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Demographic Change : जनसांख्यिकी परिवर्तन का उत्तरदायी कौन ?

 Demographic Change : जनसांख्यिकी परिवर्तन का उत्तरदायी कौन ?

बीते दिनों से भारत के जनसांख्यिकी परिवर्तन का विषय चर्चा में आया, इस पर विपक्ष और विपक्ष के समर्थक बार-बार ये कहते दिखे कि ये चुनाव के समय क्यों ? और किसी मीडिया ने ये पूछा भी नहीं कि इसका उत्तरदायी कौन है ?

Demographic Change

जनसंख्या विस्फोट तो चिंता का विषय है ही भारत के लिये उससे भी अधिक चिंता का विषय है जनसांख्यिकी परिवर्तन का विषय। यद्यपि विपक्ष और विपक्ष के समर्थक इस विषय को छुपाने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं। ये भी प्रश्न उठा रहे हैं की चुनाव के समय क्यों जबकि सर्वाधिक उपर्युक्त समय चुनाव ही प्रतीत होता है क्योंकि इस समय मतदाता सच्चाई को जाने। 

सच्चाई जानना मतदाता का अधिकार 

सबसे पहले तो देश को इस विषय पर एक मत होना पड़ेगा कि सच्चाई जानना मतदाता का अधिकार होना चाहिये। जो मतदाता देश की सत्ता किसी को देने जा रहा हो उसे चुनाव काल में वो जानकारी भी प्राप्त करने का अधिकार जो सामान्य स्थिति में प्राप्त नहीं किया जा सकता। 

सभी पक्षों के बारे में जनता को ये ज्ञात होना चाहिये कि सत्ता सौंपने पर पीछे किसने क्या किया था ? इसके लिये सभी दलों को एक-दूसरे की गलती उजागर करना चाहिये। साथ ही उस विषय पर सम्बंधित दल का ये दायित्व होना चाहिये कि देश की जनता को उत्तर दे। 

चुनाव में यदि किसी दल के पिछले कार्यकाल की गलतियां दूसरा दल उजागर करे तो पहला दल उस विषय का उत्तर देने के लिये बाध्य होना चाहिये। वर्त्तमान में यह देखा जा रहा है कि कई दशकों तक सत्ता में रहने वाला दल पिछले किसी भी गलतियों के लिये कोई उत्तर नहीं देता, उससे भी आगे जाकर निर्लज्जता की सीमा को लांघते हुये कहने लगते हैं चुनाव के समय ये विषय क्यों उठाया जा रहा है ?

लेकिन ये कहना कि हमारी गलतियों को उजागर न किया जाय गलत होगा, यदि एक दूसरे की गलतियों को उजागर नहीं करेंगे तो जनता को ज्ञात कैसे होगी ?

जनसांख्यिकी परिवर्तन का आंकड़ा – EAC-PM 

  • भारत में 1950 से 2015 के बीच हिंदुओं की आबादी 7.82% घट गई। वहीं इसी बीच मुसलमानों की आबादी में 43.15% बढ़ोतरी दर्ज की गई।
  • 1950 से 2015 के बीच बहुसंख्यक हिंदू आबादी की हिस्सेदारी में 7.82 प्रतिशत की कमी आई है जो 1950 में 84.68 प्रतिशत थी से घटकर 2015 में 78.06 प्रतिशत रह गई।
  • 1950 में मुस्लिम जनसंख्या 9.84 प्रतिशत थी और 2015 में बढ़कर यह 14.09 प्रतिशत हो गई जो संबंधित अवधि में 43.15 प्रतिशत बढ़ी है। यही मुख्य विषय है जो वर्त्तमान में चर्चा का विषय बना है। 

वास्तविक आँकड़ा 1950 से लेकर 2011 तक का है जिसके आधार पर 2015 का अनुमानित आंकड़ा फिर से बताया गया है। तो 2015 के अनुमानित आँकड़े पर यदि चर्चा न भी करें तो भी 2011 तक के आँकड़े की चर्चा तो होनी ही चाहिये। 

कौन है उत्तरदायी ?

2014 तक के भारत में यदि कुछ वर्षों को छोड़ दिया जाय तो लगभग सम्पूर्ण सत्ता कांग्रेस के हाथ में ही रही है। कांग्रेस का दायित्व है कि वो देश को बताये कि ऐसा क्यों और कैसे हुआ ? इस प्रश्न के साथ कुछ और प्रश्न भी हैं जिसकी कड़ियां आपस में जुड़ती है :

  • किसने कहा था देश के संसाधनों पर प्रथम अधिकार अल्पसंख्यकों का है और उसमें भी पहले मुसलमानों का है ?
  • आज जो POK भारत के पास नहीं है उसका उत्तरदायी कौन है ? 
  • जम्मू-कश्मीर से प्रताड़ित हिन्दुओं को पलायन करना पड़ा इसका उत्तरदायी कौन है ?
  • वक्फ बोर्ड के नाम पर उच्च न्यायालय और संसद तक की भूमि पर वर्ग विशेष को अधिकार जताने का वैधानिक अधिकार किसने दिया था ?

खबीस कौन है 

यहां पाकिस्तान के एक मौलाना का विडियो दिया गया है जो “X” (ट्वीटर) पर देखा गया है। इस विडियो का संदर्भ यह है कि भारत के मौलानाओं ने पाकिस्तानी मौलाना से वोट करने के विषय में प्रश्न किया था और उसका उत्तर देते हुये मौलाना ने कहा कि वोट नहीं करना तो सही नहीं होगा, किन्तु जब दो खबीसों (नापाकों, दुष्टों, नीचों) में से चुनने की बात हो तो जो कम खबीश हो उसे चुनना चाहिये। 


Sir share this video on your channel. yeh Video sabko dekhna chahiye. pic.twitter.com/2mIwX7wIYL

— D̵̨͖̎O̶͇͓͌̈́S̶̗̝̉̔ M̴̖͓̈́Øs̶͚̾s̸̥͂ (@roaming_pokemon) May 8, 2024

 


इस विडियो से समझा जा सकता है कि भारत के विशेष वर्ग का पाकिस्तान, जो कि भारत का शत्रु देश है, के मौलानाओं से क्या नाता है। वो वोट करने तक के बारे में उनसे पूछता है। और उस मौलाना ने जो उत्तर दिया है उसमें जो तुष्टिकरण करने वाले हैं उन्हें भी खबीश (नीच-गलीच) ही कहा और समझा जाता है, लेकिन कम खबीस कहा गया है। 

कम खबीस का तात्पर्य ये है कि तुम भी नीच-गलीच ही हो लेकिन हम जिसे वोट नहीं दे सकते उससे कम हो। वोटबैंक की राजनीति करने वालों को ये बात समझनें की आवश्यकता है कि जितने भी तुष्टिकरण की नीति पर चलने वाले हैं वो भी वास्तव में खबीस (नीच) ही हैं, कोई उनका रहनुमा होने का भ्रम न पाले । 

यदि ये बात उन्हें समझ में आ जाये तो संभवतः देश सही नीति बनाकर सही दिशा में आगे बढे। यदि इतने पर भी उनकी आँखें न खुले तो ये उनके लिये दुर्भाग्य की बात तो है ही देश के लिये भी हानिकारक है। 

लोकतंत्र के लिये कितना सही कितना गलत 

इस विषय का लोकतंत्र पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन करना चाहिये। यद्यपि वर्त्तमान में गिरिराज सिंह ने भी बताया कि वास्तविक जनसंख्या 20% होगी, एक हैदराबादी का बहुत वायरल बयान है हम 25 कोर (पच्चीस करोड़) हैं न। 

यदि हम 20% भी मान लें तो वर्तमान में आखिर ऐसा क्या है कि इस 20% मत को पाने के लिये कई राजनीतिक दल नीचता की सभी सीमायें लांघ जाते हैं, संविधान जो निषेध करता है वो भी किसी न किसी प्रकार से करते रहते हैं। 20% तो वर्त्तमान 2024 के लिये आकलन है, तब ऐसा क्या था जब ये 8% से 15% तक थे। 

ऐसा क्या है कि इस वोट को पाने के लिये उनके लिये तो खबीस भी रहते ही हैं और बहुसंख्यकों के लिये भी खबीस की भूमिका ही निभाते रहे हैं। कानून तक भी दोनों के लिये अलग-अलग बना दिये गये। बहुसंख्यकों के लिये एक विवाह का कानून तो बना दिया लेकिन उन अल्पसंख्यकों को छूट दे दिया। क्या ये देश वैश्विक षड्यंत्र का शिकार बना हुआ है ?

लोकसभा चुनाव 2024 में चुनावी भाषण के क्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने भी उन वैश्विक षड्यंत्रकारियों की और संकेत किया था और कहा था कि वो ताकतें भारत में एक पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बनने देना चाहते वो भी ध्यान से सुन लें और उन वैश्विक शक्तियों के लिये जो देश में काम करते हैं उन्हें चट्टे-बट्टे कहकर संकेत किया था। 

इस तथ्य को कल रूस ने भी उजागर किया है, जिसको मीडिया जानबूझ कर अनदेखी करेगी क्योंकि इस प्रकार तो उस मीडिया का भी भेद खुल जायेगा जो उन वैश्विक षड्यंत्रकारियों के एजेंट बनकर भारत में क्रिया-कलाप कर रहे हैं। मीडिया का तात्पर्य पूरी मीडिया नहीं है, जैसे अर्णव गोस्वामी को उस समूह में सम्मिलित नहीं माना जा सकता। 

आवश्यकता 

इस विषय पर आवश्यकता ये है कि ये वैश्विक षड्यंत्र आम जनता को गंभीरता से बताया-समझाया जाय, जो सच है वो सच है हिन्दू-मुसलमान कहना गलत होगा और यदि हिन्दू-मुसलमान ही माना जाय तो वही सही इससे सच नहीं बदलेगा। विश्व में कई इस्लामिक देश बनाये गये हैं जो इस सच का प्रमाण है। वर्त्तमान भारत से भी दो अलग-अलग इस्लामिक देश (पाकिस्तान और बांग्लादेश) बने हैं इसका स्वयं भारत भुक्तभोगी भी है। 

जनसांख्यिकी स्थिति को उसी स्तर पर पुनः कैसे किया जाय जो 1947 में था, इस दिशा में विचार करने और आगे बढ़ने की आवश्यकता है। मोदी ने कुछ बड़े काम करने की बात कही थी, संभवतः उसमें ये कार्यक्रम भी सम्मिलित हो क्योंकि ये कोई छोटा काम नहीं है। 

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