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भटकते मोदी खटाखट खटाखट खटाखट

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एक तथ्य पूर्णतः सिद्ध है कि पथिक ही भटकता है, घर में सोने वाला नहीं। जो बोल रहा हो वही बहकेगा जिसने मौन धारण कर रखा हो वो नहीं। हम यहां भटकते मोदी की चर्चा करने जा रहे हैं जिसमें उन दो प्रमुख वक्तव्यों कि चर्चा करेंगे जिसमें मोदी सटीक वक्तव्य नहीं दे पाये, भटकते दिखे ।

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सबसे पहली बात तो यही है कि यदि मोदी जी को यह भ्रम हो कि हम नहीं भटकते तो इस भ्रम से बाहर निकल जायें और यदि भटके हैं तो इसमें कोई बड़ी बात भी नहीं है वक्तव्य देते समय कोई भी भटक सकता है, त्रुटि कर सकता है। किन्तु यदि भटक गया हो त्रुटि हो गयी हो तो उसमें सुधार करने की आवश्यकता होती है न कि त्रुटि पर अड़ने की और विपक्षियों में ये दोष पाया जाता है कि कितनी भी त्रुटि करें गलती नहीं मानेंगे।

मोदी में भी अब यह दोष दिखाई देने लगा है और उसके लिये शक्ति संबंधी वक्तव्य है। शक्ति के संबंध में यहां दो अन्य आलेखों में चर्चा की जा चुकी है। प्रथम आलेख में जो शक्ति संबंधी तथ्य प्रस्तुत किया गया था अधिकारियों को सम्बोधित करते हुये मोदी ने उसका खंडन किया और स्वयं की त्रुटि को अस्वीकार किया।

प्रथम तथ्य तो यह है की PMO शक्ति का केंद्र है मोदी के नकारने से इस तथ्य को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। बीते दो कार्यकालों में प्रधानमंत्री ने आवश्यकता पड़ने पर भी शक्ति का प्रयोग नहीं किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि मोदी जब तीसरी बार प्रधानमंत्री बने तो अब शक्तियां स्वतः कम हो गयी है पहले कार्यकालों की तुलना में। जिस किसी भी विषय पर दो-तिहाई बहुमत की अपेक्षा होती है उसमें सफल होना संभव नहीं ये अलग बात है की रुष्ट शक्ति की आराधना-अभ्यास करके पुनः प्राप्त कर लिया जाय।

द्वितीय तथ्य यह है कि मोदी कहते हैं मैं शक्ति प्राप्त करना नहीं चाहता, ये पूर्ण रूप से त्रुटिपूर्ण है। यद्यपि मोदी अधिकारियों को समझाना यह चाह रहे थे कि शक्ति के मद से मदांध होने की संभावना है और इससे बचते हुये सेवाभाव से आगे बढ़ना है। लेकिन यह तथ्य समझाने में शक्ति की ही अवज्ञा करने लगे, भटकते दिखे। मोदी जी ब्रह्म भी स्वयं कुछ नहीं करता शक्ति ही करती है। एक शक्तिहीन मनुष्य भोजन भी नहीं कर सकता कर्म करने की तो बात ही अलग है।

मोदी से पिछले कार्यकाल में शक्तियों का उचित प्रयोग नहीं करने की गलती हुई थी।

शक्ति प्राप्त करना उद्देश्य नहीं हो ये अच्छी बात है, किन्तु शक्ति का दुरुपयोग हो अथवा उचित प्रयोग ही न हो दोनों अनुचित है। मोदी से पिछले कार्यकाल में शक्तियों का उचित प्रयोग नहीं करने की गलती हुई थी। और इसी कारण मोदी का कथन है कि मैं शक्ति प्राप्त करना नहीं चाहता। शंकराचार्य से भी शक्ति की उपेक्षा हुयी थी और अंत में उन्होंने “कुपुत्रो जायेत” वाली स्तुति करके क्षमायाचना भी किया था।

जहाँ तक राज्य की बात है तो राज्य शक्ति से ही संचालित होती है और यह सर्वकालिक सत्य है। यदि शक्ति कि अपेक्षा नहीं होती तो सेना, सुरक्षा बल क्यों होती है ? शक्तिहीन राज्य में अराजकता उत्पन्न हो जाती है। काम सेवाभाव से करें तो सोने में सुहागा है लेकिन शक्ति को नकारना उचित नहीं है। प्रधानमंत्री और मोदी को अलग-अलग रखा जाय तो प्रधानमंत्री शक्ति का केंद्र है मोदी शक्ति का केंद्र नहीं बनना चाहता हो अथवा रुष्ट शक्ति की प्रति अश्रद्धा प्रकट कर रहा है तो ये मोदी की त्रुटि है। बिना शक्ति के सेवा करना भी संभव नहीं है। मोदी जी भटकना बंद कीजिये।

इसी प्रकार मोदी ने उपरोक्त विडियो में ही एक और वक्तव्य दिया है जिसमें जनता के लिये कार्य करना भगवान की पूजा बताया है। मोदी के बोल “मेरे लिये 140 करोड़ नागरिक नहीं हैं, मेरे लिये 140 करोड़ परमात्मा का रूप है। और जब मैं सरकार में बैठकर कोई निर्णय करता हूँ तो मैं सोच रहा हूँ कि मैंने आज 140 करोड़ देशवासियों को इस रूप में मैंने पूजा की है और उनके चरणों में मैं इस योजना के रूप में एक पुष्प चढ़ाया है और इस भाव से मैं काम करता हूँ।”

मोदी जी ये भक्ति है और “सिया राममय सब जग जानी” का भाव है, भक्ति और कर्म का उत्कृष्ट संयोजन है। यदि किसी प्रवचन में यह बोला जाय तो उत्तम है, व्यक्तिगत मोदी बोले तो भी उत्तम है, प्रधानमंत्री के लिये ऐसा बोलना अनुचित है। कानून का शासन, संविधान सर्वोपरि सभी तथ्य सत्य हैं और सभी यही सिद्ध करते हैं कि सत्ता की शक्ति प्रधानमंत्री के पास होती है अर्थात शासक प्रधानमंत्री ही होता है।

एक भक्त जो भी करे उसमें परमात्मा की सेवा समझकर ही करे यह आवश्यक है। किन्तु जब शासक और जनता की बात आती है तो शासक के लिये जनता को परमात्मा का रूप मानकर नहीं पुत्र मानकर पालन करने का सिद्धांत है। आपके पास यह अधिकार नहीं है कि आप शास्त्र वचनों की अवज्ञा करें, शास्त्र की अवहेलना करें।

अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि शासक प्रजा को पुत्रवत ही क्यों माने, परमात्मा क्यों नहीं ? पुत्र को डांटा जा सकता है, दण्डित किया जा सकता है, परमात्मा को नहीं। परमात्मा पर शासन नहीं किया जा सकता, क्योंकि परमात्मा सर्वोपरि पद पर अधिष्ठित-और-अधिष्ठान दोनों है। मोदी भक्त हो सकता है किन्तु प्रधानमंत्री शासक ही होगा और इसलिये प्रधानमंत्री के लिये 140 करोड़ जनता पुत्रवत होना चाहिये।

मोदी जब कभी भी जनता के बीच उपस्थित हो तब परमात्मा मान सकता है, जब मन की बात करे तो परमात्मा मान सकता है, किन्तु जब प्रधानमंत्री के रूप में कार्य कर रहा हो तब पुत्रवत ही समझना चाहिये क्योंकि यही शास्त्रों का वचन है।

  • पति यदि पत्नी को देवी मान ले तो रति कैसे करेगा ? पतिधर्म का निर्वहन कैसे करेगा ? आज्ञा कैसे देगा ?
  • पिता यदि पुत्र को परमात्मा मान ले तो आवश्यकता पर डांटेगा कैसे ? कभी पिटाई की आवश्यकता हुई तो कैसे पीटेगा ? आज्ञा कैसे देगा ?
  • शासक यदि प्रजा को परमात्मा मान ले तो शासन कैसे करेगा ? आज्ञा कैसे देगा ? दंडित कैसे करेगा ?
  • यदि प्रधानमंत्री के लिये यही सिद्धांत हो तो राष्ट्रपति और न्यायाधीश के लिये क्यों नहीं होगा ?

भटकाव क्यों

ये सत्य है कि दोनों तथ्यों में सैद्धांतिक रूप से भटकाव है किन्तु वास्तव में उद्देश्य कुछ समझाना था, अधिकारियों में सेवा भाव उत्पन्न करना था। ये सामान्य सी बात है कि कोई बड़ा पद मिलते ही स्वयं को न जाने क्या-क्या समझने लगता है ? मदांध हो जाता है और कार्य करने की अपेक्षा शक्तियों का दुरुपयोग, भ्रष्टाचार आदि करने लगता है। मोदी के वक्तव्य का वास्तविक उद्देश्य अधिकारियों के मन से बाबू वाले भाव को हटाना, सेवक भाव का स्थापन करना था।

मोदी के समझाने के तरीके में त्रुटि हो सकती है, उद्देश्य में त्रुटि नहीं है। लेकिन समस्या वहां उत्पन्न होती है जहां मोदी त्रुटि को स्वीकार करने से नकार दें। यदि ऐसा करें तो वह निश्चित रूप से भटकना ही सिद्ध होगा।

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