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मोदी की गारंटी है

मोदी की गारंटी

यह प्रश्न भी स्वाभाविक है कि भाजपा को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं है और गठबंधन की सरकार में कुछ भी करना या महत्वपूर्ण निर्णय लेना सरल नहीं होता तो क्या मोदी ऐसा कर पायेंगे ? गठबंधन की सरकार का अर्थ ही होता है बड़ी राजनीतिक दल जो मुख्य घटक होती है वह अपनी विचारधारा के अनुसार कार्य करना चाहती है किन्तु छोटे घटक दल व अन्य सहयोगी उसमें टांग खींचने का प्रयास करती रहती है। यहां हम समझने का प्रयास करेंगे कि मोदी कितना निर्णय लेने में सक्षम होंगे और कितनी टांग खिंचाई हो सकती है ?

मोदी की गारंटी है

अभी सरकार बनी भी नहीं है और जदयू टांगखिंचाई करने में जुट गई है। अग्निवीर योजना, जातीय जनगणना, UCC जैसे विषयों पर जदयू ने मीडिया के माध्यम से विचार प्रकट करना शुरू कर दिया है। वहीं TDP द्वारा संयोजक और लोकसभा अध्यक्ष पद की मांग की यह भी समाचार चैनलों पर जोर-शोर से प्रचारित-प्रसारित किया जा रहा है। और यह भी बताया जा रहा है कि भाजपा अभी मोल-जोल करने की स्थिति में नहीं है अर्थात भाजपा को अन्य सहयोगी दलों की बात माननी होगी।

वहीं मंत्री पद के लिये भी विभिन्न दलों की तरफ से मांग की जाने लगी थी जदयू ने 4 सांसदों पर मंत्री का सूत्र बताते हुये तीन मंत्री पद की मांग की थी। मीडिया इसे लेकर धूम मचाने में जुटा था कि नितीश को रेल, वित्त, कृषि चाहिये। भाजपा ने मोदी सरकार 3.0 के लिये सूत्र प्रस्तुत किया है जिसमें 5 सांसदों पर एक केंद्रीय मंत्री और दो सांसदों पर 1 केंद्रीय राज्यमंत्री की बात बताई गयी है।

कुल मिलाकर मीडिया को मोदी पर या तो भरोसा नहीं है अथवा मीडिया अन्य सहयोगी दलों का पक्ष लेकर उन्हें सबल बनाते हुये एक दुर्बल सरकार देखना चाहती है जहां मीडिया को भी मलाई मिलती है। लेकिन ये विषय लगभग सरकार बनने तक ही स्पष्ट हो जायेगा कि मोदी कितने दुर्बल होंगे और सहयोगी दल कितनी टांगखिंचाई कर सकते हैं।

एक विशेष संभावना यह भी है कि NDA में भीतरी सहमति हो तो भी मीडिया ऐसा दिखाने का प्रयास कर रही है और इसका उद्देश्य भी मात्र TRP लेना नहीं हो सकता। इसमें भी कहीं न कहीं से मीडिया को ऐसा करने के लिये प्रेरित किया जा रहा हो इस संभावना को कदापि नहीं नकारा जा सकता। साथ ही साथ यह भी उद्देश्य हो सकता है कि NDA में अंतर्विरोध को बढ़ावा दिया जाय।

क्या मोदी एक दिखावे के दांत वाले प्रधानमंत्री होंगे

चाहे विपक्ष हो, सहयोगी दल हो या मीडिया हो लगभग यही समझने-समझाने का प्रयास कर रही है कि अबकी बार गठबंधन की सरकार में मोदी एक दिखावे के दांत वाले प्रधानमंत्री होंगे। उनके पास वास्तव में निर्णय लेने की शक्ति नहीं होगी और अधिकतर सहयोगी दल टांगखिंचाई करने में सफल होगा।

सबसे पहली बात यह है कि मोदी और भाजपा पहले इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं कि जदयू या TDP के खिसक जाने से सरकार खतड़े में आ जायेगी इस संभावना को समाप्त कर दिया जाय। प्राप्त समाचारों के अनुसार अन्य छोटे दलों और निर्दलीय सांसदों का समर्थन प्राप्त करते हुये NDA 300 के आंकड़े को पार करते हुये 303 पर पहुंच चुकी है और ये उन दोनों दलों को संकेत है कि वो किंगमेकर नहीं हैं।

हम तीन बिंदुओं पर विचार करते हुये समझने का प्रयास करेंगे कि मोदी सरकार 3.0 कितनी दुर्बल हो सकती है और उसकी कितनी टांगखिंचाई की जा सकती है।

  1. शेर यदि घायल भी हो जाये तो उसकी शक्ति कितनी होती है, क्या गीदड़ घायल शेर का शिकार कर सकता है, इसका एक दूसरा पहलू भी है कि “चोटाहल (चोट खाया) सांप कितना खतरनाक होता है”
  2. दूसरी बात यह भी समझने की है की सभी विश्लेषक बारगेनिंग बारगेनिंग बारगेनिंग तो चिल्ला रहे हैं किन्तु अंतरराष्ट्रीय बारगेनर मोदी की बारगेनिंग पॉवर क्या है ?
  3. तीसरा तथ्य यह है कि शक्ति एक ऐसी चीज है जो अभ्यास करने से बढ़ती है और अभ्यास छोड़ने से घटती है क्या अभी भी मोदी इस सत्य को स्वीकार नहीं करेंगे या नहीं समझ पाये हैं ?

प्रथम बिंदु : प्रथम बिंदु यह है कि क्या मोदी जो दो कार्यकाल में शेर बन चुके हैं वह शेर घायल हो चुका है अथवा पिंजड़े में बंद हो गया है ? थोड़ा घायल तो अवश्य हो गया है किन्तु पिंजड़े में बंद नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मोदी उस सिंह के मृगेंद्र के समान हो गया है जो थोड़ा घायल हो भी गया हो तो भी मात्र दहाड़ से ही गीदड़ों के झुंड को भगा सकता है, और यदि कोई गीदर घायल समझकर एक निश्चित सीमा के अंदर आ जायेगा तो बस एक छलांग में उसका काम-तमाम हो जायेगा।

NDA का आंकड़ा 303 पर पहुंचने का क्या तात्पर्य है ?

  • 303 – 12 = 291,
  • 303 – 16 = 287,
  • 303 – (12+16) = 275

कुछ बातें संकेत मात्र से ही समझायी जाती है और मोदी की तो यह विशेषता है कि संकेत से ही समझाते हैं। वैसे गंभीर लोगों का यह एक बड़ा गुण होता है कि वो सांकेतिक रूप से समझाने की कला में निपुण होते हैं और उनके इसी विशेषता के कारण क्रुद्ध भी नहीं होता है और जो समझने की बात होती है वह समझ भी जाता है और इतनी गहराई से समझ जाता है कि शब्दों द्वारा समझाने पर कभी नहीं समझ पाये।

सरकार बनने से पहले ही सहयोगी दलों को यह समझा दिया गया है कि कौन कितने पानी में है और किसका पैजामा कितना बड़ा है। बड़ी बात ये है कि यह समझाने के लिये कोई कुछ बोला भी नहीं। 303 से आगे बढ़ते हुये 325 पहुंचने में भी अधिक समय नहीं लगेगा यदि यह करने का विचार कर लें तो। साथ ही सबसे बड़ी बात जो है वो यह कि यदि मोदी सरकार गिरने की बात आयेगी तो उसे बचाने के लिये कई सांसद सदस्यता का भी त्याग कर देंगे और उसमें कुछ कांग्रेसी सांसद भी हों तो बड़ी बात नहीं होगी।

द्वितीय बिंदु : द्वितीय बिंदु बारगेनिंग वाली बात है, यत्र-तत्र सर्वत्र यही चर्चा देखी जा रही है कि सब अपनी-अपनी मांगों के लिये बारगेनिंग करेंगे। लेकिन ये मात्र सरकार चलाने के लिये परस्पर समझौता मात्र है और कौन कितना अधिक लाभ ले सकता है। गठबंधन की सरकार में बारगेनिंग सरकार बनने से लेकर सभी निर्णयों तक देखा जाता है यह सत्य है।

किन्तु मोदी कितना बड़ा बारगेनर है यह किसी के समझ में ही नहीं आ रहा है, जबकि मोदी के बारगेनिंग पॉवर का बखान पाकिस्तान भी कर चुका है कि रूस से कच्चा तेल लेकर रिफाइन करके भारत अमेरिका बेचने लगा है। नितीश, नायडू राष्ट्रीय बारगेनर हो सकते हैं, किन्तु उनके सामने जो है वह अंतरराष्ट्रीय बारगेनर है। सरकार बनने से पहले ही NDA का आंकड़ा 303 करके मोदी ने अपना ये पॉवर भलीभांति समझा दिया है।

लेकिन इसके बाद भी जिन्हें समझ में नहीं आया होगा उन्हें भी कुछ ही दिन सरकार चलने के बाद समझ में आ जायेगा कि आगे के निर्णय वही होंगे जो देशहित में होगा।

तृतीय बिंदु : तृतीय बिंदु शक्ति वृद्धि और ह्रास का सूत्र है जो मोदी समझ गये होंगे और आगे से शक्ति वृद्धि का अभ्यास आरम्भ कर देंगे। शक्ति का एक सिद्धांत है कि अभ्यास करते रहने से, प्रयोग करते रहने से वृद्धि को प्राप्त होती है और अभ्यास व प्रयोग छोड़ देने से ह्रास होती है। मोदी को दो कार्यकालों में अपार शक्ति प्राप्त हुई थी किन्तु मोदी ने कई शक्तियों का प्रयोग नहीं किया अपितु अपनी सहनशक्ति का ही प्रयोग करते रहे और बढ़ाते रहे जिसका परिणाम लोकसभा चुनाव में शक्ति का ह्रास होना है।

दो-दो बार दिल्ली को महीनों तक घेर कर रखा गया, दिल्ली का दंगा हुआ, तिरंगे का अपमान किया गया, बंगाल में चुनावी हिंसा की घटनायें होती ही रही, खान मार्केट गैंग नग्ननृत्य करते रहे, लेकिन मोदी सरकार ने शक्ति का नहीं सहनशक्ति का प्रयोग किया। मोदी की सहनशक्ति तो बढ़ गयी किन्तु शक्ति प्रयोग करने की इच्छा हुयी किन्तु तब तक शक्ति रुष्ट हो गयी और नयी सरकार में मोदी के पास कई शक्तियां नहीं हैं।

उस काल में आवश्यक होने पर भी जिन विशेष शक्तियों का मोदी ने प्रयोग नहीं किया था आज मोदी यदि उन शक्तियों का प्रयोग करना चाहे तो वो शक्तियां मोदी के पास हैं ही नहीं। आज वो शक्तियां रुष्ट होकर साथ छोड़ चुकी हैं और पुनः प्राप्त करने के लिये अभ्यास की आवश्यकता होती है संभवतः मोदी यह बात समझ गये होंगे और अबकी बार शक्तियों का अभ्यास करके पुनः अर्जित करेंगे।

एक पहलवान भी यदि अभ्यास और दंगल छोड़ दे तो वह पहलवान नहीं रह जाता, एक वो व्यक्ति जो पहलवान नहीं है किन्तु अभ्यास करने लगे तो पहलवान बन जाता है। शक्ति का यह सिद्धांत अतिसरल है और मोदी समझ गये होंगे यह अपेक्षा की जा सकती है।

मोदी का यह कार्यकाल अभ्यास करके पुनः शक्ति अर्जित करने का है और ऐसा नहीं हो सकता कि ये सिद्धांत मोदी को समझ में नहीं आया होगा अर्थात मोदी इस बार जीतनी शक्ति प्राप्त है उसका अभ्यासात्मक प्रयोग करते देखे जायेंगे। जिसका अर्थ यही है कि मोदी निश्चित रूप से इस कार्यकाल में नये रूप में कार्य करते हुये देखे जायेंगे।

एक तथ्य यह भी है कि सामान्य व्यक्ति यदि अभ्यास करके पहलवान बनना चाहे तो उसे बहुत प्रयास करने की आवश्यकता होती है। किन्तु यदि कोई पहलवान जो अनभ्यास के कारण निर्बल हो गया हो तो उसे पुनः पहलवान बनने में अधिक अभ्यास की आवश्यकता नहीं होती, अर्थात अल्पप्रयास से ही खोई शक्तियां पुनः प्राप्त हो जाती है। यदि मोदी शक्तिप्रयोग का अभ्यास करने लगें तो शीघ्र ही पुनः उन शक्तियों को भी अर्जित कर सकते हैं जो रुष्ट होकर त्याग कर चुकी है।

और आशा यही है, अर्थात जो लोग यह समझने का भ्रम पाल रहे हैं कि मोदी इस कार्यकाल में बड़े निर्णय नहीं ले सकते तो उनका भ्रम अतिशीघ्र ही टूटने वाला है।

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