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आया ऊंट पहाड़ तले – शेर को मिला सवा शेर

 आया ऊंट पहाड़ तले – शेर को मिला सवा शेर

एक धूर्त राजा था जो एक विशाल देश की राजधानी का मुख्यमंत्री था । उसके मुख्यमंत्री बनने की कहानी भी धूर्तता से ही आरंभ होती है। एक समय रंगे सियारों की झुंड ने राजधानी में देश के शासन के विरुद्ध एक बड़ा धरना-प्रदर्शन किया । धरना-प्रदर्शन भ्रष्टाचार-अनीति आदि के विरुद्ध था और सबने घोषणा किया कि हमलोग शासन नहीं करेंगे मात्र भ्रष्टाचार-अनीति के विरुद्ध लड़ेंगे अतः प्रजा भी साथ देने लगी।

एक दिन उसके धरना-प्रदर्शन से परेशान होकर देश के राजा ने उनकी मांगे स्वीकार कर लिया और धरना-प्रदर्शन समाप्त हो गया, किन्तु लोकतंत्र था और राजधानी की प्रजा उनलोगों को अच्छा समझने लगी तो उनलोगों ने भी पहले वचन को भंग करते हुए एक राजनीतिक दल बनाया और चुनाव में भाग लिया। चुनाव के समय भी उसका मुखिया अपने बच्चे की सौगंध खाकर कि हम राजा नहीं बनेंगे लोगों का विश्वास जीत लिया और चुनाव में जीतने के बाद बच्चे के सौगंध का भी अंतिम संस्कार करके राजधानी का मुख्यमंत्री बन बैठा।

महाधूर्त राजा

प्रारम्भिक काल की राजनीतिक घटनायें ऐसी रही कि अल्पमत से बहुमत प्राप्त कर लिया। फिर विरोध से जन्म लेने वाले मुख्यमंत्री को देश का प्रदानमंत्री बनने का सपना दिखने लगा और हर दिन उसका काम की जगह देश के राजा से लड़ने में व्यतीत होने लगा। धीरे-धीरे अपने दल के भी सभी प्रभावशाली व्यक्तियों को उसने लात मारकर बाहर कर दिया, कुछ विश्वसनीय लोगों को छोड़कर।

भ्रष्टाचार और अनीति के विरुद्ध जन्म लेने वाले मुख्यमंत्री जो पहले कहा करता था पद में ही दोष है पदासीन होने पर स्वयं भी सभी दोषों की खान बन गया और यहां तक चला गया कि देश के सभी षड्यंत्रकारियों उपद्रवी तत्वों से भी सांठ-गांठ कर लिया, देश के सूचनातंत्र को येन केन प्रकारेण अपने अधीन कर लिया। फिर क्या था भ्रष्टाचार-अनीति आदि की सभी सीमाओं को लांघ कर महाभ्रष्ट बन गया किन्तु सूचनातंत्र उसके अधीन था इसलिए उसने स्वयं को और अपने दल को कट्टर ईमानदार घोषित कर दिया।

लेकिन उघरहिं अंत न होंहि निबाहू सूत्र से उसका पोल खुलने लगा फिर भी कोई उसके जैसे अनीति की सीमाओं का उल्लंघन करने वाला नहीं था सो षड्यंत्र पूर्वक बचता रहा कभी फंसा भी तो क्षमायाचना करके बचता रहा। लेकिन उसके सहयोगियों में एक ऐसी भी महिला सहयोगी थी जो सभी पैंतरों को सीखते रही और मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने लगी। धीरे-धीरे मुख्यमंत्री की पोल खुलती गई और सहयोगी जेल जाते रहे।

अंततः एकदिन वह भी जेल गया और फिर उसके सहयोगियों में मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जगने लगी सब अपने स्तर से प्रयास करने लगे लेकिन महाधूर्त मुख्यमंत्री को सबकी धूर्तता का भान था कि यदि उसने मुख्यमंत्री पद पर किसी को बिठाया तो वही उसके जेल में सड़ाने का काम करेगा इसलिए उसने जेल जाने के बाद भी अपना पद नहीं छोड़ा। 

शेर को मिला सवा शेर

चुनाव का समय आया तो अपने षडयंत्रों से वह किसी प्रकार बाहर भी आ गया और प्रजा को भ्रमित करने लगा कि यदि वोट दोगे तो हम जेल नहीं जायेंगे लेकिन उसने न्यायपालिका में ऐसी पकड़ बना रखी थी कि न्यायपालिका उसके लिये देश की भावना के विरुद्ध जाकर भी आंखें मूंदे रखी । लेकिन उसकी वो महिला सहयोगी जो मुख्यमंत्री बनने की इच्छा रखती थी, उसके बारे में उसे ज्ञात हो गया और उसे बाहर भगाने के लिये साम-दाम-दंड-भेद का प्रयोग करने लगा। लेकिन वह सहयोगी महिला भी इतने दिनों में महाधूर्त के सभी दांव-पेंच समझ चुकी थी सो फंस नहीं पा रही थी।

तू डाल-डाल मैं पात-पात का खेल आरंभ हुआ। बात दंड प्रयोग की आई और एक दिन महाधूर्त ने बाहर भगाने के लिये घर पर बुलाकर अपने निजी सेवकों से पिटाई कराकर बाहर करने का जाल बुना । लेकिन वह महिला सहयोगी जाल में फंसी नहीं, पहले उसने भी न्यायपालिका में शिकायत नहीं किया समझौते का प्रलोभन देकर घटना की जानकारी जगजाहिर करने के षड्यंत्र में फंसाया और वह महाधूर्त फंस गया, अपने अन्य सहयोगियों से घटना को जगजाहिर करके उसे सत्य सिद्ध कर दिया।

आया ऊंट पहाड़ तले

अब जबकि महाधूर्त ने पिटाई की घटना की सत्यता को जगजाहिर किया तब उसकी महिला सहयोगी ने उसके विरुद्ध न्यायपालिका का शरण लिया। अब महाधूर्त फंस गया क्योंकि घटना की सत्यता को जगजाहिर भी स्वयं ही करवा चुका था, अब कौन सा दाव मारे कैसे झूठ कहे ? लेकिन उसके लिये निर्लज्जता की कोई सीमा तो है नहीं फिर अन्य सहयोगियों से झूठा कहने का षड्यंत्र रचने लगा लेकिन शेर का पाला सवा शेर से पड़ चुका था इसलिए सार्वजनिक रूप वह कांप रहा था।

कहानी को किसी धूर्तवाल से न जोड़ें।

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