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हारे हुये नवीन पटनायक बन गये विजेता

हारे हुये नवीन पटनायक बन गये विजेता

हारे हुये नवीन पटनायक बन गये विजेता मोहन चरण मांझी के शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित हुये और एक राजनीति को एक अनुकरणीय राजनीतिक आचरण प्रस्तुत किया। केंद्रीय राजनीति में विपक्ष स्वयं ही शत्रु बन गया है और सत्ता पक्ष को शत्रु समझने लगा है। क्या आँखों की पट्टी हटा पायेगी या अड़ियल ही बनी रहेगी ये गंभीर प्रश्न है।

हारे हुये नवीन पटनायक बन गये विजेता

नवीन पटनायक लगातार कई बार ओड़िसा के मुख्यमंत्री बनने के बाद 2024 में सत्ता से बाहर हो गये किन्तु एक ऐसे राजनीतिक चरित्र हैं जिनका यदि ओड़िसा के चुनावी सम्बोधनों को अलग कर दें तो न ही केंद्र सत्ता पक्ष विरोध करती है और नहीं ही विपक्ष निंदा करती है।

आज आंध्रप्रदेश और ओड़िसा दो राज्यों में NDA के मुख्यमंत्रियों ने शपथ ग्रहण किया। दोनों समारोह में लगभग सभी बड़े नेता उपस्थित थे। कई प्रसंशनीय दृश्य देखने को मिले लेकिन सबसे प्रसंशनीय, सराहनीय और अनुकरणीय प्रस्तुति पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने प्रस्तुत किया है। कई बार सत्ता में रहने के बाद सत्ता से बाहर हो गये लेकिन ये नहीं कहा कि मैं नये मुख्यमंत्री को बधाई नहीं दूंगा, शपथ ग्रहण समारोह में नहीं जाऊंगा। शपथ ग्रहण समारोह में जाने के बाद निंदा के पात्र बने या अनुकरणीय बन गये ये विडियो में देखा जा सकता है।

पटनायक जी ने संदेश दिया कि जनादेश के अनुसार भाजपा सत्ता में बैठेगी और हम विपक्ष में बैठेंगे लेकिन परस्पर शत्रु हो गये ऐसा कुछ नहीं है। उपस्थित होने के बाद क्या सम्मान मिला ये भी देखा और समझा जा सकता है।

नवीन पटनायक ने जो आचरण प्रस्तुत किया वो राजनीति ही नहीं सामान्य जीवन में भी अनुकरणीय है। वास्तव में गंदी राजनीति ने सामान्य जीवन में भी विष घोल रखा है। सामान्य जीवन में संपत्ति का विवाद, बच्चों को लेकर विवाद, महिलाओं का झगड़ा नित्य होता रहता है और ये सब दिनों से होता रहा है। लेकिन पहले के समय में विवाद को विवाद मात्र रहने दिया जाता था परस्पर शत्रु नहीं बनते थे। विवाद वर्तमान में भी होता है किन्तु विवाद के साथ ही शत्रुता आरंभ हो जाती है, एक-दूसरे के समारोहों में आवागमन बंद कर दिया जाता है।

विवाद पूर्व काल में भी होते थे और बड़े-बड़े विवाद भी होते थे किन्तु पूरा का पूरा गांव एक साथ दिखता था। आज सामान्य विवाद घर में भी होने पर पूरा घर भी साथ दिखना बंद कर देता है। ये गंदी राजनीति का ही विष है तो सामान्य जीवन पर भी दुष्प्रभाव डालने लगा है।

मीडिया की बुड़ी लत

मीडिया को एक बुड़ी लत लग गयी है TRP वाली और इस लत के कारण वो सही से यह निर्णय नहीं ले पाती कि क्या विमर्श करे, क्या न करे; देश को क्या दिखाये और क्या न दिखाये ? कांग्रेस सहित पूरा इंडि गठबंधन ने मोदी को बधाई तक नहीं दी, शपथ ग्रहण समारोह का भाग नहीं बने, प्रतीकात्मक रूप से अंत में कांग्रेस अध्यक्ष को भेज दिया लेकिन मीडिया में यह विमर्श खूब हुआ कि विपक्ष बधाई नहीं देगा, शपथ ग्रहण समारोह में नहीं जायेगा। वास्तव में इसकी निंदा होनी चाहिये थी जो मीडिया ने नहीं किया।

वहीं दूसरी और नवीन पटनायक ने जो अनुकरणीय आचरण व्यवहार में दिखाया जिसकी भरपूर चर्चा होनी चाहिये थी, सराहना करनी चाहिये थी उस पर मौन धारण कर लिया। ये मीडिया का कुसंस्कार है जो दशकों से उसे प्राप्त हुआ है। मीडिया को पहले संस्कार का पाठ पढ़ना चाहिये, नीति का पाठ पढ़ना चाहिये। पत्रकारों के लिये एक अलग से गुरुकुल की आवश्यकता है जहां महीने में एक दिन सबको पढ़ने के लिये जाना चाहिये। क्या करें क्या न करें यह सीखना चाहिये।

देश जिसे सुनता है उसे शब्द ज्ञान, व्यवहार ज्ञान, संस्कृति ज्ञान, नीति ज्ञान होना अनिवार्य है। पूरी-की-पूरी मीडिया कुसंस्कार से ही भरी हुयी है, झूठ पर झूठ ही परोसती रहती है, देशी शब्द भी नहीं बोल पाती, संस्कृति और नीति के विषय में तो 0 पर आउट हो जाती है। एक साथ पूरी मीडिया पर ताला तो नहीं जड़ा जा सकता; लेकिन सुधारवादी प्रयास तो करना चाहिये।

केंद्रीय राजनीति को सीख लेनी चाहिये

नवीन पटनायक ने जो आचरण प्रस्तुत किया है वह केंद्रीय राजनीति के लिये एक सुन्दरतम उदाहरण है और जो देश की संस्कृति, संस्कार, नीति का भी ज्ञान देती है। मात्र केंद्रीय राजनीति ही नहीं कई राज्यों की राजनीति भी विषाक्त हो गयी है। जैसे मीडिया के लिये गुरुकुल की आवश्यकता है उसी प्रकार सभी राजनेताओं के लिये भी चाहे वह किसी भी जाती, संप्रदाय के हों गुरुकुल की व्यवस्था होनी चाहिये। राजनेताओं को बोलने, संकेत करने, व्यवहार करने के ज्ञान की अति आवश्यकता है।

नवीन पटनायक के आचरण से देश के नेता कुछ सीखेंगे यह सोचना भी संभव नहीं है जब उनकी विचारधारा ही विदेशी संस्कृति से प्रभावित हो गयी है। सभी नेताओं के लिये ये अनिवार्य शर्त होनी चाहिये कि उन्हें देश के संस्कार, देश की नीति का ज्ञान हो। राजनीति का इतिहास तो ऐसा रहा है कि जाति-जाति को लड़ाया, राज्य-राज्य को लड़ा रहे हैं, उत्तर भारत और दक्षिण भारत को लड़ाने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसा कोई भी प्रयास-वक्तव्य दंडनीय होना चाहिये। भारत की राजनीति भारतीय संस्कृति के अनुकूल ही होनी चाहिये विदेशी संस्कृति के अनुसार नहीं।

ये संदेश उन सभी के लिये है जो किसी प्रकार से देश की प्रमुख हस्ती माने और समझे जाते हैं। जिनके सोशल मीडिया पोस्ट को देश देखता है और उससे प्रभावित होता है।

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