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RSS & BJP, उछल रही है क्यों इंडि

RSS & BJP, उछल रही है क्यों इंडि

RSS & BJP, उछल रही है क्यों इंडि

मोदी सरकार 2.0 से ही संघ और भाजपा के संबंध में कुछ खटाई पड़ी हुई है जो लोकसभा चुनाव 2024 में दिखाई भी दे गयी। उसके बाद कल संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने वक्तव्य में कुछ पंक्तियां भाजपा के लिये भी कही जिसके बाद कांग्रेस सहित पूरा इंडि गठबंधन उछलने लगी जैसे अब RSS उसका साथ देगी। यहां हम RSS & BJP के बीच में इंडि को भी समझने का प्रयास करेंगे।

RSS & BJP, उछल रही है क्यों इंडि

संघ प्रमुख ने जो वक्तव्य दिया उस पर संघी विचारधारा से प्रभावित विश्लेषक स्पष्ट रूप से कहते देखे गये हैं कि उनके वक्तव्य की व्याख्या करना हमारे लिये संभव नहीं। वहीं संघ की विचारधारा की विरोधी विचारधारा से जुड़े विश्लेषक भाजपा को तमाचा सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं। बात जब उन लोगों की आती है जो चुनाव परिणाम के बाद संघ को भला-बुड़ा कह रहे थे वो पलटूराम बन गये और अब संघ को सही सिद्ध कर रहे हैं भाजपा को गलत। और जब कांग्रेस सहित इंडि गठबंधन की बात करें तो इसे लग रहा है कि झुनझुना मिल गया है और झुनझुना बजाकर नाच-गा रहे हैं।

औकात बताकर आईना दिखाना, कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना

संघ ने जैसे पहले अटल सरकार को भी औकात पर ला दिया था वैसे ही इस बार मोदी सरकार को भी औकात दिखा रही थी ये अलग बात है कि भाजपा पिछले पाठ से सजग थी और क्षतिपूर्ति के लिये पहले से प्रयासरत थी जिसके कारण भले ही 272 से 32 अंक नीचे ही सिमट गई। लेकिन अस्तित्व बचाने में सफल रही और अटल युग की पुनरावृत्ति को रोकने में सफल रही।

संघ और भाजपा में माता-पुत्री जैसा संबंध है जिसे पिता-पुत्र जैसा भी कहा जा सकता है। दोनों में मतभेद राममंदिर निर्णय के बाद से ही देखा जा रहा है संघ काशी और मथुरा पर आगे बढ़ने से मना कर चुकी थी लेकिन भाजपा पीछे हटने के लिये तैयार नहीं हुई क्योंकि और भी कई संगठन काम कर रहे थे, जनभावना जुड़ी हुई थी। कुछ लोग प्रधानमंत्री पद को लेकर भी कहते पाये गये हैं कि संघ गडकरी को प्रधानमंत्री बनाना चाहती थी। लेकिन यह ऐसा विषय नहीं हो सकता कि संघ चुनाव में भाजपा को ही सत्ता से दूर करने का प्रयास कर दे।

भाजपा यदि संघ के प्रति विरोधाभास रख रही होती तो कई राज्यों में संघ से जुड़े मुख्यमंत्री क्यों बनाती, संघ प्रचारकों से पीछा छुड़ाने का प्रयास क्यों नहीं करती ? संघ यदि भाजपा से उतना ही रुष्ट है तो आईना क्यों दिखाती ? आईना दिखाने का मतलब है दाग दिखाना जिसे धोने की आवश्यकता है मतलब ये तो भला करने के उद्देश्य से किया जाता है।

ऐसा भी तो हो सकता कि संघ भाजपा को आत्मनिर्भर बनाना चाहती हो।

भाजपा आत्मनिर्भर हो जाये उसे चुनाव लड़ने के लिये संघ की आवश्यकता न हो, खुलकर राजनीति करे, संघ इस दिशा में आगे बढ़ रही हो ऐसा क्यों नहीं हो सकता ? बच्चे आत्मनिर्भर हों ये सभी माता-पिता की इच्छा होती है कोई माता-पिता यह नहीं चाहता कि बच्चे सदैव उसी पर निर्भर रहें, तो संघ भी भाजपा के प्रति यही सोच रखती हो ऐसा क्यों नहीं हो सकता ?

उद्देश्य भाजपा को आत्मनिर्भर बनाना हो और इसी कारण से चुनाव में संघ ने हाथ खींचा हो यह क्यों नहीं हो सकता ? और यदि आत्मनिर्भर होने में भाजपा से कोई चूक हुई हो तो तमाचा क्यों नहीं जड़ सकता और यदि संघ ने भाजपा को आत्मनिर्भर नहीं होने के कारण तमाचा जड़ा हो तो इसमें इंडि गठबंधन को क्या मिल गया कि झुनझुना लेकर नाचने लगी ?

संघ ने काशी और मथुरा में हाथ खींचा उसका भी तो यह तात्पर्य हो सकता है कि आगे का श्रेय संघ नहीं लेना चाहती भाजपा स्वयं ले ये संघ और भाजपा का विरोध ही है कैसे सिद्ध होता है ?

मणिपुर प्रकरण पर संघ ने भाजपा को ही तमाचा मारा है ये कैसे सिद्ध होता है, ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि ये तमाचा उपद्रवियों को मारा गया हो भाजपा को संकेत दिया गया हो कि आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ हैं।

सनातन पर मतभेद

संघ और भाजपा में सनातन को लेकर भी मतभेद हो सकता है। संघ आर्य समाज के प्रभाव में है और आर्य समाज के द्वारा की गयी व्याख्या को ही सही मानती है शेष शास्त्रों और ग्रंथों को असत्य मानती है क्योंकि आर्यसमाज स्वयं ही एक भ्रमित विचारधारा को लेकर आगे बढ़ रहा है। गीता को तो सही मानते हैं लेकिन जो विचारधारा के अनुकूल प्रमाण हैं मात्र उसकी पुष्टि के लिये, गीता महाभारत का अंश है और महाभारत को नहीं मानते। विभिन्न स्मृति, सूत्र, पुराणों को को भी नहीं मानते है। इसी कारण संघ भी उसी विचारधारा पर चलते हुये शास्त्रों में संशोधन की बात पहले ही कर चुकी है।

भाजपा के वो नेता आर्य समाजी विचारधारा के तो हो सकते हैं जो संघ से आये हों किन्तु सभी आर्य समाजी ही हैं ऐसा नहीं है। आर्य समाजी कितना भी कह ले कि 33 कोटी देवता का मतलब 33 करोड़ नहीं 33 प्रकार पात्र है किन्तु एक सामान्य हिन्दू भी सैकड़ो देवताओं की पूजा करता है वह कैसे मान सकता है ? लेकिन RSS चाहती है कि सनातन शास्त्रों में ऐसे संशोधन किये जायें जो कि आर्य समाजी विचारधारा के अनुकूल हो।

यद्यपि संघी हिन्दू भी इस विषय में RSS से सहमत नहीं होगा किन्तु मान लिया जाय कि वो सहमत भी हो किन्तु सभी भाजपा नेता और कार्यकर्त्ता जो संघी नहीं हैं वो भी कैसे सहमत हो सकते हैं ? अर्थात भाजपा इस विषय पर न तो RSS से सहमत हो सकती है और न ही ऐसा करने का दुस्साहस कर सकती है।

इतिहास और पाठ्य पुस्तकों में संशोधन हो यह मान्य हो सकता है और इस दिशा में प्रयास भी किया जा रहा है। लेकिन पाठ्य पुस्तकों में भी आर्य समाजी विचारधारा ही समाहित कर दिया जाय भले ही वह सनातन शास्त्रों के विरुद्ध क्यों न हो यह भाजपा कैसे करेगी ? अर्थात संघ और भाजपा में इस विषय को लेकर भी मतभेद हो सकता है।

संस्कृति पर मतभेद

जैसे सनातन को लेकर संघ और भाजपा में मतभेद है वैसे ही संस्कृति को लेकर भी संघ और भाजपा में मतभेद हो सकता है। संघ भी एक प्रकार के मिली-जुली संस्कृति को ही जन्म देना चाहती है जिसमें यदि एक मुसलमान भी वेद पढ़ ले और कर्मकांड कराना सिख ले तो यज्ञ व कर्मकांड करा सकता है, विद्यालय/महाविद्यालय/विश्वविद्यालय में वेद पढ़ा सकता है।

संघ इस बात को मानकर आगे बढ़ रही है कि मुसलमानों का भी हृदय परिवर्तन हो सकता है और इसी कारण संघ के दबाव में ही मोदी ने “सबका साथ सबका विश्वास” नारा दिया जिसे आगे भी बढ़ाने का प्रयास किया लेकिन विश्वास की बात जैसे ही आयी तो मुसलमान वोट जिहाद का नारा देकर अलग हो गया। भाजपा को तो वोट जिहाद अच्छे से दिखाई देने लगी है, संघ भले ही उसकी अनदेखी करे।

संघ अपने हृदय परिवर्तन के प्रयास पर अडिग रह सकता है किन्तु भाजपा कैसे रहे जब दो कार्यकालों तक लगातार बिना किसी भेदभाव के सबके जीवन स्तर को सुधारने का प्रयास किया फिर भी विश्वासभाजन नहीं बन सका। भाजपा हृदय परिवर्तन को लेकर अडिग रहे यह अनिवार्य भी नहीं है। और यदि संघ को यह भी लगे कि भाजपा वही करे जो संघ कहे तो भाजपा की आवश्यकता कहां है संघ स्वयं चुनाव लड़े और स्वयं ही सरकार बनाकर अपने मनोनुकूल सभी काम करे।

भाजपा सरकार में है और भाजपा को देश का जो रूप दिखाई दे रहा है वही संघ को भी दिखाई दे रहा हो यह आवश्यक नहीं है। दोनों के सूचना तंत्र अलग हैं और बात जब सरकार की आती है तो उसके पास और व्यापक व सूक्ष्म सूचना होती है एवं उसकी सूचना गोपनीय भी होती है जो संघ से साझा भी नहीं कर सकती। भाजपा और संघ परस्पर सूचना का आदान-प्रदान कर सकती है। सरकार तो सरकारी तंत्र की विस्तृत व सूक्ष्म सूचनाओं के अनुसार ही कार्य करेगी, संघ की सूचना के अनुसार नहीं।

मतभेद का तात्पर्य शत्रुता तो नहीं

उपरोक्त मतभेद होने के उपरांत भी ऐसा नहीं है कि परस्पर शत्रुता है परिवार में भी मतभेद होते हैं, पति-पत्नी में भी होता है और पिता-पुत्र में भी होता है इसका तात्पर्य यह नहीं होता कि वो परस्पर शत्रु बन जाते हैं। अर्थात मतभेद के कारण हाथ खींचा जाय और भाजपा को अकेला छोड़ दिया जाय यह दूरदृष्टि संपन्न RSS के अनुकूल प्रतीत नहीं होता।

सुई घूम-फिर कर वहीं जाकर अटक जाती है कि संघ ने भाजपा को आत्मनिर्भर बनाने के लिये अकेले संघर्ष करने के लिये छोड़ा। और अहंकार शब्द प्रयोग का उत्तर भी इसी संदर्भ में स्पष्ट होता है कि कहा गया है संघर्ष करो अहंकारी नहीं बनो।

कांग्रेस को क्या मिला

कांग्रेस को और इंडि गठबंधन को झुनझुना मिल गया लेकिन झुनझुने में विष लेपित है यह नहीं दिख रहा है। विष का ज्ञान तो तब होगा जब विष का प्रभाव पड़ने लगेगा। संघ तो चाहता ही है कि कांग्रेसी और पूरा इंडि गठबंधन भी संघी हो जाये यदि कांग्रेस को यह स्वीकार है तो संघ में सम्मिलित हो जाये। वैसे संघ की तरफ से यह वक्तव्य भी पहले दिया जा चुका है कि यदि कांग्रेस भी प्रचारक मांगे तो उसे भी देंगे। भाजपा मांगती है इसलिये देते हैं। कांग्रेस और इंडि गठबंधन मांग ले प्रचारक।

वोट जिहाद और स्वस्थ लोकतंत्र
भटकते मोदी खटाखट खटाखट खटाखट
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