यद्यपि सत्र का पहला दिन आज नहीं था वास्तव में नये लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव होने के बाद आज ही पहला दिन था। इससे पहले शपथग्रहण हुआ जिसकी अध्यक्षता प्रोटेम स्पीकर ने किया था। आज ओम बिरला दूसरी बार लोकसभा के अध्यक्ष बने और बधाई देते समय भी विपक्षी नेता तंज कसने का काम करते देखे गये। लेकिन अंत में जब लोकसभा अध्यक्ष ने अठारहवीं लोकसभा का पहला कार्य आपातकाल की निंदा करके काला दिवस बताया तो गुब्बारे की हवा ही निकल गयी।
पहला दिन पहला प्रहार, टूट गया झूठा अहंकार
चुनाव परिणाम आने के बाद से ही इंडि गठबंधन और मीडिया सभी ऐसा दिखाने का प्रयास करती दिखी की सरकार कमजोर होगी, विपक्ष मजबूत है, अब सरकार को निर्णय लेना सरल नहीं होगा, विपक्ष कड़ी चुनौती देगा आदि इत्यादि। इंडि गठबंधन के कई नेता यह भी बोलते दिखे की सरकार गिर जायेगी, सरकार कार्यकाल पूरा नहीं कर पायेगी। देश को यह बताने का प्रयास किया गया कि अबकी बार विपक्ष मोदी सरकार के दांत खट्टे कर देगी। सरकार को दबाव में लेने का प्रयास किया जाता रहा और लोकसभा अध्यक्ष के लिये परम्परा को तोड़ते हुये अपना प्रत्याशी भी उतारा।
लेकिन विपक्ष को यह नहीं ज्ञात था कि प्रत्याशी उतारने के बाद प्रतिक्रिया क्या होगी। क्योंकि विपक्ष का अपना प्रत्याशी उतारना तो क्रिया थी उसकी प्रतिक्रिया में विपक्ष को अनुमान था कि सरकार पर दबाव बनेगा, प्रतिक्रिया में आपातकाल को कालादिवस घोषित किया जायेगा ये प्रतिक्रिया होगी यह अनुमान नहीं रहा होगा। इसी कारण कई विपक्षी नेताओं ने लोकसभा अध्यक्ष को भी मजबूत विपक्ष है यह समझाने का प्रयास किया और इतना ही नहीं बधाई देते समय तंज भी कसते रहे।
संविधान संविधान संविधान जो चिल्ला रहे थे, उन्हें संभवतः यह ज्ञात ही नहीं था कि उस कालखंड को जब आपातकाल लगाया गया था उसे संसद से लोकसभा अध्यक्ष काला दिवस, निंदनीय इत्यादि कहेंगे और स्पष्ट रूप से तात्कालिक प्रधानमंत्री का नाम लेते हुये कहेंगे। भाजपा का काला दिवस मनाना और संसद द्वारा द्वारा मनाना दोनों में बहुत अंतर है। संसद (लोकसभा) ने जब काला दिवस कहकर मौन धारण किया तो यह घोषित रूप से काला दिवस सिद्ध हो गया गया।
किसने किया था संविधान पर प्रहार
हाथ में संविधान लेकर यह दिखाने का प्रयास करना सरल है कि हम संविधान में विश्वास रखते हैं, संविधान की रक्षा करेंगे यह नारा लगाना तो सरल है किन्तु संविधान पर प्रहार किसने-कब किया था इसे छुपाना सरल नहीं हो सकता। जब संविधान पर किये गये प्रहार का उल्लेख किया गया तो इसका उद्देश्य स्पष्ट था कि जो लोग हाथ में संविधान लेकर दिखाते रहते हैं, संविधान संविधान चिल्लाते रहते हैं वो यह भी जाने कि संविधान पर आघात किसने और कब किया था।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को आपातकाल लगाया था, देश को जेल बना दिया था, संविधान को ताक पर रख दिया था, मीडिया पर ताला लगा दिया था, तानाशाही किया था इत्यादि तथ्य जैसे ही सामने आते है उनके पोते का मोदी पर तानाशाही का आरोप लगाना, संविधान संविधान चिल्लाना सब दिखाबा सिद्ध हो जाता है। चुनाव से लेकर अब तक जो संविधान दिखाकर स्वयं को संविधान का रक्षक बताने का प्रयास करते हैं वह स्वांग सिद्ध हो जाता है क्योंकि राहुल गांधी मात्र उस दल के नेता ही नहीं उसी इंदिरा गांधी के पोते भी हैं।
लोकसभा अध्यक्ष ने क्या कहा
आपातकाल के संबंध में चर्चा करते हुये लोकसभा अध्यक्ष ने जो-जो बातें कही उसे जानना आवश्यक है। अब यह भाजपा मात्र का विषय नहीं रह गयी, अब देश का विषय बन गयी और अध्ययन व विश्लेषण का विषय बन गयी। अब विभिन्न परीक्षाओं में आपातकाल के विषय में वो प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं जो अब तक नहीं पूछे जाते थे। दूसरी बार लोकसभा अध्यक्ष बने ओम बिरला ने पहले दिन ही उस विचार पर कड़ा प्रहार कर दिया जो केवल संविधान लेकर चिल्लाना जानते हैं, आरोप लगाना जानते हैं।
लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला द्वारा अपील के बावजूद आपातकाल के काले कालखंड में कांग्रेस की तानाशाह सरकार के हाथों अपनी जान गंवाने वाले भारत के कर्तव्यनिष्ठ और संविधान से प्रेम करने वाले नागरिकों की स्मृति में इंडी गठबंधन वालों ने 2 मिनट का मौन रखना उचित नहीं समझा।
— BJP Himachal Pradesh (@BJP4Himachal) June 26, 2024
मौन के दौरान… pic.twitter.com/eWGFCbt9Mk
- ये सदन 1975 में देश में आपातकाल लगाने के निर्णय की कड़े शब्दों में निंदा करता है।
- भारत के इतिहास में 25 जून 1975 के उस दिन को अब हमेशा काले अध्याय के रूप में जाना जायेगा।
- इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगायी और बाबा साहेब अम्बेदकर द्वारा निर्मित संविधान पर प्रचंड प्रहार किया था।
- श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा तानाशाही थोप दी गयी, भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को ठुकराया और अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटा गया।
- नागरिकों के अधिकार नष्ट कर दिये गये, उनकी आजादी छीन ली गयी, विपक्षी नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया, पूरे देश को जेलखाना बना दिया गया।
- तानाशाही सरकार में मीडिया पर अनेक पाबंदियां लगा दी गयी थी, न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर अंकुश लगा दिया गया था। इमरजेंसी का वो समय हमारे देश के इतिहास में अन्याय काल का एक काला खंड था।
- हमारी युवा पीढ़ी को लोकतंत्र के इस काले अध्याय के बारे में अवश्य जानना चाहिये।
- इमरजेंसी ने भारत के कितने ही नागरिकों का जीवन तबाह कर दिया था, कितने ही लोगों की मृत्यु हो गई थी।
कांग्रेस की निर्लज्जता
कांग्रेस की निर्लज्जता असीमित है और जब कभी भी ऐतिहासिक भूलों की चर्चा की जाती है। कांग्रेस के शासनकाल की किसी बात को याद किया जाता है तो साफ-साफ बोलने लगते हैं पुरानी बातों पर चर्चा नहीं करनी चाहिये, पीछे क्यों देखें, आगे बढ़ना चाहिये आदि-आदि पंक्तियां बोलने के लिये तो असीमित निर्लज्जता का ही परिचायक है। इतिहास को कैसे भुलाया जा सकता है, भारत तो लाखों-करोड़ों वर्ष के इतिहास को नहीं भूला है और 40-50 वर्ष पुरानी बातों को भूल जाये !
अच्छा जब ये ऐसा कहते हैं कि पिछली बातों को छोड़ देना चाहिये तो परोक्ष रूप से यही सिद्ध करते हैं कि कुकर्म हुआ था। लेकिन ऐसा हो नहीं सकता कि भुला दिया जाय उसमें भी तब :
- जब आप नारा लगायें की संविधान की रक्षा हम करेंगे तो आपको ये सुनना पड़ेगा कि आपके ही प्रधानमंत्री ने आपातकाल लगाया था।
- जब आप संविधान हाथ में लेकर देश और दुनियां में चिल्लाते रहेंगे कि संविधान खतड़े में है तो आपको यह याद दिलाया जायेगा कि संविधान का गला कब घोंटा गया था और किसने घोंटा था।
- जब आप बहुमत की सरकार को तानाशाह कहेंगे, तो आपको ये याद दिलाया जायेगा कि तानाशाही कब थी और किसने की थी !
- जब आप अपना इतिहास भूल जायेंगे तो निश्चित रूप से दुनियां आपको आपका इतिहास याद दिलायेगी, यही सिद्धांत है। कभी भी किसी विषय को लेकर आगे का अनुमान लगाने के लिये पुराने इतिहास को याद किया ही जाता है। अबकी कांग्रेस 99 सीटें लायी है तो पिछले चुनाव परिणाम को याद किया जाता है कि कहां पहुंचे हैं।
उपरोक्त विषय के संबंध में एक विशेष बात यह है कि जैसे कांग्रेस कहती है कि पीछे मत देखो मीडिया अक्षरसः उनकी बातों को मानते हुये चर्चा से पीछे भाग जाती है। मीडिया अभी भी उसी आपातकालीन दासतायुग में जी रही है लेकिन यही राहुल गांधी मीडिया को मंचों से भाजपा की मीडिया भी बताते रहे हैं, अमर्यादित शब्द तक से सम्बोधित करते पाये देखे गये। मीडिया में आपातकाल को लेकर जो चर्चा अपेक्षित थी वो होते नहीं देखी गयी, खान मार्केट गैंग ने मुंह पर ताला जड़ लिया।
सरकार का रुख
चुनाव परिणाम आने के बाद से विमर्श का विषय विपक्ष क रुख बनाया जा रहा था। अब विपक्ष मजबूत है, मोदी सरकार को कड़ी चुनौती देंगे इत्यादि बताया जा रहा था। मोदी के बारे में यह सिद्ध करने का प्रयास किया जा रहा था कि अब कमजोर हो गये हैं और पिछले दो कार्यकालों की तरह काम नहीं कर पायेंगे। लेकिन मोदी ने पूरे गुब्बारे की हवा निकाल दी। सबसे पहले तो मंत्रिमंडल बनाने में दिखाया कि मोदी वही है। फिर लोकसभा के प्रोटेम स्पीकर पर दिखाया कि मोदी झुकेगा नहीं, फिर लोकसभा अध्यक्ष के विषय में भी बताया कि मोदी पहले से भी दमदार है।
आज लोकसभा अध्यक्ष ने आपातकाल को लेकर जो वक्तव्य दिया और काला दिन, काला अध्याय बताया उसके संकेत भी स्पष्ट हैं और संकेत जो है वो है रुख विपक्ष का नहीं रुख सरकार का देखना होगा। विपक्ष यदि हंगामा, झूठ की राजनीति करना चाहेगा तो अबकी बार चलने नहीं दिया जायेगा। मोदी सरकार 3.0 और अधिक कार्य करेगी चाहे शासन का हो या बिल पास करने का हो, आतंकवाद के विरुद्ध हो या भ्रष्टाचार के विरुद्ध !
विपक्ष यदि रचनात्मक भूमिका निभाना चाहे तो स्वागत है और यदि आक्रामक रुख अपनाना चाहे तो ईंट का जबाव पत्थर से दिया जायेगा।
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