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कब तक मौन रहेगी, चुप्पी, छिपायेगी ! दिल कहता है इक दिन मीडिया मान जायेगी

कब तक मौन रहेगी, चुप्पी, छिपायेगी ! दिल कहता है इक दिन मीडिया मान जायेगी

कब तक मौन रहेगी, चुप्पी, छिपायेगी ! दिल कहता है इक दिन मीडिया मान जायेगी

अभी तक मीडिया देश के संस्कृति और सनातन पर मौन रहने का ही प्रयास कर रही है। कुछ न कुछ तो कारण अवश्य है चाहे वह लोभ हो अथवा दबाव अथवा और कुछ हो लेकिन चर्चा नहीं करती है और यदि कभी करती भी है तो मिली-जुली संस्कृति, भाईचारा, गंगा-जमुनी तहजीब न जाने क्या-क्या जो पाठ पढ़ाया गया है वही पढ़ती रहती है। ऐसा पाठ पढ़ते समय रट्टूमल तोते के जैसे ही लगती है, यह भारत के साथ षड्यंत्र है इसको समझ भी नहीं पाती स्वयं भी जाल में फंस जाती है और देश को भी भ्रमित रखती है।

कब तक मौन रहेगी, चुप्पी, छिपायेगी ! दिल कहता है इक दिन मीडिया मान जायेगी

कई दशकों तक देश पर एक परिवार का शासन रहा और उस परिवार के बारे में मोदी ने बारम्बार कहा है घनघोर भ्रष्टाचारी, घनघोर परिवारवादी इत्यादि-इत्यादि। ये परिवार घनघोर सनातन द्रोही भी रहा है और सनातन को हानि पहुँचाने वाले सभी प्रयास किया जहां तक किया जा सकता था। आज स्वयं ही और भी भेद खोलने लगा है, जैसे वर्त्तमान सरकार पर तंत्र (सिस्टम) में अपने आदमी को बैठा रही है यह आरोप लगाकर स्वयं का कुकृत्य ही उजागर करती है कि उन्होंने पहले बैठा रखा था।

इसका सबसे बड़ा प्रमाण है काटजू खानदान, ऐसे अनेकों हैं। तीस्ता सीतलवाड़, पवन खेड़ा, केजरीवाल प्रकरण में भी देश ने देखा है कि यह तंत्र किस प्रकार काम करता है। वर्त्तमान सरकार अपने आदमी को सेट नहीं कर रही है अपितु पहले से जो सेटिंग करने वाली प्रक्रिया चली आ रही है उसे समाप्त करने का प्रयास कर रही है।

आज चुनाव आयोग पर प्रश्नचिह्न लगाया जा रहा है लेकिन उस समय क्या हुआ था जब राजीव गांधी की मृत्यु होने पर पूरा चुनाव टाल दिया गया था, जबकि नियम यह है कि यदि किसी प्रत्याशी की मृत्यु होती है तो उस सीट का चुनाव रद्द होता है। ये भी प्रमाण है कि तंत्र में परिवार विशेष ने कैसे अपने लोगों को बैठा रखा था।

गोदी मीडिया

इसी प्रकार कुछ विशेष परिवारवादियों ने पूरी मीडिया में भी अपने लोगों को सेट कर रखा था जो वर्षों तक परिवार की चाकरी करती रही थी और वास्तविक गोदी मीडिया थी। सरकार बदलने पर गोदी मीडिया में जो कुछ पत्रकार गोदी मीडिया के अनुकूल काम नहीं करते थे उसे उन्हीं लोगों ने गोदी मीडिया की उपमा से अलंकृत कर दिया।

गोदी मीडिया चिल्लाने वाले स्वयं के काले कारनामे को ही भूल जाते हैं अथवा निर्लज्जता की सीमाओं का अतिक्रमण करते हुये जो लोग उनके अनुसार झूठ का सहारा लेकर सरकार की कटु आलोचना नहीं कर पाई उसे भी गोदी मीडिया कहा गया। देश को स्मरण है की कुछ वर्षों पूर्व विपक्ष द्वारा किस प्रकार से कुछ विशेष एंकरों का लिखित रूप से बहिष्कार किया गया था।

यद्यपि ये लोग भी लगभग उनके अनुसार ही कार्य करने वाले हैं अंतर मात्र इतना है की पूरी तरह से उनके अनुसार कार्य नहीं कर पाये। जो लोग वास्तव में इनके विपरीत धारा में चलने वाले थे उन पत्रकारों के साथ सत्ता का दुरुपयोग किस प्रकार किया गया था देश ने अर्णव गोस्वामी और मनीष काश्यप प्रकरण से जगजाहिर हो जाता है। उस सत्ता का घिनौना रूप देश ने देखा है कि जो पत्रकार बिकता नहीं, उसे कैसे प्रताड़ित किया जाता था।

मीडिया आज भी कैसे काम कर रही है इसे मात्र छोटे उदाहरण से समझा जा सकता है कि लगभग सभी डिबेट में सत्ता पक्ष का एक या दो प्रवक्ता होता है और जिस विपक्ष के पास विपक्ष लायक योग्यता नहीं है उसके 3-4 प्रवक्ता को बुलाया जाता है। अब देखा जा रहा है कि भाजपा प्रवक्ता इस तथ्य को मुखर होकर बता रहे हैं।

यहाँ भी यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि जिसके पास 400 सांसद हो उसका 1 से दो प्रवक्ता और जिसके पास 150 सांसद भी न हो उसका 3 – 4 प्रवक्ता इससे मीडिया किस लोकतंत्र की चतुर्थ स्तम्भ है समझ में आ जाता है और यह भी समझ में आ जाता है कि आज जिस मीडिया को गोदी मीडिया का सम्मान मिलता है उसके बाद भी किस प्रकार से किसकी गोदी में बैठती है।

वास्तव में पूरी मीडिया ही (5 – 10% छोड़कर) गोदी मीडिया है और गोदी मीडिया का तात्पर्य सत्ता पक्ष की गोदी मीडिया नहीं सनातन द्रोहियों की गोदी मीडिया है। सबने चुनाव में कहा कि हिन्दू-मुसलमान पर चुनाव नहीं होना चाहिये, मंदिर पर चुनाव नहीं होना चाहिये। जब देश का विभाजन हिन्दू-मुसलमान पर हुआ था तो चुनाव भी हिन्दू-मुसलमान पर होना ही चाहिये।

ऐसा कब तक चलता रहेगा, या तो सुधरना होगा, सीखना और समझना होगा या विदाई होगी!

सोशल मीडिया

वो तो सोशल मीडिया का प्रभाव है जो मीडिया थोड़ा सा निष्पक्ष होने का स्वांग रचते हुये दिखाई देती है। यदि सोशल मीडिया का काल नहीं आता तो आज भी ये मीडिया निष्पक्ष होने का स्वांग तक नहीं करती और विपक्ष की गोद में लोड़ी सुनती। ये सोशल मीडिया का ही प्रभाव है कि आज की मीडिया भी अपने धब्बे को छुपाने का प्रयास करती है।

सोशल मीडिया पर अपुष्ट भ्रामक सूचनाओं के द्वारा अशांति फैलाने वाले भाग को यदि नियंत्रित कर लिया जाय तो ये मुख्य मीडिया से कई गुना आगे हैं। मात्र एक यही कारण है कि कुछ अराजक तत्व भ्रामक तथ्यों को भी प्रचारित-प्रसारित करने में कई बार सफल हो जाते हैं अन्यथा सोशल मीडिया ही वो तत्व है जो मुख्य मीडिया की भ्रामक सूचनाओं का भी सच सामने लाती है, मुख्य मीडिया द्वारा छुपाये गये तथ्य भी सामने लाती है, मुख्य मीडिया से भी पहले ताजा समाचार दे देती है।

चूँकि मुख्य मीडिया को सदैव कई प्रकार से सोशल मीडिया नीचा दिखाती ही रहती है इसलिये मुख्य मीडिया में सोशल मीडिया को अपमानित करते हुये व्हाटसप यूनिवर्सिटी कहा जाने लगा है। मुख्य मीडिया कभी यह विषय नहीं उठाती है कि सोशल मीडिया का यह भ्रामक सूचना संबंधी दोष कैसे दूर किया जा सकता है; क्योंकि इसमें मुख्य मीडिया को और अस्तित्व का संकट दिखता है।

सनातन का विषय

सनातन वो विषय है जिस पर या तो मीडिया मौन रहती है और यदि चर्चा करती भी है तो कुतर्क करते हुये मिली-जुली संस्कृति, भाईचारा, गंगा-जमुनी तहजीब आदि कुछ ऐसे गढ़े हुये शब्दों पर सीमित रहते हुये सनातन को सांप्रदायिक घोषित करने का प्रयास करती है। मीडिया कभी यह प्रयास नहीं करती है कि जब देश का विभाजन ही हिन्दू-मुसलमान के नाम पर हुआ था तो भारत की संस्कृति सनातन ही है। अन्य समुदाय के लोग भी भारत में रहते हैं किन्तु मूल संस्कृति सनातन है।

2014 से मोदी और भाजपा ने बारम्बार मीडिया को सांकेतिक रूप से यह समझाने का प्रयास किया भी है कि जो वर्तमान भारत है उसके ग्रन्थ रामायण-गीता आदि ही हैं कुरान-बाइबल आदि नहीं ये विदेशी किताबें हैं। उनका भी सम्मान हम करेंगे किन्तु उसका तात्पर्य यह नहीं की रामायण-गीता आदि भारतीय ग्रंथों को साम्प्रदायिक कहें।

दुनियां में अनेकों देश हैं जिनकी संस्कृति इस्लाम या क्रिश्चियन है लेकिन भारत की कोई संस्कृति यह मीडिया नहीं बताती। भारत की सनातन संस्कृति है लेकिन दुनियां के वही सारे देश अपनी संस्कृति भारत में थोपना चाहते हैं और इस कारण से वर्त्तमान भारत को भी सनातन संस्कृति नहीं है ऐसा समझाती है और मीडिया किस कारण से उनके विचारों को स्वीकार करती है और देश को समझाने का प्रयास करती है ये तो मीडिया ही जाने। ऐसा प्रयास फिल्मों और धारावाहिकों के माध्यम से भी किया जाता है।

देश में एक ऐसा वातावरण बना दिया गया कि जो सनातन की बात करे वो पुरानी सोच वाला होता है। जो सनातन के विरुद्ध बात करे वह आधुनिक सदी में जीता है, पढ़ा-लिखा होता है और इसे उस स्तर तक पहुंचा दिया गया कि भारत में भारत के ही लोग रामायण-गीता आदि धार्मिक व सांस्कृतिक ग्रंथों का विरोध करने लगे, सांप्रदायिक कहने लगे, फाड़ने लगे, जलाने लगे। मंदिरों को नष्ट करने में बुराई नहीं मानते किन्तु मंदिर बनाने की निंदा करने लगे।

मंदिर भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है और भारत में मंदिरों को सांप्रदायिक नहीं कहा जा सकता। मंदिरों की बात करना सांप्रदायिक नहीं सांस्कृतिक विषय है और मीडिया को यह स्वीकार करना चाहिये।

पूजा-पाठ-यज्ञ-हवन इत्यादि ही भारतीय संस्कृति के पहचान हैं, इसे सांप्रदायिक समझने की जो त्रुटि मीडिया से हो रही है उसे सुधारने की आवश्यकता है।

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