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अच्छा विपक्ष स्वस्थ लोकतंत्र की अनिवार्य शर्त, अच्छे विपक्ष का न होना कमी

स्वस्थ लोकतंत्र की अनिवार्य शर्त

Network 18 समूह से साक्षात्कार में प्रधानमंत्री मोदी ने स्वस्थ लोकतंत्र के लिये एक अच्छे विपक्ष को अनिवार्य बताया। प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार उनके कार्यकाल में जो सबसे बड़ी कमी रही वो अच्छे विपक्ष की कमी थी, उन्होंने कहा “सरकार को तलवार की नोक पर चलने के लिये मजबूर करे ऐसा विपक्ष होना ही चाहिये। कोई कहेगा क्या कमी है ? तो अच्छे विपक्ष का अभाव ही मैं कमी महसूस करता हूँ।”

अच्छा विपक्ष स्वस्थ लोकतंत्र की अनिवार्य शर्त, अच्छे विपक्ष का न होना कमी

हयपादाहतिः श्लाघ्या न श्लाघ्यं खररोहणं। निन्दापि विदुषा युक्ता न युक्तो मुर्खसंस्तवः। अर्थ : घोड़े की दुल्लत्ती खाना भी प्रशंसनीय है लेकिन गधे की सवारी करना नहीं। विद्वानों द्वारा निंदा होना भी प्रसंशनीय है किन्तु मूर्खों की स्तुति भी नहीं। यह प्रसंग निंदा की महत्ता स्थापित करता है। निंदा की महत्ता का एक दोहा बहुत प्रसिद्ध है जो कबीरदास का है – “निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय”

निंदक और आलोचक में थोड़ा अंतर होता है किन्तु समान भी समझा जाता है। जीवन के सभी क्षेत्रों में आलोचक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, एक आलोचक के माध्यम से ही अपना दोष ज्ञात होता है। जैसे आखें स्वयं को देख नहीं सकती उसी दोष स्वतः ज्ञात नहीं होता, आखों को देखने के लिये, आखों का विकार देखने के लिये दर्पण की आवश्यकता होती है उसी प्रकार दोष का ज्ञान हो इसके लिये आलोचक की भी आवश्यकता होती है।

अपना दो कार्यकाल पूर्ण करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने न्यूज 18 को दिये साक्षात्कार में इस सच्चाई को स्वीकार किया है कि उनके दोनों कार्यकाल में एक अच्छे विपक्ष का अभाव रहा जो चिंता का विषय है।

विपक्ष नकारात्मक विचारों से इस प्रकार ओत-प्रोत है कि वह कभी कोई सकारात्मक तथ्य प्रस्तुत ही नहीं कर पाया। स्वस्थ लोकतंत्र के लिये एक अच्छे विपक्ष को अनिवार्य कहा जाता है, लेकिन क्या विपक्ष का सुधार करना, विपक्ष को अच्छा, सजग, सबल बनाना भी सत्तापक्ष ही करेगा ?

लोकतंत्र में विपक्ष का एक कार्य सरकार की आलोचना करना है लेकिन आलोचना करना कार्य है इसका तात्पर्य यह नहीं हो सकता कि यदि कोई अच्छा भोजन करे तो उसकी भी इसलिये आलोचना करे कि आलोचना करना कार्य है सर्वथा अनुचित है। आलोचना ये होनी चाहिये कि भोजन उचित समय पर नहीं किया जा रहा है, भोजन में किसी महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ को ग्रहण नहीं किया जा रहा है, भोजन सही विधि से नहीं किया जा रहा है ये सब प्रामाणिक रूप से आलोचना का विषय हो सकता है। किन्तु विपक्ष आलोचना करने का जो स्तर रहा वो इस प्रकार का रहा की अच्छा भोजन करना ही नहीं चाहिये।

प्रधानमंत्री ने अच्छे विपक्ष को आवश्यक क्यों कहा

आगे की चर्चा से पूर्व यह भी समझने का प्रयास आवश्यक है कि प्रधानमंत्री ने अच्छे विपक्ष को आवश्यक क्यों कहा ?

  1. इसका प्रथम बिंदु तो यह है कि पत्रकारों ने सबल विपक्ष का प्रश्न किया था। कर प्रधानमंत्री मोदी ने प्रश्न का उत्तर दिया।
  2. द्वितीय भाव यह भी है कि पुनः विपक्ष की स्थिति वही रहने वाली है जो पिछले दो कार्यकालों में रहा लेकिन विपक्ष को संकेत दिया कि उसे क्या करना चाहिये।
  3. इसके साथ ही एक तृतीय संकेत भी हो सकता है और वो है कि क्या इस बार विपक्ष थोड़ा सबल होने वाला है अर्थात मजबूत सरकार बनने के संकेत होने पर भी अबकी बार विपक्ष भी मजबूत होगा।

विपक्ष का दोष

इस विषय में पूरी दुनियां और विपक्ष सभी एक मत हैं कि मोदी के दोनों कार्यकालों में एक दुर्बल विपक्ष रहा। लेकिन इस कारण से विपक्ष निरंतर परास्त होता ही रहेगा यह स्वीकार नहीं किया जा सकता। यदि विपक्ष आत्ममंथन करते हुये दोषों का निवारण करके गुणों को आत्मसात करे तो वह विपक्ष परास्त होगा अथवा निर्बल ही सिद्ध होगा यह नहीं स्वीकारा जा सकता। देश को विपक्ष के उन दोषों को समझने की आवश्यकता है और विपक्ष के लिये यह अनिवार्य है।

परिवारवाद

मोदी को परिवारवाद पर निरंतर प्रहार करते हुये देखा गया है। परिवारवादियों का निजी स्वार्थ देश हित, दल का हित सबसे ऊपर है और वर्तमान में भी विपक्ष परिवारवाद को दोष स्वीकार तक नहीं करता। परिवारवाद राजतंत्र का लक्षण और लोकतंत्र का दोष है। यदि विपक्ष यही स्वीकार न कर पाये कि परिवारवाद लोकतंत्र का दोष है तो फिर वह किस लोकतंत्र की रक्षा करेगा ? विपक्ष को ये स्वीकारना होगा कि परिवारवाद लोकतंत्र का दोष है।

मोदी का बारम्बार शहजादा कहना एक व्यंग्य होता है जो विपक्षी दलों में राजतंत्र का परिचायक होता है। राजतंत्र लक्षण संपन्न विपक्ष का लोकतंत्र में कोई स्थान ही नहीं होना चाहिये।

लेकिन समस्या यह है कि सभी विपक्षी दलों में विशेष परिवार का वो आधिपत्य है जिससे मुक्त होना भी दुष्कर है। अधिपति परिवार के सदस्य ही नहीं पूरी पार्टी भी यह मानती है कि उनकी पार्टी उस परिवार की संपत्ति है। और यदि कुछ लोग सत्य को स्वीकार भी करते हों तो भी एक अन्य समस्या होगी कि “बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे”, पिछले दिनों अंततः नेताओं में कांग्रेस छोड़ने की होड़ सी लग गयी और इसका मुख्य कारण भी यही है।

पिछला पाप

कोई भी यदि यह कहे कि उसने पाप नहीं किया है तो यह सफेद झूठ की श्रेणी में गिना जायेगा, अर्थात कोई यह नहीं कह सकता कि उसमें दोष नहीं हैं, उससे त्रुटियां नहीं हुई है। अभी वर्त्तमान की एक घटना इसका उत्तम उदाहरण है जिसमें भाजपा नेता संबित पात्रा से एक त्रुटि हुयी जिसमें उन्होंने भगवान जगन्नाथ को मोदी का भक्त बोल दिया। जैसे ही त्रुटि का आभाष हुआ संबित पात्रा ने सार्वजनिक रूप से क्षमायाचना किया, फिर पश्चात्ताप में 3 दिनों का उपवास किया।

एक अन्य उदाहरण भी है जो मोदी से हुआ था किसान संबंधी विधेयक वापस लेना, और इसे गलती स्वीकारते हुये मोदी ने कहा था कि देशहित में ऐसा किया जा रहा है। अर्थात मोदी ने यह स्वीकारा कि विधेयक वापस लेना त्रुटि है, लेकिन देश को यह भी बताया कि वर्त्तमान में देशहित के लिये यही आवश्यक है।

विपक्ष में यही देखा जाता रहा है कि कोई भी नेता कुछ भी वक्तव्य दे दे, कितना भी गलत क्यों न हो कभी भी त्रुटि स्वीकारने के लिये तैयार ही नहीं होती। अपनी गलतियों को सही सिद्ध करने के लिये निरंतर गलती पर गलती ही करते देखे गये हैं। देश जिसे गलती मानता हो उसे स्वयं भी गलती मानकर क्षमायाचना करना विपक्ष के लिये अपरिहार्य है। तुष्टिकरण की नीति और भ्रष्टाचार त्रुटि होते हुये भी इतने व्यापक स्तर पर है कि एक स्वतंत्र कारण की स्थिति में है। कुछ महत्वपूर्ण त्रुटियों में इन तथ्यों को रखा जा सकता है :

  • निरंतर राममंदिर के विरोध में रहना : पूरा का पूरा विपक्ष आरम्भ से ही राम मंदिर के विरोध में रहा है। अभी भी उसे संभलते हुये ज्ञानवापी मंदिर और मथुरा कृष्ण मंदिर पर विचार परिवर्तन करने की आवश्यकता है।
  • नोटबंदी, GST का अनावश्यक विरोध : विपक्ष को नोटबंदी व GST का पूर्ण विरोध नहीं करना चाहिये था लेकिन अभी तक करते हैं। इसकी त्रुटियां उजागर करना चाहिये था।
  • धारा 370 हटाने का विरोध : देश जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को गलत मानता है किन्तु विपक्ष है कि अभी तक धारा 370 हटाने का पूर्ण विरोध करता रहा और वर्त्तमान में भी इसको पुनर्स्थापित करने की बात करता है। विपक्ष को चाहिये कि सरकार ने जम्मू-कश्मीर की स्थिति सुधार करने में क्या-क्या नहीं किया यह उजागर करे।
  • देश को आर्थिक हानि : अडानी-अंबानी यदि विश्व के शीर्षतम धनिकों में सम्मिलित होते हैं तो यह देश के लिये गर्व की बात है। लेकिन विपक्ष ने मात्र विरोध ही नहीं किया शीर्षतम स्थान से च्युत करने के लिये हिंडनबर्ग वाला षड्यंत्र तक रचा। शेयर मार्केट में बहुत लोगों को उस समय तात्कालिक हानि हुयी। देश के शेयर मार्केट का बढ़ना, आर्थिक विकास करना देशवासियों की इच्छा है न कि आर्थिक हानि।

भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार विपक्ष की एक मुख्य समस्या है और विपक्ष इससे पीछा इस कारण नहीं छुड़ा पा रहा है कि भ्रष्टाचार में सभी विपक्षी दलों के प्रमुख नेता ही आरोपी हैं। वो सभी प्रमुख नेता निजी स्वार्थ में ED-CBI का रोना रोते रहते हैं, किन्तु पार्टी को तो उनके निजी स्वार्थ से अलग रहना चाहिये। विपक्ष जैसे ही ED-CBI का रोना रोती है जनता समझ जाती है कि हां ये चोर है।

इनकम टैक्स डिपार्टमेंट हो या ED-CBI-NIA हो सामान्य जनता को थोड़े ने परेशान करती है, या जो ईमानदार हैं उनको थोड़े न परेशान करती है। एक तथ्य यह भी होता है कि जो ईमानदार होता है वह न तो जांच से डरता है न छापे से।

एक सामान्य से उदाहरण द्वारा सरलता पूर्वक समझा जा सकता है : परीक्षा में सभी विद्यार्थी की जांच की जा सकती है और जो कदाचार नहीं करता वह जांच की निंदा नहीं करता अपितु सहयोग करता है। विपक्ष है कि इस सामान्य नियम को भी नहीं समझता और यदि भ्रष्टाचारी न भी हो तो भी ED-CBI का रोना रोकर स्वयं ही स्वयं को भ्रष्टाचारी सिद्ध कर देते हैं।

जनता को इतना भी मूर्ख नहीं समझना चाहिये कि सामान्य बातें भी जनता न समझ पाये।

तुष्टिकरण

देश ही नहीं पूरा विश्व जानता है कि भारत का विभाजन हिन्दू-मुसलमान के नाम पर किया गया था। इसके साथ ही एक अन्य कारण ये भी बताया जाता है कि जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री बनने की जिद के कारण भी देश का विभाजन हुआ था। आज की विपक्ष उस काल में सत्ता पक्ष थी और लगभग 7 दशकों तक रही। मात्र उपरोक्त त्रुटियों को ही नहीं ढंका अपितु निरंतर त्रुटियां करते रहे और ढंकते रहे, जो धीरे-धीरे उजागर भी होते हैं। विपक्ष को अभी भी चाहिये कि उन त्रुटियों के लिये देश से क्षमायाचना करे।

उस समय के सत्तापक्ष को मुस्लिम मतदाताओं की एकजुटता दिखी थी, और उस मतदाता वर्ग को उसने विशेष महत्व दिया जिसके कारण तुष्टिकरण की नीति का जन्म हुआ। दशकों तक तुष्टिकरण चला, बहुसंख्यक मतदाताओं ने अपने विखंडन और अल्पसंख्यकों के ध्रुवीकरण को इसका कारण माना, संयोग से असीम ऊर्जा के साथ मोदी उतरे और बहुसंख्यकों को मोदी में अपना व राष्ट्र का हित दिखा, साथ ही क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया का सामान्य नियम भी है।

यदि अल्पसंख्यकों का ध्रुवीकरण उचित हो सकता है और ध्रुवीकरण से ही हित साधन हो सकता है तो बहुसंख्यकों के ध्रुवीकरण को कैसे अनुचित कहा जा सकता है। उस समय की सत्तापक्ष वर्त्तमान में विपक्ष की भूमिका में है और अभी भी न तो तुष्टिकरण की नीति को अनुचित मानती है न ही अल्पसंख्यकों के ध्रुवीकरण को, किन्तु बहुसंख्यकों के ध्रुवीकरण को अवश्य अनुचित मानती है और जातियों में तोड़ने का प्रयास करती रहती है।

आज की विपक्ष लोकतंत्र की हत्या चिल्लाती रहती है किन्तु वास्तविक लोकतंत्र की हत्या तो तब तक होती रही जब तक अल्पसंख्यकों के ध्रुवीकरण का सहारा लेते हुये बहुसंख्यकों का अहित किया गया, अनदेखी की गयी। प्रतिक्रिया स्वरूप वर्त्तमान में यदि बहुसंख्यकों का ध्रुवीकरण हो रहा है तो इसे अनुचित किसी प्रकार से नहीं सिद्ध किया जा सकता, यही लोकतंत्र है। जहां बहुसंख्यक ही पीड़ित रहे, न्याय मांगे वहां लोकतंत्र नहीं सिद्ध किया जा सकता।

विपक्ष वर्तमान में भी तुष्टिकरण की नीति से उबरने को तैयार नहीं है और इसका प्रमाण है बार-बार मुस्लिम आरक्षण, धारा 370 का पुनर्स्थापन, ज्ञानवापी और मथुरा कृष्ण मंदिर के समर्थन का अभाव। और सबसे बड़ा प्रमाण तो ये है कि पाकिस्तान द्वारा विपक्ष का समर्थन किया जाता है। एक शत्रु देश यदि विपक्ष का समर्थन करता हो तो यह गंभीर चिंतन का विषय बन जाता है कि कहीं विपक्ष शत्रु देश का हितैषी अर्थात देशद्रोही तो नहीं है।

देश की संस्कृति को नहीं स्वीकारना

हिन्दू मुसलमान के नाम पर देश का भले ही विभाजन हुआ हो, मुसलमानों ने भले ही बड़ा भूभाग छीन लिया हो किन्तु वर्त्तमान की विपक्ष ने कभी यह स्वीकार नहीं किया कि शेष भाग वास्तव में सनातन का है। बचे हुये भूभाग की संस्कृति सनातन है। शेष भूभाग जो हिन्दुओं का है उसकी संस्कृति के संबंध में सनातन द्रोह के कारण विपक्ष ने देश की संस्कृति सनातन को सम्प्रदायवाद सिद्ध कर दिया और निरंतर देश को ये समझाने का प्रयास किया कि मिली-जुली संस्कृति। देश मानता है कि मिली-जुली संस्कृति तब होती जब देश का विभाजन न किया जाता।

चूंकि देश का विभाजन ही हिन्दू-मुसलमान के आधार पर हुआ तो शेष भूभाग वर्तमान भारत की संस्कृति सनातन ही है। लेकिन विपक्ष वास्तव में सनातन द्रोही है जिसके कारण विपक्ष के लिये टोपी पहनना, इफ्तार करना, हज सब्सिडी देना, अल्पसंख्यकों को राजनीतिक संरक्षण देना तो सम्प्रदायवाद नहीं है किन्तु तिलक लगाना, पूजा करना, मंदिर बनाना, गीता-रामायण आदि भारतीय ग्रन्थ की बात करना सम्प्रदायवाद है।

इसके भी उदहारण हैं सभी विपक्षी नेताओं को कब्र पर जाते देखा जाता रहा, इफ्तार पार्टी करते और टोपी पहने देखा गया किन्तु जब राफेल में ॐ लिखा गया तो उसकी निंदा की गयी। जब मोदी गंगा स्नान करते, पूजा करते, राम मंदिर का शिलान्यास करते दिखे तो उसे सम्प्रदायवाद कहा गया।

सनातन ही भारत की संस्कृति है यह सिद्ध किया जा सकता है किन्तु मिली-जुली संस्कृति है यह सिद्ध नहीं किया जा सकता है क्योंकि मिली-जुली संस्कृति के लिये जो अनिवार्य था कि देश का विभाजन नहीं होता वह हो चुका है। सनातन द्रोहियों के लिये सनातन भूमि में स्थान मिलाना भी सनातन की उदारता का ही परिचायक है।

वर्त्तमान में विपक्षी नेताओं को यह बोलते हुये देखा जाने लगा है “मैं भी हिन्दू हूँ लेकिन घर में राजनीति में नहीं” यह भी सनातन के ऊपर प्रहार के समान ही होता है कि जो यह सिद्ध करने का प्रयास करता है कि देश की संस्कृति सनातन नहीं है।

भगवा को गाली देना, भगवा को आतंकवाद से जोड़ना, मनुस्मृति को जलाना, रामायण पर विवाद करना, भगवान राम, कृष्ण, शिव को अपने ही देश में न्यायालय से न्याय के लिये लड़ना पड़े ये सभी विपक्ष के सनातन द्रोह को ही सिद्ध करता है। विपक्ष को अभी भी चाहिये कि ज्ञानवापी, मथुरा कृष्ण जन्मभूमि आदि को देश की सांस्कृतिक विरासत स्वीकारे और विवाद का संवाद से शीघ्र समाधान हो ऐसा प्रयास करे। भगवा को, देश के ग्रंथों को सांप्रदायिक कहना बंद करे। कुर्ते पर जनेऊ धारण करने से देश विपक्ष को सनातनी नहीं स्वीकारेगा।

और भी ढेरों बातें हैं जिनका उल्लेख करने में वर्षों व्यतीत हो जायें।

कैसे सुधार होगा

अब बात आती है कि सुधार कौन करे विपक्ष स्वयं या सत्तापक्ष ? रोग विपक्ष को है तो विपक्ष स्वयं कैसे दूर कर सकती है उसमें भी तब जबकि आत्ममंथन और आत्मसुधार का गुण उसके पास है ही नहीं। और यदि सत्तापक्ष की बात करें तो सत्तापक्ष अपना विकास करे या विपक्ष को बल प्रदान करे अर्थात सत्तापक्ष ही विपक्ष के रोग की चिकित्सा करे यह कदापि संभव नहीं।

इस स्थिति में आवश्यकता यह है कि विपक्ष स्वयं के सुधार हेतु एक निर्भय विपक्ष (कुछ निर्भीक सदस्यों की एक संस्था) का निर्माण करे जिसमें उपस्थित सदस्य निर्भीक हों और स्पष्ट विचार प्रस्तुत करने में सक्षम हों साथ ही देश की वास्तविक स्थिति, वास्तविक संस्कृति का ज्ञान रखते हों, तुष्टिकरण के विरोधी हों, हृदय से सनातन को देश की संस्कृति स्वीकारते हों। लेकिन ऐसी कोई संभावना तत्काल दृष्टिगत नहीं है। यदि किसी ऐसी संस्था का निर्माण किया भी जाये तो वह मात्र एक दिखावा होगा।

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