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कांग्रेस और इंडि गठबंधन का आतंकवाद विरोध, छद्म प्रतिक्रिया है और मात्र एक ढोंग

छद्म प्रतिक्रिया है और मात्र एक ढोंग

राहुल गांधी ने रियासी के आतंकवादी कुकृत्य की आलोचना किया। कायरतापूर्ण और दुःखद बताते हुये शोक संतप्त परिजनों के प्रति गहरी संवेदनाएं भी देते हैं। किन्तु आतंकवादियों के विरुद्ध न तो कोई कठोर कार्रवाई की मांग करते हैं न ही आतंकवाद की निंदा करते हैं। हाँ सुरक्षा व्यवस्था अर्थात सुरक्षा बलों को घेरना नहीं विसरते। वाह राहुल वाह, नहीं बदलेंगे राह। ये आतंकवाद की निंदा नहीं कर सकते, आतंकवाद के विरुद्ध सरकार को नहीं घेर सकते भगवा आतंकवाद अवश्य गढ़ सकते हैं।

कांग्रेस और इंडि गठबंधन का आतंकवाद विरोध, छद्म प्रतिक्रिया है और मात्र एक ढोंग

कांग्रेस और आतंकवाद का संबंध देश से छुपा नहीं है और कांग्रेस के साथ ही इंडि गठबंधन के आतंकवाद प्रेम का भेद भी देश के समक्ष खुल चुका है। कांग्रेस ने भगवा आतंकवाद गढ़ने का प्रयास किया था, आतंकवादी की फांसी रोकने के लिये रात के 2 बजे सर्वोच्च न्यायालय खुलवाया था, आतंकवादी के फांसी पर सोनियां गाँधी रोई थी। सपा ने आतंकियों के दण्ड क्षमा करने का प्रयास किया था जिस पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय को कहना पड़ा था कि पद्म पुरस्कार दोगे क्या। TMC के भद्रलोक में आतंकवाद को दूसरा रूप जिहाद चरम पर है।

जम्मू-कश्मीर के रियासी में हुयी आतंकवादी घटना की औपचारिक निंदा (दिखावे के लिये) भी ये लोग नहीं कर सकते। ऐसी घड़ी में भी सुरक्षा व्यवस्था अर्थात सुरक्षा बलों पर ही प्रश्न चिह्न लगायेंगे। और इसका सबसे बड़ा प्रमाण राहुल गांधी का X पोस्ट है।

राहुल गांधी लिखते हैं : “जम्मू-कश्मीर के रियासी ज़िले में, शिवखोड़ी मंदिर से तीर्थयात्रियों को ले जा रही बस पर हुआ कायरतापूर्ण आतंकी हमला अत्यंत दुखद है। यह शर्मनाक घटना जम्मू-कश्मीर के चिंताजनक सुरक्षा हालातों की असली तस्वीर है। मैं सभी शोक संतप्त परिजनों को अपनी गहरी संवेदनाएं व्यक्त करता हूं और घायलों के जल्द से जल्द ठीक होने की आशा करता हूं। आतंकवाद के विरुद्ध पूरा देश एकजुट खड़ा है।”

इसी प्रकार कांग्रेस X पोस्ट करके लिखती है : “जम्मू-कश्मीर में श्रद्धालुओं से भरी बस पर आतंकी हमले की खबर है। इस कायराना हमले में 10 लोगों की मौत की सूचना है और कई लोग घायल हैं। यह दुखद और शर्मनाक है। कांग्रेस परिवार शोक संतृप्त परिवार के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता है। ईश्वर से प्रार्थना है कि वे दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें और घायलों को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्रदान करें।”

कुछ अन्य विपक्षी नेताओं ने भी इसी प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त किया है, लेकिन किसी ने न तो आतंकवाद की निंदा किया न ही आतंकवाद के विरुद्ध कठोर प्रतिक्रिया अर्थात ईंट का जबाव पत्थर से देने की मांग की।

कायरतापूर्ण कुकृत्य

कायरतापूर्ण कुकृत्य, कायराना हरकत आदि क्या है ? आतंकवादियों का तो यही काम सब दिन से रहा है। कायराना हरकत तो उसे कहा जा सकता है न जब शत्रु देश की सेना ऐसा कुकृत्य करे। आतंकवादी किसी देश की मान्यता प्राप्त सेना नहीं होती, भले ही आतंरिक समर्थन देते रहें, या सेना में भी आतंकवादी घुसपैठ कर ले। आतंकवादियों के लिये जब कायरतापूर्ण शब्द का प्रयोग करते हैं तो उसका वास्तविक अर्थ भिन्न होता है।

और प्रश्न यह है कि कांग्रेस व विपक्षी जो कायरतापूर्ण बोलते हैं तो उसका अर्थ कहीं वास्तविक अर्थ से तो सम्बंधित नहीं होता ?

आतंकवादियों के लिये जब कायरतापूर्ण शब्द का प्रयोग होता है तो उसका तात्पर्य छोटा कांड होता है। आतंकवादियों ने यदि बड़ी घटना न की हो छोटी घटना की हो तो उसे कायरतापूर्ण कहा जा सकता है। कुकृत्य करना आतंकवादियों के लिये कायरतापूर्ण नहीं होता उनका काम ही यही है।

कायरतापूर्ण के संबंध में सरकार और सत्ता पक्ष भी यही बोलती दिखती है और कर्यरतापूर्ण का अर्थ समझने में असफल प्रतीत होती है। सत्ता पक्ष के नेता भी इसे कायरतापूर्ण बोलते देखे जा रहे हैं। आतंकवादी शत्रुराष्ट्र की घोषित सेना नहीं है जो कायरतापूर्ण कहा जाय। कायरतापूर्ण कहने से पहले उसमें शत्रुराष्ट्र को भी जोड़ना आवश्यक होता है। जब यह सिद्ध हो जाये कि शत्रुराष्ट्र ने आतंकवादियों के द्वारा कुकृत्य किया है तो शत्रुराष्ट्र का कायरतापूर्ण कुकृत्य कहा जा सकता है।

दुःखद घटना

प्रत्येक दुर्घटना दुःखद होती है। दुःखद होने का तात्पर्य उस घटना से होता है जिसके कारण दुःख की प्राप्ति हो। दुःखद घटना में रोना-धोना, शोक मनाना आदि किया जाता है। यदि बिना गोलीबारी के स्वयं भी बस गिर जाती, दुर्घटनाग्रस्त हो जाती तो भी दुःखद ही होता।

  • जब आतंकवादियों ने घात लगाकर ऐसा किया हो तब भी मात्र दुःखद ही है क्या। फिर सामान्य दुर्घटना और आतंकी कुकृत्य में अंतर क्या है ?
  • जब आतंकवादी कुकर्म (हमला) हो तो वो दुर्घटना मात्र दुःखद नहीं होती प्रतिशोधात्मक भी होती है। यदि रोने-धोने और शोक मनाने लगेंगे तो प्रतिशोध कौन लेगा ?
  • राहुल गांधी सहित कांग्रेस और सभी विपक्षी मात्र दुःखद घटना ही कहते हैं, प्रतिशोधात्मक नहीं कहते। आतंकवाद की भर्त्सना तक भी नहीं करते अपितु सुरक्षा व्यवस्था अर्थात सुरक्षा बल पर ही प्रश्न चिह्न लगाते हैं।

शर्मनाक घटना

सुरक्षा व्यवस्था के लिये शर्मनाक है न कि आतंकवादियों के लिये। यदि आतंकवादियों के लिये शर्मनाक कहा जाय तो उन्हें उकसाना होगा कि इतनी छोटी दुर्घटना क्यों ? सुरक्षा व्यवस्था और सरकार के लिये शर्मनाक है और इस पर घेरने का तरीका यह होगा कि इसका प्रतिशोध लेने के लिये सरकार और सुरक्षा बलों पर दबाव बनाया जाय, न कि सरकार और सुरक्षा बलों का मनोबल तोड़ने का प्रयास करना।

आवश्यकता इसे शर्मनाक कहने की नहीं है अपितु इसकी है कि सरकार और सुरक्षा व्यवस्था से पूछा जा कि आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी ? प्रतिक्रिया सामान्य नहीं होनी चाहिये स्मरणीय होनी चाहिये जैसे सर्जिकल स्ट्राइक।

शोक संतप्त परिवार के प्रति संवेदना

यदि आप शोक संतप्त परिवार के लिये प्रतिशोधात्मक कार्रवाई की मांग और समर्थन नहीं कर सकते तो अपनी संवेदना को अपनी जेब में रखें। पीड़ित परिवारों को संवेदना मात्र नहीं चाहिये। कुकर्मियों का 72 हूरों के पास पहुंचना ही पीड़ित परिवारों के प्रति सच्ची संवेदना है। आप आतंकवाद केविरुद्ध और कठोर नीति की मांग क्यों नहीं करते ? आतंकवाद की भर्त्सना क्यों नहीं करते ? भर्त्सना या निंदा करने का तात्पर्य मात्र भर्त्सना करता हूँ, निंदा करता हूँ इतना बोलना नहीं होता है अपितु भर्त्सना और निंदा करने के लिये एक शब्दसमूहों का प्रयोग करना पड़ता है।

जो आतंकवाद के प्रेमी हैं पीड़ित परिवार उनकी संवेदना और कथित दुःख का क्या आचार बनायेंगे ? पीड़ित परिवारों को मात्र दुःख और संवेदना शब्द नहीं चाहिये, देश से व्यापक आर्थिक सहयोग मिले न मिले किन्तु क्रिया की प्रतिक्रिया मिलनी चाहिये। आर्थिक सहयोग मात्र करके “क्रिया की प्रतिक्रिया” से देश पीछे नहीं हट सकता।

क्रिया की प्रतिक्रिया

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस हो या पूरा विपक्ष कोई भी “क्रिया की प्रतिक्रिया” नहीं बोल पाये हैं। आतंकवाद के विरुद्ध दो शब्द नहीं बोल पाये हैं। बाध्य हैं इस लिये संवेदना और दुःखद शब्द बोल रहे हैं। बाद में यही आतंकवादियों का समर्थन/बचाव करते दिखेंगे। यदि आतंकवादियों को जीवित पकड़ लिया जायेगा तो न्यायालय में इन्हीं के अधिवक्ता नेता आतंकवादियों का केस लड़ेंगे, उसका बचाव करेंगे। यही लोग कहेंगे की गरीब का बेटा है, डॉक्टर है, इंजिनियर है, पढ़ा-लिखा है, भटका हुआ युवा है।

ये यूँ ही नहीं कि “मुंह में आया और बोल दिया” है इनका इतिहास ही ऐसा है। पर्याप्त प्रकरणों में इनकी यही स्थिति देखी गयी है। अब देश को कोई साक्ष्य नहीं चाहिये पुराने साक्ष्य ही पर्याप्त हैं।

  • सुप्रीम कोर्ट, गवर्नर और राष्ट्रपति से मेनन की याचिका खारिज कर दी गई थी फिर भी फांसी से कुछ देर पहले ही आधी रात को वकील प्रशांत भूषण समेत उसी खेमे के 12 वकीलों ने सर्वोच्च न्यायालय तक को खुलवाया था।
  • बाटला हाउस एनकाउंटर में दो आतंकवादी की मृत्यु हुयी थी और एक पुलिस इंस्पेक्टर भी वीरगति को प्राप्त हुआ था। यदि पुलिस के लिये रोना होता तो देशभक्ति होती, रोना आतंकवादी के लिये था, ये आतंकवाद प्रेम था। ये भेद खोलने वाला भी कोई और नहीं कांग्रेस के नेता ही थे। सलमान खुर्शीद ने कहा था कि बाटला हाउस एनकाउंटर की तस्वीरें देखकर सोनियां गांधी रोई थी।
  • अखिलेश सरकार द्वारा आतंवादियों के केस वापस लेने के प्रयास पर इलाहबाद उच्च न्यायालय ने कहा था “आज आप आतंकियों को रिहा कर रहे हैं, कल आप उन्हें पद्म भूषण भी दे सकते हैं”

इनका आतंकवाद प्रेम पहले ही जगजाहिर हो चुका है और ये कभी भी आतंकवाद की भर्त्सना/निंदा नहीं कर सकते। ये लोग तत्काल बाध्य होने के कारण संवेदना शब्द मात्र बोल रहे हैं, कुछ ही दिनों में नकाब उतर जायेगा और आतंकवादियों का बचाव करते दिखने लगेंगे। यदि “क्रिया की प्रतिक्रिया” होगी तो उसकी निंदा करने लगेंगे, विरोध करेंगे। इसके अतिरिक्त अन्य अपेक्षा की ही नहीं जा सकती। ऐसे में झूठी संवेदना का क्या तात्पर्य है।

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