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डायरेक्ट एक्शन डे पुनरावृत्ति की मात्र आशंका है या …

डायरेक्ट एक्शन डे पुनरावृत्ति की मात्र आशंका है या ...

डायरेक्ट एक्शन डे पुनरावृत्ति की मात्र आशंका है या ...

“डायरेक्ट एक्शन डे” भारत में भाईचारा, मिली-जुली संस्कृति और गंगा-जमुनी तहजीब कहने वालों के छल को उजागर करने वाली वो घटना है जिसमें पहले तो हिन्दुओं के टुकड़े किये गये थे और फिर भारत के टुकड़े। आज के हिन्दुओं को दुबारा बलि का बकड़ा बनाने के उद्देश्य से वो ऐतिहासिक घटना नहीं बताई जाती, सिखाया जाता है भाईचारा, मिली-जुली संस्कृति और गंगा-जमुनी तहजीब जो पाठ डायरेक्ट एक्शन डे के पहले भी पढ़ाया जाता था। “डायरेक्ट एक्शन डे” के पुनरावृत्ति की आशंका कितना सच और कितना झूठ यह तो समझना आवश्यक है।

डायरेक्ट एक्शन डे पुनरावृत्ति की मात्र आशंका है या …

इस तरह की चर्चा करने वालों को देश से लेकर विदेशों तक कट्टर कहा जाता है, भड़काऊ बताया जाता है। कांग्रेस और राहुल गाँधी इसी को नफरत का बाजार कहते हैं, उनको यह भी बताना चाहिये कि डायरेक्ट एक्शन डे किस बाजार में उपजा था ? यदि इनके अनुसार मोहब्बत का बाजार खुल जाये तो फिर से डायरेक्ट एक्शन डे तुरंत हो जाये, क्योंकि ये उसी मोहब्बत का बाजार खोलने की बात करते हैं जो डायरेक्ट एक्शन डे से पहले के भारत में खुली थी।

ये विचार मात्र राहुल गांधी और कांग्रेस का नहीं है अपितु पूरे इंडि गठबंधन का है। लेकिन इंडि गठबंधन को इस प्रश्न का उत्तर तो अवश्य ही देना चाहिये कि कम्युनिष्ट नेता (गार्डन रिच टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन) का अध्यक्ष सईद अब्दुल्ला फारुकी ने जब केसोराम कॉटन मिल्स के 600 ओड़िया मजदूरों की जिसने कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता कार्ड भी दिखाया था; फिर भी उनकी निर्ममता पूर्वक जो हत्या कर दी गयी तो वो नफरत का बाजार था या मोहब्बत का ?

डायरेक्ट एक्शन डे पुनरावृत्ति की मात्र आशंका के कारण

संभवतः डायरेक्ट एक्शन डे के पुनरावृत्ति की आशंका के इतने कारण पर्याप्त हैं। यदि और कारण ढूंढना हो तो कश्मीर से हिन्दुओं का पलायन, बंगाल की चुनावी हिंसा आदि अनेकों कारण भी प्राप्त होंगे। कारणों की कमी नहीं है समझ और स्वीकार्यता की कमी है। देश की राजनीति, मीडिया, फिल्म, धारावाहिक, पत्र-पत्रिका, पाठ्य-पुस्तकों ने हिन्दुओं को भ्रमित कर दिया है जिससे ऐतिहासिक घटनाओं की समझ और स्वीकार्यता समाप्त हो गयी है।

ऑप इंडिया में प्रकाशित समाचार के अनुसार ISISI समर्थित पत्रिका ‘वॉयस ऑफ खुरासान’ ने अपने कवर पेज पर दी गई हेडलाइन में लिखा, “हे बहुदेववादी भारतीय राजा। महमूद गजनवी का फिर से सामना करने के लिए तैयार हो जाओ।” इसके बाद उन्होंने लिखा, “भारत के मुशरिकों को कारों से मारो। चाकुओं से उनके पेट चीरो। इनके मंदिरों, घरों, कारों, संपत्तियों और फसलों में आग लगाओ। भीड़-भाड़़ वाली जगहों को निशाना बनाओ। उन्हें दिखाओ कि पैगंबर मुहम्मद का उम्माह अभी जिंदा है।”

आंखों में धूल झोंकना

भारत के मुसलमान भारतीय संस्कृति और भारतीय विचारधारा का कितना सम्मान करते हैं और विदेशी (जिहादी) सोच से कितने प्रभावित हैं यह जगजाहिर है। जो आंख-कान धूल से भरे हुये है उसे कभी दिखाई-सुनाई भी नहीं देगा। आंख और कान में धूल झोंकने का काम इंडि गठबंधन के सभी घटक दल निरंतर करते रहे हैं। ये चुनाव में मतदाताओं का ध्यान मंहगाई पर आकृष्ट करते हैं और चुनाव के बाद कांग्रेस शासित राज्य कर्नाटक में पेट्रोल-डीजल पर सेल्स टैक्स बढाकर मंहगाई को और बढ़ाते हैं।

ये कम्युनिष्ट नेता सईद अब्दुल्ला फारुकी की उसी भूमिका में हैं जिसने कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता कार्ड दिखाने के बाद भी हिन्दू मजदूरों को नहीं छोड़ा था। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि आज के जो हिन्दू इनके साथ हैं इन्होंने उसी प्रकार से उन हिन्दुओं की आंखों में धूल झोंक रखा है और बलि का बकरा बना रहे हैं। पश्चिम बंगाल की बात करें तो आज वहां किसी को हिंसा पीड़ित हिन्दू नहीं दिखाई दे रहा है भाजपा कार्यकर्ता दिख रहा है।

पश्चिम बंगाल की चुनावी हिंसा क्या हिन्दुओं और देश के लोकतंत्र को चुनौती नहीं है ?

इंडि गठबंधन का मौन रहना तो स्वाभाविक है और हिन्दू को बलि का बकरा बनाने वाली ऐतिहासिक प्रवृत्ति की पुष्टि करता है। मीडिया भी मौन धारण करते हुये सोई हुयी है जैसे सेकुलरिज्म का अर्थ यही हो।

सरकार की तैयारी

सेना का ढाई मोर्चे पर युद्ध के लिये तैयार रहना इसी तथ्य की ओर इशारा करता है कि सरकार को भी ऐसी आशंका है और इसके लिये तैयारी कर रखी है। किन्तु इस तैयारी में एक त्रुटि है जो यह है कि यह तैयारी पुनरावृत्ति को रोकने के लिये नहीं है पुनरावृत्ति होने के बाद की है, जो चिंताजनक है। भारत के पहले CDS बिपिन रावत जी भारतीय सेना को ढाई मोर्चे पर युद्ध के लिये तैयार करने वाले थे भारत के पहले CDS बिपिन रावत जी।

लेकिन सरकार पुनरावृत्ति को रोकने के लिये भी तैयारी कर रही है जिससे इंडि गठबंधन के पेट में मरोड़ भी हो रहा है। अग्निवीर योजना का मुख्य उद्देश्य डायरेक्ट एक्शन डे के पुनरावृत्ति को रोकना ही है। लेकिन इसमें तो कई वर्ष लगेंगे यह भी एक सच है, जबकि पुनरावृत्ति की धमकी और आशंका दिनों-दिन बढती ही जा रही है। राहुल गांधी का देश में किरोसिन छिड़का है तीली की देर है संबंधी वक्तव्य भी कहीं न कहीं इसी आशंका की पुष्टि करता है।

यद्यपि वर्त्तमान भारत में इस आशंका के लिये RSS प्रबल प्रतिरोधक भूमिका में प्रतीत होता है और संभवतः यही कारण है कि इंडि गठबंधन के सभी घटक दल RSS के प्रबल विरोधी हैं।

जागरूक करने वाला नफरती और सांप्रदायिक

इस विषय में RSS और अनुषांगिक इकाइयों के अतिरिक्त हिन्दुओं को जागरूक करने के लिये और भी बहुत से लोग काम कर रहे हैं लेकिन इंडि गठबंधन और मीडिया दोनों एकजुट होकर ऐसे लोगों और संगठनों को नफरती और सांप्रदायिक घोषित करते हैं। अंतरराष्ट्रीय गैंग और इंटरनेट पर भी यही किया जाता है जिसका प्रमाण है कि हिन्दुओं को जागरूक करने वाले लेखों और विडियो को आपत्तिजनक बताया जाता है।

ये लोग मात्र हिन्दुओं को जागरूक करने का प्रयास करते हैं किन्तु इनकी तुलना जिहादियों से की जाती है। इन्हें नफरती कहा जाता है सांप्रदायिक कहा जाता है। जबकि जिहादी सांप्रदायिक होते हैं उनका उद्देश्य हिंसा करना होता है जागरूक करने वालों का उद्देश्य हिंसा करना नहीं हिंसा का प्रतिकार करना मात्र होता है। लेकिन यह अंतर किसी मीडिया, इंटरनेट, इंडि गठबंधन को दिखाई नहीं देता और एक तरह से खुलकर जिहादियों का साथ देते हैं।

निष्कर्ष : डायरेक्ट एक्शन डे एक ऐतिहासिक सत्य है और इसकी पुनरावृत्ति की आशंका को नकारा नहीं जा सकता। सरकार और सेना इसकी आशंका से तैयारी में भी है। RSS भी प्रतिरोधक भूमिका निभाने की तैयारी में है। जागरूक करने वाले भी प्रयासरत हैं। सबसे चिंताजनक तथ्य ये है कि जो प्रतिरोधक है अथवा जागरूक करने का प्रयास करता है उसकी तुलना जिहादियों से की जाती है और इंडि गठबंधन व मीडिया उसे नफरती और सांप्रदायिक घोषित करते हैं। ऐसे सामग्रियों को गूगल, यूट्यूब आदि आपत्तिजनक सामग्री कहता है जबकि इसमें हिंसा की कोई बात नहीं होती हिंसा से बचाव की जागरूकता वाले तथ्य मात्र होते हैं।

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