24 घंटे से अधिक हो चुके हैं मीडिया में एक और एक ही चर्चा है हाथरस का सत्संग, बाबा भाग गया, FIR में बाबा का नाम क्यों नहीं, 121 लोगों की मृत्यु, सूरज पाल से साकार हरि, भोले बाबा का सत्संग। हाथरस दुर्घटना का परिणाम क्या है, 121 लोगों की मृत्यु तो भगदड़ से हुयी लेकिन उसके बाद का परिणाम क्या है ? मीडिया देश को क्या समझा रही है ? ये विषय महत्वपूर्ण है और समझने की आवश्यकता है। यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि इस आलेख में आशंका मात्र की गई है जो जांच के बाद सत्य भी सिद्ध हो सकती है और असत्य भी।
सूरज पाल से साकार हरि कहां-कहां जुड़ी कड़ी
कल 2 जुलाई 2024 को जब लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर प्रधानमंत्री धन्यवाद प्रस्ताव पर बोल रहे थे उसी समय अचानक से हाथरस में बड़ी दुर्घटना हो गयी और मीडिया को बड़ा मसाला मिल गया, पूरी की पूरी मीडिया अन्य बड़ी-से-बड़ी सभी सूचनाओं को तिलांजलि देकर 12 घंटे से ऊपर हो चुका है और प्रधानमंत्री के अभिभाषण को भी छोड़कर केवल और केवल हाथरस चिल्ला रही है।
80000 लोगों की अनुमति थी 250000 लोग जुटे, तो इसका मतलब कोई छोटा बाबा नहीं था, आज से पहले कभी इसकी कोई चर्चा मीडिया में हुई ? नहीं होती थी न; ढाई लाख लोगों का जुटना कोई छोटी बात होती है क्या ? यदि सूरज पाल जिसकी सभा में कभी अखिलेश यादव भी जयकार लगा रहे थे इतना बड़ा बाबा था और कि सभा में लाख लोग जुटते थे तो उसे मीडिया ने कभी क्यों नहीं दिखाया ? घटना के बाद ही अचानक से क्यों टूट पड़ी है, आज पूरी की पूरी मीडिया एक मात्र सूरज पाल को ही मुख्य अपराधी सिद्ध कर चुकी है, ठग और ढोंगी सब कुछ कह रही है। कई प्रकार के प्रश्न उत्पन्न होते हैं :
- दुर्घटना से पहले मीडिया जानबूझकर सूरज पाल की कभी चर्चा नहीं करती थी क्या ?
- क्या मीडिया को पता था कि सूरजपाल एक ठग है और चर्चा नहीं करने के लिये ही ठग से ठगी करती रहती थी ?
- क्या सभी सभाओं में लगभग 2 – 3 लाख लोग जुटते थे ?
- यदि ये इकलौती सभा है जिसमें ढाई लाख लोग जुटे तो निश्चित रूप से षड्यंत्र है।
- षड्यंत्र में सूरज पाल का कोई हाथ नहीं हो सकता क्योंकि कोई मूर्ख भी अपनी दुकान में आग नहीं लगा सकता। अर्थात मीडिया जो सूरज पाल को मुख्य अपराधी सिद्ध कर रही है वह निश्चित रूप से कुछ न कुछ छुपाने का प्रयास कर रही है।
- यदि सूरज पाल का हाथ नहीं हो सकता तो मीडिया FIR में नाम नहीं है ऐसा क्यों चिल्ला रही है ?
- षड्यंत्र राजनीतिक ही है और नेताओं को बचाने के लिये सूरजपाल को बलि का बकड़ा बनाया जा रहा है क्या ?
- सूरजपाल और सेवादारों की दुर्घटना प्रकरण में मात्र इतनी ही गलती हो सकती है कि संभवतः उन्हें भी राजनीतिक षडयंत्र का ज्ञान न हो, ढाई लाख लोग जुटेंगे यह भी ज्ञात न हो और अंतिम क्षणों में पता चला हो कि यह उन्हें बलि का बकड़ा बनाने के लिये षड्यंत्र था।
- सूरजपाल को जब समझ में आ गया कि उसे बलि का बकड़ा बनाया गया है तो डर कर विलुप्त हो गया।
चले-बने तो ये मीडिया देश को भी बेच दे
हाथरस कांड दुर्घटना या षड्यंत्र इसकी गहनजांच होगी, ऐसा मुख्यमंत्री योगी ने कहा। हाथरस दुर्घटना में षडयंत्र के कई संकेत देखने को मिल रहे हैं :
- सबसे पहली बात जिसे बाबा बताया जा रहा है वो बाबा दिखता नहीं है।
- दूसरी बात यदि वह बाबा होता और षडयंत्र न होकर दुर्घटना होती तो वह विलुप्त नहीं होता अपितु बचावकार्य, शांति आदि में सम्मिलित हो जाता।
- तीसरी बात यह की कई दिनों पहले से सुनिश्चित था कि आज मोदी संसद में दहाड़ेंगे और दहाड़ ऐसी होगी कि इंडी गठबंधन दुबकी दिखेगी । संभव है कि मीडिया में चर्चा का नया विषय बनाने के लिये, देश का ध्यान भटकाने के लिये ऐसा किया गया हो। हाथरस दुर्घटना के बाद मोदी संसद में कैसे गरजे यह दिखाई ही नहीं पड़ा ।
- चौथी बात ये तथ्य स्थापित हो गया है कि खान मार्केट गैंग जिसके विरोध में उतर जाये समझिये कि वो सही है और खान मार्केट गैंग जिसका विरोध न करे, बचाव का प्रयास करे समझ लीजिए कि वो टूलकिट का अंश है।
मीडिया क्या कोई महत्वपूर्ण जानकारी आपको दे रही है, बस कुछ चिल्लाने के अतिरिक्त ? मीडिया बस बलि के बकड़े की बलि चढाने के लिये हल्ला कर रही है कहीं न कहीं राजनीतिक षड्यंत्र था इसके बारे में एक भी शब्द बोल रही है क्या ? षड्यंत्र शब्द तब आया जब योगी ने कहा। मीडिया बहुत ही घृणित है और यदि इसका बस चले तो देश को भी बेच दे।
बाबा है या भगवान
हम पीछे की चर्चा नहीं करेंगे कि पहले सिपाही था, यौन शोषण का आरोप लगा, इतना बड़ा महल कैसे बना लिया इत्यादि। नहीं करेंगे का तात्पर्य यह नहीं कि करेंगे ही नहीं यह विस्तृत चर्चा है जो अलग से की जायेगी। हम यहां पहले उस सूरज पाल को देखेंगे जिसे अनुयायी परमात्मा मानते हैं, और दुर्घटना के बाद से मीडिया ने लगभग अपराधी सिद्ध कर दिया है।
क्या सूरजपाल दिखने में बाबा लगता है ?
बिल्कुल नहीं, सूरजपाल कहीं से भी विद्वान या बाबा नहीं दिखता है। विद्वान और बाबा (दिखने वाले बाबा) में अंतर होता है, दोनों अलग-अलग दिखते हैं, दोनों की भाषा अलग होती है और दोनों के कर्म में भी अंतर होता है। किन्तु दोनों को देखकर लोग समझ जाते हैं कि वो विद्वान हैं या बाबा, कदाचित ही भ्रम उत्पन्न हो पाता है। जैसे फूल की सुगंध फूल के साथ रहती है उसी प्रकार विद्वान की विद्वत्ता और बाबा का सामर्थ्य साथ ही रहता है।
सूरज पाल कहीं से भी न तो विद्वान दिखता है न बाबा लगता है। न पंडित लगता है न पुजारी लगता है। वामपंथी ठग लगता है, फिल्मों में जैसे बाबा दिखाये जाते हैं उसका अनुयायी लगता है। अर्थात इसकी बाबागिरी का रहस्य कहीं न कहीं फिल्म और वामपंथ से जुड़ा हुआ है।
सूरज पाल के बाबा और कथावाचक संबंधी विषय की चर्चा अन्य आलेख में करेंगे। तत्काल मात्र हाथरस वाली दुर्घटना प्रकरण के संदर्भ से ही है। लेकिन इतना स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि हम सूरज पाल को न तो बाबा मानते हैं न ही कथावाचक। यह स्पष्टीकरण इसलिये आवश्यक था कि इसके बिना हमें भी सूरज पाल का अनुयायी कह दिया जाता।
“मानव धर्म सत्य था है और रहेगा” सूरज पाल के बस एक पंक्ति से स्पष्ट हो जाता है कि वह कैसा बाबा है, कैसा कथावाचक है ? किस इको सिस्टम के टूल किट का हिस्सा है ? मानव धर्म स्वतंत्र नहीं है, धर्म का ही अंग है लेकिन धर्मद्रोही जो होते हैं लेकिन दुकान भी चलाना चाहते हैं वही मानव धर्म मानव धर्म चिल्लाते हैं।
सूरज पाल करता क्या था
सूरज पाल करता क्या था इसे सही-सही समझना आवश्यक है। करता क्या था का अर्थ यह नहीं कि भूतकाल में क्या करता था या सत्संग में क्या करता है। करता क्या था इसे दूसरे दृष्टिकोण से समझने की आवश्यकता है। सूरज पाल मुख्य रूप से दो काम करता था :
1 – मतांतरण में अवरोध : मतांतरण कोई ऐसा विषय नहीं रहा जिससे भारत का कोई कोना छूटा हुआ हो। बड़ी भीड़ जिस किसी बाबा या सूरज पाल जैसे कथित बाबा के साथ जुड़ी होती है वह चाहे न चाहे, जाने अनजाने उसके मतांतरण में अवरोध उत्पन्न करता है। उस भीड़ के लोगों का मतांतरण कर पाना सरल नहीं होता। हम ये नहीं कह रहे हैं कि सूरज पाल जान-बूझकर मतांतरण के लिये अवरोध उत्पन्न करता था, यदि ऐसा कहें तो पहली बात जो वामपंथी होने की है वह असिद्ध हो जायेगी।
सूरज पाल के संबंध में कोई तथ्य नहीं है कि यह वामपंथी था या नहीं लेकिन इसके आचरण और व्यवहार से ऐसा लगता है कि यह वामपंथी ठग था जो धर्म के नाम पर ठगी करता था। लेकिन यहां एक बात यह भी आती है कि अनुयायियों से कुछ लेता नहीं था, ऐसा काम भी एक ठग ही करता है वास्तविक बाबा तो मांगते फिरते हैं। वह कुछ नहीं लेने के नाम पर अपने साथ बड़ी भीड़ जुटा लेता है और भीड़ साथ हो तो कौन-कौन कहाँ से कितने दे सकते हैं यह समझना अधिक कठिन नहीं है।
जिसके पास भीड़ हो उसके चरणों में नेता भी लेटते रहते हैं। बस यह एक संकेत पर्याप्त है और अखिलेश यादव को भी जय जयकार करते देखा गया है। अब सूरज पाल के आय के संबंध में कोई दुविधा शेष नहीं रहती कि कमाई कहां-कहां से कैसे करता होगा ?
लेकिन शत्रु कौन-कौन होंगे यह भी समझा जा सकता है। अनचाहे रूप से ही सही अपनी दुकान चलाने के लिये सूरज पाल मतांतरण में अवरोध उत्पन्न कर रहा था। अतः इसके शत्रु वो लोग होंगे जो मतांतरण करते हैं। मतांतरण करने वालों का इको सिस्टम कैसा है कितना बड़ा है यह भी लोग समझते ही हैं।
2 – मेडिकल को हानि : कोई भी बाबा हों या सूरज पाल जैसे कथित बाबा, सबके साथ अनुयायियों का विश्वास जुड़ा होता है और विश्वास के कारण स्वास्थ्य संबंधी लाभ होता ही होता है। इस तथ्य को कहीं से नकारा नहीं जा सकता। यदि बगल के चापाकल, नल के पानी से ही स्वास्थ्य में सुधार का दावा किया जाता था तो बहुत लोगों को विश्वास के कारण निश्चित रूप से लाभ भी मिलता ही होगा। जब लोगों को स्वास्थ्य संबंधी लाभ बाबा से होने लगे तो मेडिकल को हानि होगी ही होगी।
अब दूसरा शत्रु कौन है यह भी स्पष्ट हो जाता है। दोनों शत्रु के ताड़ भी परस्पर जुड़े हुये हैं। कई डॉक्टरों को भी मतांतरण से जुड़ा पाया गया है। दोनों का मिला जुला इको सिस्टम है जो पूरे विश्व में फैला हुआ है। भारत की मीडिया भी इस इको सिस्टम के साथ कहीं न कहीं से जुड़ी हुई है। मीडिया से जुड़े लगभग सभी तथ्य और प्रश्न ऊपर वर्णित कर दिया गया है। मीडिया की भी कड़ी जुड़ी हुई है इसी कारण 24 घंटे में मीडिया ने सूरज पाल को बाबा से अपराधी सिद्ध कर दिया है।
क्या सूरज पाल अपराधी है
सूरज पाल अपराधी कैसे हो सकता है ? यहां पूर्व जीवन के संदर्भ को नहीं ले रहे हैं। वर्त्तमान घटना के संबंध में विचार करने की आवश्यकता है। जो भीड़ सूरज पाल की शक्ति थी सूरज पाल स्वयं उस भीड़ को हानि क्यों पहुंचायेगा ? सूरज पाल की तो दुकान ही बंद हो गयी वह स्वयं अपनी दुकान में ताला क्यों लगायेगा, ठगी भले करे लेकिन ठगी की दुकान चलते रहने के लिये भी तो भीड़ रहनी चाहिये। समझ नहीं आता मीडिया किन तथ्यों के आधार पर इस घटना में सूरज पाल को अपराधी सिद्ध कर रही है। हंगामा कर रही है कि बाबा फरार हो गया, FIR में नाम क्यों नहीं है इत्यादि।
भगदड़ वाली घटना में सूरज पाल कहीं से भी अपराधी सिद्ध नहीं हो सकता क्योंकि अपनी दुकान में कोई भी आग नहीं लगा सकता। हां एक गलती अवश्य सिद्ध हो सकती है की भगदड़ के बाद सूरज पाल को बचाव कार्य में लगना चाहिये था, अपने लोगों को जिसे सेवादार या नारायणी सेना कहता था बचाव कार्य में लगा देता। नहीं लगाया, विलुप्त हो गया यह गलती है। लेकिन यह गलती है या ऐसा करना पड़ा ? भागने के लिये बाध्य भी तो हो सकता है।
#WATCH हाथरस भगदड़ की घटना की प्रत्यक्षदर्शी शकुंतला देवी ने बताया, "भोले बाबा का सत्संग चल रहा था। सत्संग खत्म होते ही कई लोग वहां से निकलने लगे। सड़क उबड़-खाबड़ होने के कारण भगदड़ मच गई और लोग एक-दूसरे पर गिर पड़े…" pic.twitter.com/qICVCzowZC
— ANI_HindiNews (@AHindinews) July 2, 2024
उपरोक्त घटना में मीडिया जो भी कर रही है वह कहीं न कहीं से प्रेरित है, मीडिया को यह सिद्ध करने के लिये कि सूरज पाल अपराधी है क्या मिला है यह भी जांच का विषय है।
संभावना यही लगती है कि सूरज पाल इसी प्रकार करता रहा है और भगदड़ मची नहीं मचाई गयी जो उसे ज्ञात हो गया। यदि भगदड़ मचती, सामान्य रूप से तो इतनी जाने भी नहीं जाती और सूरज पाल भी विलुप्त नहीं होता। भगदड़ मचाई गयी जो सूरज पाल को भी ज्ञात हो गई जिस कारण उसे लगा कि अब फंस गया है, जेल से निकल जाये ये हो सकता है किन्तु जेल जाना होगा यह निश्चित हो गया तो वह भाग गया, मतलब बचाव कार्य में नहीं लगा।
FIR में नाम क्यों नहीं
जांच के लिये यह आवश्यक है कि सूरज पाल बाहर आये, यदि FIR में सूरज पाल का नाम दे दिया जाय तो हो सकता है कि वह कभी बाहर ही न आये। अथवा सूरज पाल ऐसा नाम नहीं कि सीधे FIR में नाम दिया जा सके। अथवा कानून की अपनी प्रक्रिया है जिसके अनुसार ही काम करती है। लेकिन मीडिया को यह दर्द है क्यों ? मीडिया की सूरज पाल से क्या शत्रुता है ? मीडिया के पास ऐसा क्या साक्ष्य है जिससे सूरज पाल अपराधी सिद्ध होता है और उसका FIR में नाम होना चाहिये था ?
अरे सूरज पाल डरा हुआ है, इसलिये विलुप्त है FIR में उसका नाम नहीं दिया गया है तो वह बाहर आ सकता है। उसके बाहर आने के बाद ही तो जांच में विशेष महत्वपूर्ण तथ्य सामने आयेगा। अथवा सरकार को भी यह ज्ञात हो कि भगदड़ मची नहीं मचाई गयी है, षड्यंत्र है। सरकार यह समझती है कि सूरज पाल दुर्घटना प्रकरण में दोषी नहीं हो सकता या तो सामान्य घटना है या षड्यंत्र। अधिक संभावना षड्यंत्र की ही बनती दिख रही है और इसके कुछ राजनीतिक कारण हैं :
- किसी भी प्रकार से देश में अशांति फैले यह प्रयास चल रहा है और चुनाव आयोग तक को ऐसा लगा है। प्रधानमंत्री ने लोकसभा में भी ऐसा ही कुछ वक्तव्य दिया भी था।
- यदि यह दुर्घटना नहीं होती तो मोदी ने बालक बुद्धि की क्या दुर्गति किया अभी 3 – 4 दिनों तक मीडिया में यही दिखाया जाता और देश देखती। मतलब बालक बुद्धि बच गया और वही इको सिस्टम जो मतांतरण और मडिकल से जुड़ी हुई है बालक बुद्धि व गठबंधन से कैसे जुड़ी हुई है यह भी पूरा देश समझता है।
- अखिलेश यादव से जब प्रश्न किया गया तो साफ-साफ कहा कि जांच नहीं होनी चाहिये, मीडिया कवरेज कर रही है उसके आधार पर काम होना चाहिये। लेकिन जांच क्यों नहीं होनी चाहिये क्या वास्तव में षड्यंत्र ही था ?
- एक अन्य बात यह भी है कि सूरज पाल बाबा था या ढोंगी या ठग, जो भी था मीडिया कहां प्रहार कर रही है ? मीडिया सीधे-सीधे सनातन पर प्रहार करते दिख रही है। दो दिन पहले ही संसद में भी तो हिन्दू पर प्रहार किया गया था। एक एक और कड़ी है जो परस्पर जुड़ रही है।
- अगला चुनाव उत्तर प्रदेश में होने जा रहा है और चुनावी दाव भी हो तो कोई बड़ी बात नहीं। विशेष दलों ने सत्ता के लिये कितने खून बहाये हैं यह देश जान रहा है। 121 लोगों की राजनीतिक बलि चढ़ा देना इन दलों के लिये कोई बड़ी बात नहीं यदि इससे सत्ता की चाबी मिले। सत्ता की चाबी के लिये हजारों लोगों की बलि भी दे सकते हैं।
निष्कर्ष : कुल मिलाकर सूरज पाल उसी इको सिस्टम से कहीं न कहीं जुड़ा हुआ हो सकता है जो आज उसे जेल भेजना चाह रही है। इस इको सिस्टम ने ही सूरज पाल को बलि का बकड़ा भी बना दिया क्योंकि इसकी बलि देने से सबके हित सिद्ध हो रहे हैं। मतांतरण करने वालों का अवरोध समाप्त हो गया, मेडिकल वालों की दुकान बढ़ेगी, मीडिया में बालक बुद्धि और गठबंधन की दुर्गति नहीं दिखाई गयी, सनातन पर प्रहार करने का अवसर मिल गया, अशांति भी फैली।