Headlines

इच्छा+स्थिरता = संकल्प, संकल्प+अथक परिश्रम = सिद्धि : मोदी

इच्छा+स्थिरता = संकल्प, संकल्प+अथक परिश्रम = सिद्धि : मोदी

मोदी ने अपने अधिकारियों को सम्बोधित करते हुये क्या कहा और उसका देशवासियों, नेताओं, सहयोगियों, विपक्षियों आदि के लिये क्या संदेश है यह समझना आवश्यक है। संबोधित भले ही अधिकारियों को कर रहे थे किन्तु कई ऐसे संकेत भी थे जो अन्यों को भी दिया गया था। देश कैसे शिखर पर पहुंचेगा इसका सूत्र मोदी ने अधिकारियों को बताया। यहां मोदी द्वारा अधिकारियों को किये गये संबोधन का विश्लेषण किया गया है जो संभवतः अन्यत्र अनुपलब्ध है।

इच्छा+स्थिरता = संकल्प, संकल्प+अथक परिश्रम = सिद्धि : मोदी

प्रधानमंत्री मोदी कार्यकाल पूर्ण करते हुये लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने वाले दूसरे प्रधानमंत्री बन गये हैं और ये एक ऐतिहासिक तथ्य हो गया है। लेकिन मोदी का लक्ष्य प्रधानमंत्री बनना, सत्ता-शक्ति प्राप्त करना नहीं समृद्ध भारत बनाना है। मोदी ने चुनावी सभाओं में कहा था पिछले दो कार्यकाल के 10 वर्षों में जो भी विकास हुआ वह मात्र ट्रेलर था फिल्म तो अब बनेगा। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुये मोदी ने अपने अधिकारियों को सम्बोधित किया क्योंकि काम तो उन्हें ही करना है।

PMO शक्ति का केंद्र

PMO शक्ति का केंद्र नहीं सेवा का अधिष्ठान बने यह मोदी की सोच है। PMO शक्ति का केंद्र नहीं है, सेवा का अधिष्ठान है यह वक्तव्य अधिकारियों के लिये सेवाभाव का विकास करने में उत्प्रेरक हो सकता है, किन्तु इस विषय में सहमति नहीं हो सकती कि PMO शक्ति का केंद्र नहीं है। शक्ति संबंधी वक्तव्य में एक बार ऐसा भी प्रतीत होता है कि मोदी शक्ति की उपेक्षा कर रहे हैं, किन्तु ये वास्तविकता नहीं है।

एक व्यक्ति ही नहीं एक चींटी भी और वो जीवाणु भी जो खुली आंखों से नहीं दिखते शक्ति से ही कुछ कर सकते हैं। ब्रह्म भी स्वयं कुछ नहीं करता करने वाली शक्ति ही होती है। शक्ति का दुरुपयोग होने से वह दुष्परिणामकारी होता है और सदुपयोग होने पर सुपरिणाम, कल्याण आदि की जननी होती है। प्रधानमंत्री जिस ऊर्जा के संचरण की बात कर रहे थे उसमें भी शक्ति ही सन्निहित होती है। शक्तिहीन होने पर मनुष्य स्वयं भोजन करने में भी असमर्थ हो जाता है, कर्मयोगी बनने की तो बात ही अलग है।

सतही रूप से ऐसा प्रतीत होता है कि मोदी शक्ति के स्थान पर सेवा को स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। ये संभवतः अभिव्यक्ति की त्रुटि है; शक्ति के स्थान पर सेवा स्थापित नहीं हो सकती। सेवा करने के लिये भी शक्ति की आवश्यकता होगी। शक्तिहीन होने पर सेवा करना संभव नहीं है। मूल तात्पर्य जो था वह ये कि शक्ति से मद की उत्पत्ति को रोका जाय “प्रभुता पाई काहि मद नाहीं”, अहंकार के स्थान पर सेवाभाव को स्थापित किया जाय।

यदि सेवाभाव नहीं जगे तो मद अर्थात अहंकार ही उत्पन्न होगा और मदांध होने पर शक्ति का दुरुपयोग होगा। मोदी का उद्देश्य इस मद को उत्पन्न होने से रोकना और सेवाभाव का स्थापन करना था।

विपक्षियों को यह संदेश था कि आगे से निरंकुश (तानाशाह) कहने से पहले सौ बार सोच लेना क्योंकि एक निरंकुश शासक सबसे पहले अपने कर्मचारियों पर ही अत्याचार करता है फिर कर्मचारी प्रजा पर करते हैं। जनता, देश और दुनियां को संदेश था कि शक्तियां तो हैं हम शक्तियों का प्रयोग सेवाभाव से करेंगे न की मदांध होकर निरंकुश शासक बनने वाले हैं, और विपक्षी व चट्टे-बट्टे यदि तानाशाह-तानाशाह चिल्लायें तो हमारी सेवा का स्मरण करना।

न सोऊंगा न सोने दूंगा

लक्ष्य जब बड़ा हो, भाव सेवा का हो तो समय का बंधन नहीं होता। ड्यूटी आवर का सीमित होना एक सामान्य प्रक्रिया है और सेवाभाव का अभाव होने पर बस ड्यूटी बजाया जाता है। अपने अधिकारियों को सेवाभाव से भरते हुये मोदी कह रहे थे कि यह कार्यकाल ड्यूटी बजाने का नहीं देश सेवा का है और देश सेवा के लिये समर्पित होने की आवश्यकता है, सेवाभाव के बिना समर्पित होना संभव नहीं है।

मोदी सरकारी तंत्र को यह समझाने का प्रयास कर रहे थे कि सरकार का कार्य जब सेवा करना होगा तो उसमें कार्य करने की समय सीमा भी नहीं रहेगी। सरकार का तात्पर्य मात्र मोदी या मंत्रिमंडल नहीं होता पूरा तंत्र होता है। अतः पूरे तंत्र को सेवाभाव से ओत-प्रोत रहते हुये चौबीसों घंटे कार्यरत रहना चाहिये।

चौबीसों घंटे का तात्पर्य यह भी नहीं कि सोना ही नहीं है, चौबीसों घंटे का तात्पर्य यह है कि जो भी आवश्यक कार्य आया हो उसे निपटाने के लिये ड्यूटी आवर समाप्त हो गया अब कल करेंगे इसका अभाव होना है। नींद भी आवश्यकता है और कर्म की निरंतरता के लिये नींद लेना अपरिहार्य है अतः चौबीसों घंटे कहने का तात्पर्य यह नहीं हो सकता कि कोई नींद ही न ले। चौबीसों घंटे का तात्पर्य यह है की नींद तो ले किन्तु नींद के कारण कार्यों को कल पर टाला नहीं जाना चाहिये।

मूल तात्पर्य यह है की जो अधिकारी तंत्र में हैं भले ही नौकरी सोचकर आये हों किन्तु आगे बड़े लक्ष्य हैं और इसके लिये नौकरी भाव का त्याग करते हुये सेवाभाव का आश्रय लेकर कार्य करना है और देश के समक्ष एक बड़ा लक्ष्य है जिसके लिये काम को कल पर टालने की प्रवृत्ति का परित्याग करना होगा। लेकिन मोदी ने यह नहीं कहा कि पहले और दूसरे कार्यकाल में ऐसा नहीं था आगे ऐसा करना है। मोदी ने यह भी कहा कि मोदी की टीम ऐसी ही है और अपने विजय का श्रेय भी उस टीम को समर्पित किया।

जाने वाले को राम राम आने वाले को प्रणाम

न सोऊंगा और न सोने दूंगा से बहुत लोग ऊब गये होंगे ऐसा संभव है और जो नये हैं ये सोचकर आये हैं कि ड्यूटी बजाना है वो भी ऊब सकते हैं। यदि किसी के मन में यह हो कि बहुत सह लिया अब और नहीं तो वो जा सकते हैं, ऐसा नहीं कि बंधुआ मजदूर हैं। और बहुत लोग ऐसे भी होंगे जो देश के लिये इस सेवाभाव से समर्पित होना चाहते हैं उनका स्वागत है वो आ जायें और देश के विकास में अपना योगदान दें।

मंत्रालय बंटवारा होने के बाद कुछ सहयोगी दलों में भी असंतोष संबंधी बातें मीडिया उछालने का प्रयास कर रही है और इसमें सत्यता भी हो सकती है। मोदी ने अपने सहयोगियों को भी संदेश दिया कि हमारे लिये सत्ता सुख प्राप्ति के लिये नहीं है, सेवा करने के लिये है और हम उसी दिशा में काम करेंगे।

यद्यपि का यह वक्तव्य अधिकारियों के संबोधन का ही है किन्तु इसमें सहयोगी दलों को भी संदेश है। NDA की सरकार बनी है और कहीं न कहीं सहयोगी दलों की अधिक अपेक्षायें हो सकती है। जबकि भाजपा की पुरानी नीति है कि सहयोगी दलों को राज्य सरकार में स्थायित्व प्रदान करती है और केंद्र में स्थायित्व ग्रहण करती है। मोदी ने इस विषय में स्पष्ट संकेत दे दिया कि केंद्र सरकार दबाव में नहीं आयेगी और साफ-साफ कहा जिसे जाना है चले जाओ, जिसे काम करना है आ जाओ।

सिद्धि का सूत्र या सफलता का रहस्य

मोदी ने अपने अधिकारियों ही नहीं सभी देशवासियों और विश्व को भी एक बड़ा सूत्र बताया और वो सूत्र है सिद्धि का सूत्र, सफलता प्राप्ति का रहस्य। मोदी ने समझाया कि सबसे पहले लक्ष्य निर्धारित करो कि पाना क्या है ? लक्ष्य निर्धारण और इच्छा में अंतर होता इच्छायें अनंत होती हैं, परिवर्तित होती रहती है और परिवर्तनशील इच्छायें मात्र तरंग होती है, अस्थिर होती है। अस्थिर इच्छाओं से लक्ष्य निर्धारण (कामना) नहीं किया जा सकता।

इच्छा जब स्थिर होती है तब कामना का उदित होती है और कामना पूर्ति का प्रथम चरण संकल्प होता है अर्थात स्थिर इच्छा संकल्प का रूप लेती है और इच्छाओं के संकल्प में परिवर्तित होने की प्रक्रिया ही लक्ष्य निर्धारण (कामना) होता है। यद्यपि लक्ष्य निर्धारण (कामना) का उल्लेख उन्होंने नहीं किया। इच्छा के स्थिर होने पर लक्ष्य निर्धारण (कामना) की प्रक्रिया पूर्ण होने से संकल्प का उदय होता है और संकल्प के बाद लक्ष्य प्राप्ति (कामना) के उद्देश्य से परिश्रम की आवश्यकता होती है। संकल्प के पूर्ति अर्थात कामनासिद्धि (लक्ष्यप्राप्ति) के लिये अथकप्रयास (कर्म) की आवश्यकता होती है।

कामनासिद्धि का सूत्र मोदी ने इस प्रकार बताया :

  • इच्छा + स्थिरता = संकल्प
  • संकल्प + अथक परिश्रम = सिद्धि

इस सूत्र को थोड़ा परिवर्तित किया जाय तो इस प्रकार से होगा :

  • इच्छा + स्थिरता = कामना
  • कामना + संकल्प = कर्म
  • कर्म + निरंतरता = सिद्धि

मोदी ने सिद्धि का सूत्र तो बताया ही साथ ही यह भी सन्देश दिया कि हमारी इच्छा स्थिर है अर्थात कामना का रूप धारण कर चुकी है। संकल्प ले रहा हूँ और आने वाले दिनों में निरंतर कर्मयोग के माध्यम से सिद्धि प्राप्ति का प्रयास करूँगा। वास्तव में अधिकारियों को मोदी का सम्बोधन संकल्प था।

संकल्प : भारत को प्रथम बनाना

मोदी ने अधिकारियों को सम्बोधन में मात्र सूत्र ही नहीं बताया और बस एक भाषण ही नहीं दिया मोदी ने संकल्प भी बताया कि हमारा संकल्प है क्या ? संकल्प बताते हुये मोदी ने कहा कि हमारा संकल्प विश्व में दूसरे-तीसरे स्थान को प्राप्त करना नहीं है। हमारा संकल्प भारत विश्व में प्रथम का है। आगे जो हमारा कर्म होगा वह दूसरे या तीसरे स्थान प्राप्ति के लिये नहीं होगा प्रथम स्थान को प्राप्त करने वाला होगा। हमें उस नियंता के अधीन रहने की आवश्यकता नहीं है जो विश्व ने बना रखा है हम स्वयं ही नियंता बनेंगे और नीति भी निर्धारित करेंगे।

सिद्धि का मार्ग : स्पष्ट कामना, परामर्श और समर्पण

अधिकारियों को मोदी का सम्बोधन निश्चित रूप से एक बड़े विचारक जैसा रहा। संकल्प कर रहे थे तो मोदी ने बताया कि हमारी कामना स्पष्ट है कि हमें चाहिये क्या। लेकिन स्पष्ट कामना और नीति होने पर भी परामर्श का मार्ग अवरुद्ध नहीं होना चाहिये। हमें परामर्श और सुझाव का भी अध्ययन करना आवश्यक होता है और जो परामर्श उचित हो उसे ग्रहण भी करना चाहिये, ऐसा पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिये कि परामर्श विरोधी का है तो अनुचित ही होगा। पुनः समर्पण भाव को भी आवश्यक बताया कि कामना सिद्धि के लिये समर्पण अर्थात कर्म में ज्ञान-बुद्धि-मन को समर्पित करना होगा।

यहां मोदी विपक्ष को संदेश भी दे रहे थे कि आपके परामर्श, सुझाव की हमें अपेक्षा है और आपके परामर्शों के लिये हम किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं रहेंगे। आप स्वस्थ विपक्ष की भूमिका का निर्वहन करते हुये हमारी त्रुटियों को उजागर करें तो हम त्रुटियों का निवारण करने में किसी हीनभावना से ग्रसित नहीं होंगे अपितु आभार व्यक्त करेंगे। अब यह तो विपक्ष के ज्ञान और विवेक पर निर्भर करता है कि विपक्ष इसको समझ भी पायेगा अथवा नहीं। यदि समझ भी ले तो भी इस मार्ग का अवलम्बन लेगा या नहीं ये भी विपक्ष का ही अधिकार है उसे बाध्य नहीं किया जा सकता।

ऊर्जा का रहस्य

मोदी ने अपना उदहारण प्रस्तुत करते हुये ऊर्जा का रहस्य भी उजागर किया। मोदी ने बताया कि मुझे बारम्बार ऊर्जा का रहस्य पूछा जाता है लेकिन उनके प्रश्न का तात्पर्य शारीरिक ऊर्जा मात्र होता है जो स्वयं में त्रुटिपूर्ण है, भौतिकवाद से ग्रस्त है। ऊर्जा का रहस्य आध्यात्मिक है ऊर्जा का स्रोत आत्मा है न कि शरीर। शरीर तो आत्मा से ऊर्जा प्राप्त करता है भौतिकवादियों का जो ऊर्जा है वह तो शरीर के साथ ही नष्ट भी हो जाता है लेकिन ऊर्जा का नाश तो होता ही नहीं।

अर्थात भोजन, व्यायाम, योग आदि जो ऊर्जा के कारण समझा-समझाया जाता है वह वास्तविक स्रोत नहीं माध्यम मात्र होता है। यदि आत्मा की ऊर्जा न हो तो शरीर उस माध्यम का आश्रय भी ग्रहण नहीं कर सकता। माध्यमों का आश्रय ग्रहण करने के लिये भी ऊर्जा की आवश्यकता होती है और वह ऊर्जा आत्मा की ऊर्जा होती है।

आत्मा की ऊर्जा प्राप्त करने का मार्ग ज्ञान होता होता है। वर्तमान भारत का स्वरूप ऐसा हो गया है कि आध्यात्मिक तथ्य यदि यथावत रखे जायें तो उसे सांप्रदायिक कह दिया जाता है, किन्तु मोदी की अभिव्यक्ति निःसंदेह सराहनीय है कि अपने सम्बोधन में मोदी ने इस प्रकार से आध्यात्मिक तथ्य प्रस्तुत किया कि उसे सांप्रदायिक नहीं कहा जा सकता। उन्होंने आत्म ऊर्जा प्राप्ति का रहस्य बताते हुये कहा कि मैंने जीवन भर अपने विद्यार्थी को जीवित रखा है। “सफल वो इंसान होता है, जिसके भीतर का विद्यार्थी कभी मरता नहीं है।”

अभूतपूर्व सम्बोधन

मोदी ने अधिकारियों को जो संबोधित किया वह अभूतपूर्व है। मोदी के संबोधन में राजनीतिक तथ्य ही नहीं थे आध्यात्मिक ज्ञान भी था। मोदी का ऐतिहासिक संबोधन भविष्य के लिये प्रेरणास्रोत बना रहेगा। संबोधित करते हुये मोदी एक शासक, एक विचारक, एक राष्ट्रभक्त, एक आध्यात्मिक व्यक्तित्व, एक कर्मयोगी आदि कई रूपों का समन्वय दिखाई दे रहा था। भारत विश्वगुरु कैसे बनेगा उसकी दिशा मोदी ने अधिकारियों को दिखाया।

उपरोक्त आलेख के संबंध में एक बात और स्पष्ट होना अपेक्षित है कि यदि विपक्षी दल वाले अध्ययन करेंगे तो सीधे मोदीभक्त बोल देंगे। लेकिन उनके लिये यह स्पष्ट कर दूँ की यदि कभी ऐसा संयोग प्राप्त हो कि मोदी से आमना-सामना हो जाये तो मैं उनमें से नहीं हूँ जो मोदी को प्रणाम करना चाहते हैं, मैं मोदी के प्रणाम करने की अपेक्षा करूँगा और प्रणाम करने के उपरांत आशीर्वाद दूंगा। इसलिये यदि किसी को ये भ्रम हो और मोदीभक्त कहना चाहे तो उससे पहले ये जान ले कि ये मोदी की भक्ति नहीं है।

मोदी सरकार 3.0 किसे क्या मिला
कभी खुशी कभी गम के चक्कर में पड़ी मोदी सरकार 3.0 किसे क्या मिला
छद्म प्रतिक्रिया है और मात्र एक ढोंग
कांग्रेस और इंडि गठबंधन का आतंकवाद विरोध
शपथ-ग्रहण-मोदी सरकार 3.0
मोदी सरकार 3.0 का शपथ ग्रहण समारोह, कौन-कौन बने मंत्री


Discover more from Kya Samachar hai

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Discover more from Kya Samachar hai

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading