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मीडिया में कोई काला धब्बा नहीं है, पूरा चेहरा ही कालिख पुता है

घृणित मीडिया

हम इस आलेख में मुख्य रूप से लोकसभा चुनाव के सन्दर्भ में बुरका पहनी मीडिया को समझने का प्रयास करेंगे। यह समझेंगे कि मीडिया ने जनता की आंखों में कैसे धूल झोंकने का प्रयास किया है। इस आलेख के तथ्य सतीश मिश्रा के वक्तव्य से लिये गए हैं तो उन्होंने THE MANISH THAKUR SHOW पर लाइव बताया था। हमारी ओर से तथ्य की पुष्टि नहीं की गयी है किन्तु ऐसा माना जाता है कि सतीश मिश्रा के सभी आँकड़े और तथ्य प्रामाणिक होते हैं।

मीडिया में कोई काला धब्बा नहीं है, पूरा चेहरा ही कालिख पुता है

मीडिया के ऊपर राष्ट्रवादियों का आरोप बहुत पुराना है। लोकसभा चुनाव 2024 के चुनावी भाषणों और मीडिया को दिये गये साक्षात्कारों में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार मीडिया को बताया है कि वो वही चीज देखते व दिखाते हैं जो एक विशेष गैंग ने निर्धारित कर रखा है। मीडिया को वास्तविकता से कुछ भी लेना-देना नहीं है, TRP भी बस एक बहाना है, पक्षपात का जमाना है, सनातन पर निशाना है।

कई बार एक छोटा दोष बताने के लिये “दाल में काला” या “काला धब्बा” आदि का प्रयोग किया जाता है। किन्तु जो कोई अनैतिक क्रियाकलापों में आकंठ डूबा हो तो कहा जाता है “पूरी की पूरी दाल ही काली है” या “पूरा चेहरा ही काला है”, इसका तात्पर्य होता है कि हो सकता है थोड़े-बहुत अच्छे काम किया हो लेकिन मुख्य रूप से वो बुरे कर्मों में ही लिप्त है।

मीडिया पर प्रश्नचिह्न नया नहीं है, लगभग सभी राष्ट्रवादी “दलाल मीडिया”, “खैराती”, “खान मार्केट गैंग” इत्यादि सम्मान बहुत काल से देते रहे हैं। यद्यपि मीडिया ने कुछ सुधार करने का प्रयास अवश्य किया है और यह इस तथ्य से सिद्ध होता है कि राहुल गांधी ने भी मीडिया पर प्रश्नचिह्न खड़ा किया है, लेकिन वास्तव में सुधर गयी हो ऐसा दूर-दूर तक नहीं दिखता।

स्वाती मालीवाल दुर्व्यवहार प्रकरण में मीडिया ने सबसे बड़ा सच छुपाया

आगे की चर्चा से पहले हम स्वाती मालीवाल से हुये दुर्व्यवहार प्रकरण में लगभग पूरी मीडिया ने एक सबसे महत्वपूर्ण तथ्य को छुपाया था और वो है “केजरीवाल के PA का अपदस्थ होना” ये वो महत्वपूर्ण तथ्य है जिससे सीधे-सीधे केजरीवाल निशाने पर आ जाते हैं। एक अपदस्थ PA मुख्यमंत्री आवास में बिना मुख्यमंत्री की इच्छा के कैसे जा सकता है ?

आज 15 दिन बाद ऑप इंडिया में भी ये भेद तब प्रकाशित किया गया जब पुलिस ने उजागर किया, अन्यथा स्वाती मालीवाल दुर्व्यवहार प्रकरण की सबसे महत्वपूर्ण बात दब जाती। ऑप इंडिया के अनुसार “पुलिस ने कोर्ट को बताया – विभव कुमार को अरविंद केजरीवाल के PA के पद से हटाए जाने के बावजूद CM आवास में सब उससे आदेश ले रहे थे, ये दिखाता है कि वो प्रभावशाली है।” ये प्रश्न THE MANISH THAKUR SHOW पर सतीश मिश्रा ने पहले दिन ही उठाया था।

यहाँ एक गंभीर प्रश्न उठता है जो मीडिया को संदेहास्पद सिद्ध करने वाला है : “क्या मीडिया ने जानबूझ कर अपने पालनहार केजरीवाल को बचाने के लिये इस तथ्य को छुपाया की PA विभव कुमार अपदस्थ था”, मीडिया ऐसा किस अधिकार से कर सकती है जब स्वयं को लोकतंत्र का चतुर्थ स्तम्भ घोषित करती है। यदि मीडिया लोकतंत्र का चतुर्थ स्तम्भ है तो सही सूचनाओं को छिपा नहीं सकती।

चुनाव में मीडिया सच छुपाकर जनता को धोखा देती है

अब हम लोकसभा चुनाव 2024 के संबंध में समझेंगे कि मीडिया ने कैसे जनता के साथ छल किया ! यह पहले भी स्पष्ट किया जा चुका है कि इन तथ्यों की पुष्टि हमने अपने स्तर से नहीं किया है किन्तु प्रस्तुतकर्ता के तथ्य प्रामाणिक होते हैं ऐसा माना और देखा जाता है। यहां प्रस्तुत तथ्य THE MANISH THAKUR SHOW पर सतीश मिश्रा के द्वारा किये गये विश्लेषण से लिया गया है।

मीडिया को लोकतंत्र का चतुर्थ स्तम्भ कहा जाता है इस कारण लोकतंत्र के महापर्व चुनाव में मीडिया का महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व होता है जो उसे निभाना चाहिये। ये मीडिया का उत्तरदायित्व होता है कि वो चुनाव काल में सत्तापक्ष के कार्यकाल और विपक्ष जब सत्ता में थी तब के उसके कार्यकाल का तुलनात्मक विश्लेषण करके देश को बताये कि किसने क्या किया था।

2004 से 2014 तक UPA की सरकार थी और 2014 से 2024 तक भाजपा व NDA की सरकार रही। दोनों के 10 – 10 वर्षों का समान कार्यकाल था जहां दोनों की व्यापक तुलना की जा सकती थी। मतदाताओं को सही निर्णय लेने में तुलनात्मक विश्लेषण करके सहयोग करना लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ मीडिया का दायित्व था जो उसने नहीं किया।

यहां वो THE MANISH THAKUR SHOW का वो विडियो भी दिया गया है जिसके आधार पर आगे का विश्लेषण किया गया है।

सबसे पहली बात है कि विपक्षी दलों और मीडिया ने चुनाव का मुख्य दो विषय ही रहा : विकास नहीं हुआ और बेरोजगारी है, साथ ही एक मंहगाई को भी जोड़ लेते थे।

कांग्रेस की सरकार जब गई थी तब 2014 में 234 लाख मेगावाट उत्पादन क्षमता थी जिसे 10 वर्षों के मोदी काल में बढाकर 426 लाख मेगावाट जो कि लगभग दुगुना हो जाता है। कहां 60 साल का कार्यकाल और कहां 10 वर्षों का कार्यकाल।

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  • साढ़े उन्नीस करोड़ घरों में से सवा तीन करोड़ ग्रामीण घरों में नल से जल जा रहा था जिसे मोदी कार्यकाल में लगभग 12 करोड़ से अधिक घरों तक पहुंचाया गया।
  • 60 सालों में लगभग 1280 किलोमीटर प्रतिवर्ष था जो मोदी के कार्यकाल में 6000 किलोमीटर प्रतिवर्ष हो गया।
  • 60 सालों में लगभग 387 मेडिकल कॉलेज था जो लगभग 750 हो गई।
  • सामान्य अस्पतालों की 19817 थे जो 26000 से अधिक हैं।
  • 2014 में 80000 MBBS सीटें थी जो 2024 में 170000 हो गयी।
  • सेना बजट के नाम पर UPA सरकार ने कुल 13 लाख करोड़ देते थे और मोदी सरकार ने 38 लाख करोड़ दिये।
  • EPF0 में 2 करोड़ 93 लाख थे जो आज के समय साढ़े सात करोड़ हैं।
  • कृषि उत्पादन 2014 में 2.64 लाख मीट्रिक टन था आज के काल में 3.25 मीट्रिक टन हो गया।
  • 2014 में बैंकों का लाभ 70000 करोड़ था जो 2024 में 329000 करोड़ हो गया।
  • शेयर मार्केट जो 2014 में 66 लाख करोड़ की थी वह 2024 में 412 लाख करोड़ के पार हो गई।

बेरोजगारी : सबसे बड़ी बात कांग्रेस कितना रोजगार दिया जाता था रेलवे कर्मचारियों की संख्या से तुलना करें तो सारा भेद खुल जाता है। 2004 में अटल सरकार के कार्यकाल में रेलवे कर्मचारियों की कुल संख्या थी 1441500 जो कांग्रेस सरकार के दस वर्षों के कार्यकाल में घटकर 1334226 हो गई। नौकरी बढ़ी थी या घटी थी ?कांग्रेस के दस वर्षों के कार्यकाल में 107274 नौकरी रेलवे में कम हो गयी थी जबकि नौकरी के नाम पर लोगों के भूमि भी लिखवाई गयी थी।

2014 में रेलवे का राजस्व 140000 करोड़ था जो 2024 में बढ़कर 245000 करोड़ हो गया।

इस प्रकार से सभी क्षेत्र में तुलनात्मक विश्लेषण की आवश्यकता होती है। मीडिया का काम चुनाव के समय तुलनात्मक विश्लेषण होना चाहिये जिससे मतदाता सही निर्णय ले सकें। मीडिया ने तुलनात्मक विश्लेषण नहीं किया मात्र विपक्ष के अनुसार विकास, बेरोजगारी, मंहगाई जपती रही, विपक्ष के सुर में सुर मिलाती रही यह मीडिया को कटघरे में खड़ा करने वाला है।

यदि मीडिया जनता को सच नहीं बताती है, तुलनात्मक तथ्य नहीं बताती है तो वह निष्पक्ष कैसे मानी जा सकती है। उसे किस प्रकार लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जा सकता है जब वह विपक्ष के सुर में सुर मिलाने लगे। ये सच है कि मीडिया को भी अर्थ चाहिये लेकिन अर्थलोलुपता के कारण कोई अपना कार्य ही ईमानदारी से न करे यह स्वीकार्य नहीं हो सकता।

ये सब विश्लेषण करना तो लोकतंत्र का चतुर्थ स्तम्भ होने के कारण मीडिया का दायित्व बनता है। इसके अतिरिक्त उन तथ्यों का विश्लेषण तो यहाँ किया ही नहीं गया है कि किस प्रकार से मीडिया सनातन द्रोह का कार्य करती है।

निष्कर्ष : इस आलेख में अन्य ढेरों विषयों को छोड़कर केवल लोकतंत्र और राजनीति के परिप्रेक्ष्य में मीडिया के क्रियाकलापों की चर्चा की गयी है। मीडिया को लाकतंत्र का चतुर्थ स्तम्भ कहा जाता है किन्तु अपने दायित्वों का मीडिया निर्वहन नहीं करती है इसे स्पष्ट करने का प्रयास करते हुये तुलनात्मक अध्ययन करने का प्रारूप भी समझाया गया है।

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