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क्या मोदी मूर्ख हैं – is modi a fool

क्या मोदी मूर्ख हैं

मोदी को क्यों प्रधानमंत्री बनना चाहिये

यहां हम राजनीतिक परिदृश्य की चर्चा करते हुये यह समझने का प्रयास करेंगे कि क्या मोदी मूर्ख हैं। क्योंकि लोकसभा चुनाव से लेकर सरकार बनाने तक उन्हें मूर्ख समझने का प्रयास किया जा रहा है। इसे हम दो दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करेंगे पहला RSS के सापेक्ष और दूसरा विपक्षियों के सापेक्ष।

क्या मोदी मूर्ख हैं

प्रथम महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है लेकिन सबसे बड़ी विजेता भाजपा ही है और NDA गठबंधन को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ है। वहीं दूसरा तथ्य यह है कि इंडि गठबंधन जो बहुमत से बहुत दूर है और यदि कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस शतक भी नहीं लगा पाई है। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पूरा इंडि गठबंधन अकेले भाजपा से भी नीचे है लेकिन विपक्ष में रहने के लिये तैयार नहीं है सरकार बनाने के जुगाड़ में है।

सबसे पहली बात भाजपा को लोकसभा चुनाव 2024 में पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं होना है किन्तु सबसे बड़ी पार्टी होना है और बहुमत से थोड़ा नीचे अटकना है। जब इस विषय में विचार करेंगे तो RSS के भूमिका की भी विचार अपेक्षित है।

क्या RSS ने राष्ट्रहित झूठा राग अलापती है

RSS राष्ट्रवाद का राग सदा लगाती है इसके साथ ही सनातन अलापे न अलापे हिन्दू अवश्य अलापती रहती है। ध्यान देने वाली बात ये भी है कि RSS का हिन्दू जो है वो वास्तविक सनातन से भिन्न होकर कुछ विशेष संस्थाओं द्वारा परिभाषित और स्वपरिभाषित हिन्दू है। RSS का हिन्दू सनातन शास्त्रों के सनातन से मेल नहीं खाता है वो एक परिवर्तित रूप में दिखता है जहां धर्म-कर्मकांड आदि के भी नियम वो होंगे जो संघ प्रमुख कहेगा।

जब RSS सनातन के संदर्भ में ऐसी धारणा रख सकती है कि “जो RSS कहे वही सही, शास्त्र वचन आई-गई” तो राष्ट्रहित-राष्ट्रवाद में तो निश्चित रूप से ऐसा कर सकती है क्योंकि वहां तो कोई शास्त्र है ही नहीं।

RSS भाजपा की मातृ संगठन है यह दुनियां जानती है लेकिन वास्तविक चेहरा संभवतः नहीं देख पाई है कि RSS सांप भी है, सांप के बारे में यह कहा जाता है कि सांप अपने अण्डों का भक्षण भी करती है, जो थोड़े-बहुत अण्डे छिटक जाते हैं वही शेष बचते हैं। अन्यथा यदि सभी अण्डों से सर्प जन्म लेने लगे तो पूरी पृथ्वी ही सर्पमय हो जायेगी। संभवतः जब भी भाजपा का कोई नेता विशेष लोकप्रिय होने लगता है तो RSS उसे निगलने का प्रयास करती है। अटल बिहारी वाजपेयी को पहले भी निगल चुकी है।

यहां यह स्पष्टीकरण अपेक्षित है कि सांप की बात समझाने के लिये उदाहरण स्वरूप किया गया है न कि भाजपा नेताओं को सर्प कहा जा रहा है। अटल-मोदी को सांप या सपोला कहा जा रहा है ऐसा तात्पर्य कदापि नहीं लिया जाना चाहिये। राजनीति में एक बुड़ी परम्परा पनपने लगी है कि यदि उदहारण से समझाने का भी प्रयास किया जाय तो उसे तुलना के सन्दर्भ में ग्रहण कर लिया जाता है।

जब भाजपा सत्ता में नहीं होती है तब RSS उसके सत्ता में स्थिति के लिये प्रयास करती तो है किन्तु RSS भी चाहती यही है कि कोई भी नेता इतना बड़ा न हो जाये कि RSS के जूते साफ करना बंद कर दे। RSS भाजपा को सत्ता में पहुँचाने के लिये इस स्वार्थ से प्रयास करती है कि सत्ता उसके जूते को साफ करती रहे। यदि कोई नेता अधिक लोकप्रिय हो जाये तो उसे निगल जाती है भले ही उसके लिये कुछ भी मूल्य क्यों न चुकाना परे।

अटल सरकार और RSS

अटल सरकार ने कई महत्वपूर्ण कार्य किये थे लेकिन 2004 के चुनाव में RSS अटल बिहारी वाजपेयी को निगल गयी और मूल्य में 10 वर्षों के लिये UPA की सरकार बनने का भुगतान किया।

यदि अटल बिहारी वाजपेयी को नहीं निगलती तो भारत कब की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया होता और आज प्रथम श्रेणी प्राप्त करने का प्रयास कर रहा होता।

ये जगजाहिर है कि अटल सरकार पराजित नहीं हुयी थी RSS ने ऐसा वातावरण बनाया था कि अटल सरकार सत्ता से बाहर हो गयी और उसके बाद देश ने कभी अटल बिहारी वाजपेयी का कोई कार्य नहीं जाना विपक्ष में भी भी कुछ करते नहीं देख पाया। बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में भी संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा वाली बात कहकर बिहार की सत्ता के मुहाने पर स्थित भाजपा को पीछे ढकेल दिया था।

मोदी सरकार और RSS

ये तो विपक्षियों ने भी स्वीकारा है और स्वयं भाजपा ने भी माना है कि लोकसभा चुनाव 2024 में RSS पुनः 2004 वाले उसी मार्ग चला गया जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी को निगल गयी थी। सतही रूप से विवाद मंदिरों के विषय में देखा गया था, RSS का मानना था कि राम मंदिर के बाद अब आगे और नहीं, अर्थात ज्ञानवापी और मथुरा कृष्ण मंदिर को भुला देना चाहिए।

लेकिन भाजपा इस विषय में सहमत नहीं थी, इसके साथ ही नितिन गडकरी को प्रधानमंत्री बनाने का विवाद देखा गया। जैसे ही मोदी की लोकप्रियता बढ़ने लगी, सनातन पुनर्जागरण की पृष्ठभूमि तैयार होने लगी RSS मोदी को ही रास्ते से हटाने के प्रयास में जुट गयी।

क्या भाजपा और मोदी को पहले से ज्ञात था कि RSS वही सांप है जो फिर से निगलने के लिये मुँह फाड़े तैयार है : हाँ, भाजपा और मोदी सबको यह बात पहले से ही ज्ञात थी कि RSS क्या करेगी और मोदी उतने बड़े मूर्ख भी नहीं हैं कि इतिहास की भूल से सीख भी न लें। भाजपा अध्यक्ष नड्डा ने जो भाजपा के चुनाव लड़ने में सक्षम होने सम्बन्धी वक्तव्य दिया था वो इसी की प्रतिक्रिया थी और RSS का सहयोग प्राप्त किये बिना लोकसभा चुनाव 2024 अपने बल-बूते पर लड़ी। कहाँ हानि होगी यह भी ज्ञात था और उसकी परिपूर्ति कहाँ से होगी इसकी योजना भी थी।

आकलन में थोड़ी कमी रही जिससे भाजपा बहुमत का आंकड़ा नहीं प्राप्त कर सकी किन्तु ये सिद्ध कर दिया कि भाजपा स्वयं चुनाव लड़ने में सक्षम है व अगले चुनावों में पुनः भाजपा उत्तम प्रदर्शन करती दिखेगी। वास्तविक परीक्षा की घडी लोकसभा चुनाव 2024 में ही थी और इसी सरकार को चलाकर दिखाने में है।

मोदी को क्यों प्रधानमंत्री बनना चाहिये

सामान्य स्तर से देखा जाय तो भाजपा उस स्थिति में है जहाँ मोदी को प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहिये, लेकिन उपरोक्त चुनौती व विपक्ष वाली चुनौती को देखा जाय एवं उससे भी बड़ी बात राष्ट्रसर्वोपरि भाव से समझने का प्रयास किया जाय तो इस संकट की घड़ी से भी बाहर निकालने का दायित्व मोदी को ही लेनी चाहिये जिसे मोदी ने स्वीकार किया है। बात मात्र भाजपा की ही नहीं है राष्ट्रहित की भी है। मोदी को ज्ञात है कि जिस पौधे को उन्होंने लगाया है सींचा है अगर छोड़ दिया तो फिर से 2004-2014 वाली स्थिति ही होगी और यह पौधा सूखे न सूखे इसे काटकर गिरा दिया जायेगा।

वर्त्तमान संकट से उबरना उस पौधे को जिसे लगाया संरक्षित करना कठिन और कष्टप्रद हो सकता है किन्तु वो स्थिति अतिकष्टकर होगी जब कोई और आकर इस पौधे को काटकर गिरा दे। अयोध्या में भाजपा की पराजय, काशी में मोदी का मात्र डेढ़ लाख मतों से विजयी होना, अमेठी में स्मृति ईरानी का भी हार जाना कोई भी सामान्य घटना नहीं है और न ही दो लडके का कमाल है, इसके पीछे RSS की चली हुई चाल है जो भाजपा से अधिक किसी को ज्ञात नहीं है।

देश स्वयं हतप्रभ है निराशा के भाव से ग्रस्त है लेकिन मोदी मूर्ख नहीं है और इसीलिये कल के संबोधन में भाजपा मुख्यालय से देश के दर्द को बांटा आशा का संचार करते हुये कहा कि सरकार मोदी 3.0 की ही बनेगी देश चिंता की आग में न झुलसे। मोदी ने संकट की घडी में धैर्य और साहस का आश्रय लेते हुये मतदाताओं को भी निराशा के अंधकार से बाहर निकाला।

इंडि गठबंधन मोदी को मूर्ख समझती है

इंडि गठबंधन के नेता एक मंत्र का जप कर रहे हैं मोदी की नैतिक हार और मोदी ने उनको भलीभांति समझा दिया कि भाजपा अकेले पुरे इंडि गठबंधन से आगे है। जिसे 99 सीटें ही मिली हो वो कांग्रेस बतायेगी कि 240 सीटें लेकर भाजपा हार गयी है। जिस AAP का सफाचट हो गया है वो सबसे बड़ी राजनीतिक दाल को कहेगी की हार गयी है और भाजपा स्वीकार लेगी। जिस राजद को मात्र 4 सीटें मिली है वो बतायेगी की जनता ने किसे सत्ता सौंपी है!

प्रधानमंत्री कौन बनेगा

नैतिक आधार पर मोदी हार गये हैं विपक्ष किस मुंह से यह बात बोल रही है जब पूरे विपक्ष से मोदी आगे हैं। विपक्ष मोदी को मूर्ख समझती है क्या कि मोदी सरकार नहीं चला पायेंगे ऐसा समझाकर विपक्ष में बैठाना चाहती है। NDA गठबंधन के पास सरकार बनाने और चलाने का आंकड़ा है, लेकिन मोदी मूर्ख हैं इसलिये दस वर्षों से जिस पौधे को सींचा है उसे जानवरों के लिये छोड़कर, कर्मयोग त्याग करके संन्यास ले लेंगे।

विपक्षी मोदी को ऐसा मूर्ख समझते हैं कि वो इस तथ्य को भी स्वीकार कर लेंगे कि 99 पर अटकने वाली कांग्रेस को सरकार बनाने का भार जनता ने सौंपा है लेकिन 240 सीटें लाने वाली भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया है। वास्तव में अद्भुत ज्ञानी हैं विपक्षी खेमे में जिसे अपना खाली पांव नहीं दिखता सामने वाले के जूते में पॉलिस नहीं है ये चिल्ला रहे हैं।

इंडी गठबंधन जीत गयी NDA हार गयी
भारत की दिशा
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