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विनाशकाले विपरीत बुद्धि में फंसी कांग्रेस और राहुल की उलझन – Congress & misdeeds

विनाशकाले विपरीत बुद्धि में फंसी कांग्रेस और राहुल की उलझन – Congress & misdeeds

राहुल गांधी जो भी मुद्दा उठायें, कांग्रेस की भूल इतनी भयावह है और मोदी की ऐसी स्वच्छ छवि बन गई है कि गुगली ही नहीं होती विपरीत प्रभाव (Back Fire) भी करती है। 

राहुल गांधी का राजनीतिक जीवन जबसे आरंभ हुआ है तबसे कांग्रेस घाटे-ही-घाटे में जाने लगी और कभी-कभी राहुल के अपशकुनी होने तक की चर्चा भी की जाने लगती है, लेकिन फिर से उसे “येन केन प्रकारेण” अशुभ नहीं हैं ऐसा भी सिद्ध कर दिया जाता है। राहुल के साथ अशुभता है या नहीं इससे दुनियां की अपेक्षा कांग्रेस को पहले विचार करना चाहिये था किन्तु कहते हैं न : 

“विनाशकाले विपरीत बुद्धि” जिसे हिंदी में राष्ट्रकवि दिनकर ने इस प्रकार कहा “जब नाश मनुज पर छाता है पहले विवेक मर जाता है” 

राहुल और मोदी की तुलना 

हमें तो ये आलेख लिखते हुये भी ऐसा लगता है कि कहीं कांग्रेसी बुड़ा न मान जायें, हां बात जब मोदी की हो तो कड़वी बातें लिखने में भी कोई हिचक नहीं होती। वैसे राहुल में ऐसे गुणों को कभी नहीं देखा गया जिसके कारण उनकी तुलना मोदी से करी जाय, किन्तु भारतीय राजनीति में दो प्रमुख दल है कांग्रेस और भाजपा। वर्त्तमान में कांग्रेस का नाम लो तो एक ही चेहरा मस्तिष्क में आता है राहुल गाँधी का, इसी तरह भाजपा का नाम लो तो पहली छवि मोदी की आती है। इस कारण से तुलना की जा सकती है, इसके अतिरिक्त अन्य कोई कारण नहीं है कि राहुल गांधी की तुलना मोदी से की जा सके!

इसी प्रकार और भी कई अंतर गिनाये जा सकते हैं जैसे राहुल गांधी को सत्ता प्राप्त करने के लिये तुष्टिकरण, जातिवाद, बहुसंख्यक की उपेक्षा, झूठ-पर-झूठ गढ़ना आदि कई नकारात्मक बातें ही सिखाई गयी, जन्मजात शहजादा होना बताकर अहंकार भरा गया वहीं मोदी ने जहां कहीं भी प्रशिक्षण लिया उन्हें सर्वजनहिताय, सत्य, सेवा, राष्ट्रभक्ति, सेवकभाव आदि सकात्मक बातें सिखाई गई और इसका उदहारण है कि प्रधानमंत्री बनने पर भी उन्होंने स्वयं को सेवक कहा शासक या राजा नहीं। 

सब दिन होत न एक समाना 

ये स्थापित नियम है कि सुख और दुःख, दिन और रात आते जाते रहते हैं, सुख होने पर ये भ्रम नहीं पालना चाहिये कि हमेशा ऐसे ही गुजरेगी अर्थात भविष्य में आने वाले दुःखभरे दिनों के लिये भी तैयारी कर लेना चाहिये, जो कांग्रेस ने नहीं किया अंतिम क्षणों तक भी बहुसंख्यक को द्वितीय श्रेणी का मानते रहे। 

इसी प्रकार दुःख के दिन हो तो रोकर नहीं बिताना चाहिये क्योंकि पुनः सुख के दिन भी आयेंगे किन्तु तदनुसार कर्मयुक्त होने से न कि रोदन में कालक्षेप करने से। लेकिन जब कांग्रेस के दुर्दिन चल रहे हैं तब भी असत्य, छल, प्रपञ्च, तुष्टिकरण, जातिवाद आदि में ही उलझी हुई है सुधारवादी होने का एक भी लक्षण नहीं दिखता। 

यद्यपि ये तथ्य पूर्णतः सही हैं किन्तु कांग्रेस कदापि अंगीकार नहीं कर सकती, अपितु मोदीभक्त होने का आरोप मढ़कर अपमानित करने का प्रयास कर सकती है अथवा जो भी नकारात्मक प्रतिक्रिया दे सके देगी, लेकिन देगी तो नकारात्मक प्रतिक्रिया ही। और ये पिछले दिनों की घटनाओं से भी सिद्ध होते हैं :

अभी भी कांग्रेस को ये स्वीकार करना चाहिये कि सब दिन एक समान नहीं होता किन्तु यदि काल वाम हो तो रुदन करते हुये अकर्मण्य नहीं बनना चाहिये, आत्ममंथन करना चाहिये, आत्मसुधार करना चाहिये, कर्मवान बनना चाहिये। 

उघरहिं अंत न होइ निबाहू

आपके मन में यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हो सकता है कि उपरोक्त तथ्य के कोई आधार हैं या बिना सिर-पैर की बातें हैं ? 

यदि ऐसा प्रश्न उत्पन्न हो रहा हो तो इसका उत्तर भी यही है कि कांग्रेस जो भी विषय चर्चा में लाती है वो आधारहीन होता है, बिना सिर-पैर का होता है, कुछ दिन तो हंगामा करती है किन्तु “उघरहिं अंत न होइ निबाहू” वाली स्थिति हो जाती है एवं लाभ के स्थान पर पुनः हानि हो जाती है। मोदी के विरोध में कांग्रेस ने जिस किसी विषय को उठाया लगभग सब उल्टा ही पड़ा है क्योंकि “जो राहुल कहे वही सही” ऐसा कैसे होगा ? कुछ प्रमुख विषयों का स्मरण कीजिये :

लेकिन यहीं पर हंगामों के अतिरिक्त यदि कांग्रेस शासित राज्यों के कार्य को देखें तो सकारात्मक काम और नकारात्मक अधिक मिलते हैं। संसद में राहुल गांधी के कार्य जानना चाहूं तो उत्तर में विदेश यात्रा और नगण्य उपस्थिति प्राप्त होती है। यही स्थिति 2019 के बाद वाले वर्त्तमान सत्र में भी देखी गयी। कांग्रेस के सलाहकारों और मीडिया ने सलाह देना शुरू किया कि संघर्ष दिखना चाहिये तो फिर वही पुराना हथकंडा विरोध-विरोध और विरोध के नाम पर केवल विरोध। 

लोकसभा चुनाव 2024


लोकसभा चुनाव 2024

पुनः कार्य पूछा जाय तो क्या उत्तर है जिन राज्यों में सरकार थी वहां भी ऐसी अकर्मण्यता रही कि हाथ से निकल गया, नेताओं ने साथ छोड़ना शुरु कर दिया । पुनः वर्तमान लोकसभा चुनाव 2024 में भी जो विषय उठाते हैं वही विपरीत प्रतिक्रिया देती है back fire कर जाता है :

इसी को कहते हैं  विनाशकाले विपरीत बुद्धि” 

 

परामर्श 

कौन जब अपने पार्टी के सदस्य भी परामर्श देने में हिचक रहा हो कि पार्टी ही न छोड़ना पड़ जाये फिर और किसी को परामर्श देने की क्या आवश्यकता होगी। हां मोदी के साथ निर्भयता, अपेक्षा (राष्ट्रहितकारी) और आशा के साथ निःशंक भाव से विचार, सलाह साझा किये जाते हैं। यदि ग्राह्यता होगी तो उपरोक्त आलेख में से ढेरों परामर्श ग्रहण किया जा सकता है किन्तु कांग्रेस इतनी गुणी नहीं है। 

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