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Voting Percentage : अत्यधिक विलम्ब से क्यों ?

Voting Percentage : अत्यधिक विलम्ब से क्यों ?

लोकसभा चुनाव 2024 में जब evm पर बार-बार प्रश्नचिह्न खड़ा करने से जब  सर्वोच्च न्यायालय ने ही मना कर दिया तो चट्टे-बट्टे नया मुद्दा ढूंढने लगे और वो दिया चुनाव आयोग ने वोटिंग आकंड़ा में विलम्ब करके। 

नीचे लोकसभा चुनाव के दो चरणों में हुये चुनाव के वोटिंग प्रतिशत का आंकड़ा दिया गया है, जिसे ऊपर के चित्र में भी देखा जा सकता है। आंकड़े के अनुसार प्रथम चरण में 66.14% और द्वितीय चरण में 66.71% कुल मतदान हुआ। 

यदि आप उपरोक्त रिपोर्ट पीडीऍफ़ को जो कि निर्वाचन आयोग ने जारी किया है, पूरा डाउनलोड करना चाहते हैं तो “यहां क्लिक” करके “डाउनलोड” कर सकते हैं। 

क्या कहता है वोटिंग परसेंटेज का आंकड़ा 

7 चरणों में लोकसभा चुनाव 2024 का आरम्भ 19 अप्रैल से हुई और 26 अप्रैल को दूसरे चरण का मतदान हुआ।  इस मतदान के बाद चुनाव आयोग ने मतदान प्रतिशत का अंतिम आंकड़ा जारी कर दिया है। मतदान प्रतिशत का प्रारंभिक आंकड़ा प्रथम चरण में लगभग 64% था तो द्वितीय चरण में 63.5% रहा। अंतिम आंकड़ा जिसे प्रसारित करने में निर्वाचन आयोग ने अत्यधिक विलम्ब किया; उसके अनुसार प्रथम चरण में 66.14% और द्वितीय चरण में 66.71% मतदान हुआ। 

दोनों आँकड़े में लगभग 2.5% का अंतर देखा गया है जो हर बार होता है। अर्थात प्राम्भिक आंकड़े और अंतिम आंकड़े को देखने से तो किसी प्रकार की शंका उत्पन्न नहीं होती। परन्तु अंतिम आंकड़े को प्रसारित करने में अत्यधिक विलम्ब होना कहीं न कहीं शंका का कारण है। विपक्ष ने इस पर प्रश्नचिह्न खड़ा भी किया है। 

आंकड़ा प्रसारित करने में विलम्ब को लेकर प्रश्नचिह्न 

यद्यपि इस विषय में जनता को निर्वाचन आयोग पर संदेह करने के उद्देश्य से ही विपक्ष द्वारा प्रश्नचिह्न खड़ा किया जा रहा है तथापि इस विषय  प्रश्नचिह्न उत्पन्न होना ही चाहिये और सत्ता पक्ष को भी प्रश्न करना चाहिये था।  

आखिर इतना विलम्ब कैसे हो सकता है। कहीं ऐसा तो नहीं की विपक्ष को हंगामा करने के लिये एक नया विषय जानबूझ कर निर्वाचन आयोग ने ही दिया है। ये दूसरा महत्वपूर्ण प्रश्न है।

इस विषय में निर्वाचन आयोग  को स्पष्टीकरण देना चाहिये और उचित कारण स्पष्ट करना चाहिये। 

विपक्ष का प्रश्न निराधार 

इस विषय में विपक्ष जो हेर-फेर का आरोप लगा रहा है वह सर्वथा निराधार है। हाँ आंकड़े में विलम्ब का प्रश्न आवश्यक है। हेर-फेर का आरोप क्यों निराधार है :

अतः evm में मतों के हेर-फेर सम्बन्धी आरोप पूर्णतः निराधार हैं एवं मतदाता को भ्रमित करने वाले हैं, किन्तु यह अवसर देने वाला कोई और नहीं स्वयं निर्वाचन आयोग है। 

निर्वाचन आयोग पर प्रश्नचिह्न 

निर्वाचन आयोग पर मात्र विलम्ब आंकड़े प्रसारित करने सम्बन्धी प्रश्नचिह्न ही नहीं खड़ा होता। मतदान की तिथियों का निर्धारण भी प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। आखिर सभी मतदान की तिथियां उन दिनों में क्यों निर्धारित की गई जिसके पहले या बाद में 3 दिनों की छुट्टी आती है ? निर्वाचन आयोग को इस विषय में भी स्पष्टीकरण देना चाहिये। 

विपक्ष का प्रश्नचिह्न खड़ा करना अपनी जगह है। इन दोनों विषयों पर तो सत्तापक्ष को भी छानबीन करने की आवश्यकता है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ ? कहीं निर्वाचन आयोग में कोई ऐसा व्यक्ति/समूह तो नहीं है जो विपक्ष को लाभ पहुंचाने का ध्येय रखता है। कहीं “सिस्टम तो हमारा ही है” का डायलॉग तो प्रत्यक्ष में घटित नहीं हो रहा है। 

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