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बेल का खेल हो गया फेल, चढ़ गये केजरी लालू की रेल

बेल का खेल हो गया फेल, चढ़ गये केजरी लालू की रेल

बेल का खेल हो गया फेल, चढ़ गये केजरी लालू की रेल

केजरीवाल को ये बात पिछले दिन ही समझ में आ गयी थी कि अब कोई दांव-पेंच काम नहीं आयेगा, फिर याद आये लालू प्रसाद यादव। लालू प्रसाद यादव स्वास्थ्य को लेकर जेल से बाहर हैं, केजरीवाल ने भी लालू प्रसाद का के पदचिह्नों पर बढ़ने का प्रयास किया किन्तु ये भी काम नहीं आया। अब केजरीवाल को एक मामले में नहीं दो-दो मामले में बेल लेने की आवश्यकता होगी और यही बात उन्हें परेशान कर रही थी जिसके कारण लालू प्रसाद के पदचिह्नों पर चलने का प्रयास किया।

बेल का खेल हो गया फेल, चढ़ गये केजरी लालू की रेल

केजरीवाल को अब CBI ले गई है और यदि CBI की अभिरक्षा में भी भेज दिया गया तो अब बाहर निकलना निश्चित रूप से कठिन हो गया है। पहले तो मात्र ED के मामले में बेल के लिये दौड़-भाग किया जा रहा था। किस प्रकार से राउस एवेन्यू कोर्ट से बेल लेने में सफल हो गये इसका भेद तो ED दिल्ली उच्च न्यायालय में खोल चुकी है। लेकिन बेल के विरोध में जैसे ED उच्च न्यायालय गयी थी उसी प्रकार केजरी सर्वोच्च न्यायालय चले गये थे। संभवतः जैसे पिछली बार चुनाव प्रचार के लिये कृपापात्र बने थे पुनः आश शेष थी।

सर्वोच्च न्यायालय से कृपाप्राप्ति की आश पर पानी फेरने के लिये फिर CBI भी कूद गई। ऐसा AAP के नेता भी आरोप लगा रहे हैं जो सही भी लगता है। लेकिन उस आरोप लगाने में अपना भेद भी खोल रहे हैं कि कहीं न कहीं केजरीवाल को बाहर निकालने के लिये कुछ खेला कर रहे थे जो केंद्रीय संस्था भांप चुकी थी और खेल को फेल करने के लिये CBI अचानक से कूद गई। यदि ED के मामले में बाहर हो भी जायें तो भी CBI के मामले में अंदर ही रहना होगा।

ये बात केजरीवाल को भी समझ में आ गयी और इसी कारण सर्वोच्च न्यायालय में जो ED के उच्च न्यायालय जाने के विरोध में जो याचिका लगाई थी उसे वापस ले लिया। दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक तरफ राउस एवेन्यू कोर्ट से मिली बेल को निरस्त कर दिया तो दूसरी तरफ सर्वोच्च न्यायालय से याचिका भी वापस ले लिया। क्योंकि अब कुछ नया रास्ता निकाला गया है।

लालू के पदचिह्नों पर बढ़ने लगे केजरीवाल

अब केजरीवाल को ऐसा लगने लगा है कि इस तरह वो बाहर आने से रहे कोई नई जुगाड़ करनी होगी। नई जुगाड़ की तलाश में थे तो लालू जी याद आ गये। लालू प्रसाद दण्डित अपराधी होने के बाद भी स्वास्थ्य के कारण जेल से बाहर हैं। यद्यपि सामान्य लोग बाहर नहीं हो सकते किन्तु नेताओं की बात अलग होती है। केजरीवाल को भी लगा कि अब एक ही रास्ता है जो बाहर को जाता है और वो रास्ता है स्वास्थ्य को आधार बनाना।

केजरीवाल का इतिहास ऐसी नौटंकियों से भरा पड़ा है कि स्वास्थ्य बिगड़ने की जो चर्चा होती देखी गयी वह भी एक नौटंकी हो सकता है इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता, भले ही केजरीवाल को वास्तव में स्वास्थ्य संबंधी समस्या क्यों न हो। ऐसा कदापि नहीं कहा जा सकता कि केजरीवाल को स्वास्थ्य संबंधी समस्या नहीं है, किन्तु राउस एवेन्यू कोर्ट में जो स्वास्थ्य बिगड़ने का प्रकरण है उसे नौटंकी कहा जा सकता है और अधिक संभावना यही लगती है। कारण कि

जिसे भी इस प्रकार के रोग होते हैं जैसे शुगर, अस्थमा, रक्तचाप आदि उसे ज्ञात होता है कि यदि दवा नहीं लिया तो स्वास्थ्य तुरंत बिगड़ जायेगा। यदि अगले दिन अस्वस्थ हैं यह दिखाने की आवश्यकता है तो कब से दवा लेना बंद करना है, किस खाद्य-पेय से एलर्जी है जिसे खाना-पीना है ये बातें पता होती है और ऐसा करना कोई बड़ी बात नहीं है, उसमें भी जब केजरीवाल जैसा आदमी हो। फिल्मों में ऐसे लोगों को ही तो हार्ट-अटैक का नाटक करते दिखाया जाता है।

केजरीवाल की नौटंकी

एक सामान्य व्यक्ति ऐसा नहीं करता लेकिन एक राजनीतिक व्यक्ति ऐसा ही करता है। कानून को चकमा देने के अनेकों हथकंडे अपनाता है। यहां एक और तथ्य स्पष्ट करना आवश्यक है कि केजरीवाल वास्तव में अस्वस्थ हों इसे भी नहीं नकारा जा सकता, लेकिन भेड़िया आया कहानी के पात्र बन चुके हैं इस कारण उनका स्वास्थ्य यदि वास्तव में भी बिगड़ गया हो तो भी ऐसा लगता है कि नौटंकी है। यद्यपि कोई भी इस विषय में खुलकर यह नहीं कह सकता कि ये नौटंकी है और वो लोग भी जिन्हें ज्ञात हो कि ये नौटंकी ही है संवेदना ही प्रकट करेंगे और करते देखे गये।

केजरीवाल के नौटंकी का ऐसा इतिहास रहा है कि इन्हें कई लोग नौटंकीवाल भी कहते देखे जाते हैं। नौटंकी की संभावना आखिर कैसे बनती है यह भी तो विचार करना चाहिये। ऐसा तो नहीं हो सकता कि जो मुंह में आये बोल दो। आईये अब समझने का प्रयास करते हैं की नौटंकी की संभावना कैसे बनती है ?

नौटंकी की संभावना

ऐसा हो सकता है या नहीं यह पहले समझ चुके हैं लेकिन फिर भी स्पष्ट कर दूँ कि यदि इस प्रकार के किसी स्वास्थ्य समस्या का पीड़ित व्यक्ति हो तो उसे नियमित रूप से दवा लेनी पड़ती है, आहार के मामले में कई खाद्य-पेय पदार्थों के सेवन से बचा जाता है, कई वस्तुयें ऐसी भी होती है जो खाद्य-पेय न हो फिर भी उससे एलर्जी होती है।

यदि वह अस्वस्थ व्यक्ति किसी विशेष कालखंड में अपनी बीमारी को बढ़ाना चाहे तो बढ़ा सकता है, इसके लिये दवा नहीं लेगा, वर्जित खाद्य-पेय पदार्थ का सेवन करेगा, एलर्जी के अनुसार गतिविधि करेगा और इनमें से कोई एक तरीका का सहारा लेकर भी स्वयं का स्वास्थ्य बिगाड़ा जा सकता है। ये कोई बड़ी बात नहीं है और केजरीवाल जैसे राजनीतिक व्यक्ति के लिये तो कुछ भी नहीं है। हां सामान्य व्यक्ति को ऐसा लग सकता है कि कोई जान-बूझ कर अपना ही स्वास्थ्य खराब नहीं कर सकता।

उपरोक्त प्रकरण में एक तथ्य यह भी है कि केजरीवाल ने अभी तक दिल्ली के मुख्यमंत्री का पद नहीं छोड़ा है। सामान्य रूप से देखा यही जाता है कि यदि कोई गंभीर बीमार हो जाये तो सबसे पहले काम छोड़ता है, छुट्टी लेता है, आराम करता है। दूसरा तथ्य यह भी है कि इससे पूर्व जब केजरीवाल चुनाव प्रचार के नाम पर बाहर आये थे तो चुनाव प्रचार में कभी नहीं लगा कि वो गंभीर रूप से अस्वस्थ हैं। हां जब आत्मसमर्पण करने की बात आयी तो अवश्य रोग का जिन्न निकला था जो आकार बढ़ा रहा है।

निष्कर्ष : केजरीवाल के स्वास्थ्य बिगड़ने का प्रकरण जो है उसे न ही स्पष्ट रूप से नौटंकी कहा जा सकता है और न ही यह माना जा सकता है कि वास्तव में केजरीवाल को गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। जहां तक संभावना की बात है तो अधिक संभावना यही लगती है कि केजरीवाल ने लालू प्रसाद का अनुसरण करते हुये जान-बूझ का स्वास्थ्य बिगड़ने के रामबाण का प्रयोग किया है और बाहर निकलने का यह एक ऐसा विषय है जिसको झुठलाना ED-CBI के लिये सरल नहीं होगा।

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