करने लगी। लेकिन ये भी झूठ विपक्ष NEET प्रकरण पर भी चर्चा करना ही नहीं चाहती यदि चर्चा करना चाहती तो राष्ट्रपति के अभिभाषण में भी NEET प्रकरण का विषय समाहित है और चर्चा कर सकती थी। किन्तु चर्चा होने ही नहीं देना है, हंगामा मात्र ही करना है इसलिये NEET-NEET का झूठा राग अलाप रही है।

संसद में हंगामा से और भी झूठ बाहर आये वो इस प्रकार हैं :

  1. संविधान की रक्षा का झूठ : संविधान की रक्षा करेंगे का नारा झूठा सिद्ध हो गया क्योंकि जो राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा ही नहीं करना चाहती, विघ्न डालती है वो संविधान की रक्षा क्या करेगी ? यदि सचमुच में संविधान की रक्षा करनी थी तो राष्ट्रपति के अभिभाषण पर विस्तार से चर्चा करती।
  2. संसदीय परंपरा का झूठ : संसदीय परंपरा का झूठा राग भी सिद्ध हो गया क्योंकि संसदीय परंपरा राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा ही है जो विपक्ष ने नहीं होने दिया। विपक्ष इससे पहले जो संसदीय परंपरा का गीत गा रही थी वो झूठा था क्योंकि स्वयं ही हमेशा संसदीय परंपरा का उल्लंघन करती है।

दिल्ली एयरपोर्ट टर्मिनल 1 का झूठ

वर्षा के कारण दिल्ली एयरपोर्ट के टर्मिनल-1 पर छत गिरी 6 लोग घायल हो गए, जिसमें से एक की मृत्यु भी हो गयी। प्रियंका गांधी ने X पोस्ट करके लिखा “मार्च में प्रधानमंत्री जी ने दिल्ली एयरपोर्ट टर्मिनल-1 का उद्घाटन किया था, आज उसकी छत ढह गई जिसमें एक कैब ड्राइवर की दुखद मृत्यु हो गई।” इसमें प्रधानमंत्री मोदी ने उद्घाटन किया था इसे केंद्रीय उड्डयन मंत्री ने झूठा बताया।

उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू ने और बताया कि मोदी जी ने जिसका उद्घाटन किया तह वो इमारत दूसरी तरफ है। ये स्ट्रक्चर कैनोपी गिरा है वह 2009 का कंस्ट्रंक्शन है यह एक पुराना है।

इस स्ट्रक्चर के बारे में और भी सच सामने आये वो ये कि यह पहले भी दो बार गिरा था और मोदी सरकार बनने से पहले।

इतना सफेद झूठ बोल कैसे पाते हैं ये विचार का विषय है।

झूठ पर झूठ

यदि झूठ की चर्चा करते रहें तो वह अत्यधिक है उसकी गिनती भी नहीं की जा सकती। झूठ बोलने का स्तर तो यहां तक है कि लोकसभा अध्यक्ष पर भी माइक बंद करने का झूठा आरोप लगा दिया जाता है। ऐसा होने कैसे दिया जा रहा है ये भी गंभीर प्रश्न है। झूठ के विरुद्ध कोई कार्रवाही क्यों नहीं की जाती।

देश ने देखा है कि लोकसभा चुनाव 2024 में झूठ और केवल झूठ बोला जाता रहा है। झूठ पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है क्योंकि यदि देश के नीतिनिर्धारक ही झूठे व्यक्ति होंगे तो बाकि तंत्र क्या सच बोलेगा ? क्या जनता में झूठ का प्रचार-प्रसार नहीं हो रहा है ? क्या झूठ बोलना एक सामान्य बात नहीं हो गयी है और बिना मतलब के भी लोगों को झूठ बोलने की आदत नहीं लग रही है।

करें तो क्या करें

मान्यवर लोकसभा अध्यक्ष महोदय यदि झूठ पर कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती है तो न सही लेकिन उजागर और अंकित तो किया ही जा सकता है न ! कृपया संसद में राजनीतिक झूठ को भी चर्चा का एक विषय बनाइये। इसमें सभी दलों और नेताओं के राजनीतिक झूठ को उजागर किया जाना चाहिये और उसे अंकित किया जाना चाहिये। कम से कम देश ये तो जानेगा कि कौन कितना झूठ बोलता है।

झूठ पर चर्चा के लिये विशेष संसदीय सत्र की भी व्यवस्था कीजिये जिसमें मात्र राजनीतिक झूठों को उजागर किया जा सके और मासिक, त्रैमासिक अथवा षाण्मासिक सूचना संसद द्वारा जनहित में प्रकाशित करने की व्यवस्था कीजिये। सभी दलों और नेताओं को कम-से-कम इतना भय तो होना चाहिये कि झूठ बोलने पर कोई दंड न मिले न सही किन्तु झूठ उजागर किया जायेगा, निंदा का पात्र बनना होगा।

राजनीतिक झूठ किसी भी प्रकार से देश के लिये हितकारक नहीं है। गोपनीय और झूठ में अंतर होता है, जो विषय गोपनीय हो उसपर मौन रहा जा सकता है अथवा वास्तविक तथ्य को सार्वजनिक न करके अवास्तविक तथ्य सार्वजानिक रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है किन्तु जो विषय गोपनीय न हो उस विषय पर यदि प्रधानमंत्री भी झूठ बोलें तो उसे भी अंकित करने की व्यवस्था करनी चाहिये।

झूठ बोलना अपराध भले न बनाया जा सके किन्तु झूठ को उजागर करने, अंकित करने, सार्वजानिक निंदा करने पर तो रोक नहीं है। फेक न्यूज को लेकर चर्चा होती है, समस्या है किन्तु जब राजनीतिक झूठ को उजागर और अंकित किया जायेगा, निंदा की जायेगी तो फेक न्यूज को भी नियंत्रित किया जा सकता है।

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