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मुफ्तखोरी का मजा मिलेगा, नाले का पानी पीना पड़ेगा

मुफ्तखोरी का मजा मिलेगा, नाले का पानी पीना पड़ेगा

दिल्ली जल संकट महीने भर से चलता ही रहा और AAP नेता हरियाणा पर कम पानी छोड़ने का गीत गाते रहे। समस्या का कोई समाधान नहीं निकला और आतिशी अनशन करने बैठ गयी। ये अलग बात है कि गांव के लोग अनशन करने के बाद भी तीन दिन चल-फिर सकते हैं किन्तु शहर के लोग यदि 3 दिन अनशन कर लें तो बिछावन से उठ भी न पायें। अब वो कैसा अनशन कर रही है वो जाने वैसे भी AAP ने जो भी किया है सब कुछ अजब-गजब ही है, अनशन का भी अजब-गजब होना कोई बड़ी बात नहीं।

मुफ्तखोरी का मजा मिलेगा, नाले का पानी पीना पड़ेगा

मुफ्तखोरी में मजा आता है या मुफ्तखोरी की सजा मिलती है यह अंतिम निर्णय पाठकों को स्वयं करना होगा किन्तु उसके लिये इस विषय को गंभीरता से समझना आवश्यक है और पूरा लेख भी पढ़ना चाहिये।

महीने भर से बस आरोप और सिर्फ आरोप लगाने का काम दिल्ली सरकार कर रही है। आरोप लगाने के अतिरिक्त यदि कुछ किया तो दो-चार दिन कुछ दौड़ा कर लिया फिर याद आया कि आपिये ने काम करने की का कोई प्रशिक्षण ही नहीं लिया है, प्रशिक्षण तो धरना-प्रदर्शन का लिया है सो धरना-प्रदर्शन ही करेंगे। ये कितना शर्मनाक है कि सरकार को काम करना चाहिये और वो काम छोड़कर सत्याग्रह करने बैठ जाये। दिल्ली की जलमंत्री और AAP नेता अनशन कर रही है, दिल्ली पानी के लिये तड़प रही है। इसके मुख्य तीन संकेत हैं :

  1. दिल्ली सरकार की विफलता
  2. मुख्यमंत्री पद की लड़ाई
  3. नाले का पानी पिलाने की तैयारी

1 – दिल्ली सरकार की विफलता

जल की समस्या दिल्ली में कोई नई नहीं है दस वर्षों से अधिक दिल्ली में केजरीवाल की सरकार काम कर चुकी है किन्तु जल संकट जितना पहले था उससे कई गुणा बढ़ चुका है। दिल्ली के लोग कहते हैं कि शीला दीक्षित के कार्यकाल में जल के लिये बहुत काम हुआ था, संभवतः बदली सरकार ने उसकी भी लीपा-पोती कर दिया। जहां तक टैंकर माफिया की बात है तो ये स्वयं में बड़ा विषय है और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी नियंत्रित करने के लिये कहा गया किन्तु दिल्ली सरकार ने हाथ खड़े कर दिये।

जब सर्वोच्च न्यायालय भी कोई समाधान बताये और सरकार वो भी न कर पाये, हाथ उठा दे तो इसका क्या अर्थ होता है। साफ-साफ समझा जा सकता है कि ये सरकार की विफलता है। यदि सबकुछ पड़ोसी राज्य और केंद्र सरकार ही करे तो तुम कुर्सी पर जमे क्यों हो ?

आप स्वयं कुछ न कर पायें अक्षम हों और पड़ोसियों से सहयोग की भी आवश्यकता हो तो पड़ोसी सहयोग करेंगे यदि आप सहयोग करने योग्य हों तो। यदि आप चावल भी पड़ोसी से मांगे और दाल भी, फिर चुल्हा भी पड़ोसी से ही मांगने जायें और बरतन के लिये भी तो इसे सहयोग लेना थोड़े न कहा जायेगा। इससे तो सिद्ध ये होता है कि आप आत्मनिर्भर नहीं हैं।

यदि आप आत्मनिर्भर नहीं हैं दूसरों पर निर्भर हैं तो आप अनुनय-विनय से सहयोग प्राप्त कर सकते हैं, लड़कर नहीं। छीनने का काम तो गुंडा करता है और AAP सरकार वही गुंडागर्दी करती रही है।

ये गुंडागर्दी आज से नहीं जिस दिन से सरकार बनी है उसी दिन से कर रही है। क्या देश भर में कोई और राज्य सरकार है जो हर दिन केंद्र पर ही आरोप लगाती रहती हो। दिल्ली तो पूर्ण राज्य भी नहीं है, केजरीवाल से पहले भी केंद्रशासित प्रदेश था और आज भी है। केजरीवाल से पहले पहले की सरकारें केंद्र और पड़ोसी राज्य सरकारों से से मेल-जोल रखकर काम करती थी, लेकिन केजरीवाल सरकार जबसे बनी केवल और केवल टक्कर लेती रही है। कुछ भी गलत हुआ हो तो केंद्र ने किया, पड़ोसी राज्य का किया धड़ा है।

वास्तव में दिल्ली सरकार जल संकट में इतनी विफल हो गयी है कि न तो पैसे हैं कि कोई स्थायी समाधान कर सके, अस्थायी समाधान करने के लिये भी इसके पास पैसे नहीं बचे। विकल्प शेष रहा पड़ोसियों से सहयोग लेने का तो अभी भी इसके तेवर गुंडागर्दी वाली ही है। पड़ोसियों से सीधे सहयोग लिया जाता है न कि यदि तीसरे की भी आवश्यकता हो तो उसे भी अनुनय विनय करके बीच में रखना पड़ता है।

ये गुंडागर्दी करने वाली सरकार कभी पड़ोसी राज्यों से अच्छे संबंध बना ही नहीं पायी और इसके कारण सीधी बात करने का साहस ही नहीं है, अथवा सीधी बात करने आती ही नहीं हो क्योंकि राजनीति करके कोई थोड़े न सरकार बनायी है, आंदोलन करके बना ली और इसका दोष तो मतदाता को भी जाता है कि बार-बार सत्ता में बैठाने लगी। सीधी बात नहीं कर सकती लेकिन मीडिया में गुंडागर्दी करके मांग सकती है। हरियाणा-हरियाणा का जो महीने भर से जप किया जा रहा है वह क्या है ? गुंडागर्दी ही तो है, बात नहीं मानी तो मीडिया के माध्यम से बदनाम कर दूंगा।

ये वास्तविकता है कि अभी तक दिल्ली की AAP सरकार को राज्य चलाने का कोई अनुभव प्राप्त नहीं हुआ है और पूर्ण रूप से विफल रही है। सत्याग्रह तो विपक्ष को करना चाहिये था और जल मंत्री आतिशी ही सत्याग्रह करने चली गयी। क्यों न करे निर्लज्जता की कोई सीमा थोड़े न होती है और रास्ते भी नहीं बचे। जब भीख भी कोई न दे तो क्या किया जा सकता है ? अरे भीख ही मांगना था, भीख मांगना तो सीख लेते।

2 – मुख्यमंत्री पद की लड़ाई

जिस दिन केजरीवाल को पहली बार लगा था कि जेल जाना पर सकता है उसी दिन से अगले मुख्यमंत्री के लिये सुनीता केजरीवाल को आगे करने का प्रयास कर रहा था। ये प्रयास स्वाभाविक है और सिद्ध है इसे सिद्ध करने के लिये को साक्ष्य प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है पूरे देश में ऐसे अनेकों राजनीतिक दल हैं और ऐसा ही करते रहे हैं। ये प्रयास या तो मीडिया छुपाती रही है या पूर्ण रूप से गुप्त रखा गया।

जब केजरीवाल को इसमें सफलता नहीं मिली तो सर्वे का खेल शुरू हो गया और जेल से सरकार चलाने के लिये पद पर रहें या छोड़ें की नौटंकी करने लगे। जेल जाने के बाद भी आज तक मुख्यमंत्री पद पर बने हुये ही हैं। संभवतः केजरीवाल एक ऐसे निर्लज्ज और निकृष्ट व्यक्ति हैं जिनके लिये यह आदेश दिया गया हो कि आप अपने पद और शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकते? फिर भी निर्लज्ज बनकर जेल में रहकर भी मुख्यमंत्री पद नहीं छोड़ रहे कि एक बार चाबी गयी तो फिर दुबारा कुछ नहीं बचेगा।

अरविंद केजरीवाल का यह चाहना की उसकी कुर्सी पर उसकी पत्नी ही बैठे तो इसमें कुछ बुड़ा नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि भाजपा को छोड़ दें तो सभी राजनीतिक दलों की यही परंपरा है। यदि सुनीता केजरीवाल मुख्यमंत्री बनती है तो केजरीवाल के हाथ में चाबी रहेगी। लेकिन यदि सुनीता केजरीवाल मुख्यमंत्री नहीं बनती है तो चाबी हाथ से निकल जायेगी और महीने-दो-महीने बाद ही देश केजरीवाल को भूल जायेगा, पार्टी से भी बाहर निकाल दिये जायेंगे केस भले चलता रहे।

मुख्यमंत्री पद सुनीता केजरीवाल के अतिरिक्त किसी अन्य को दिया गया तो अरविन्द केजरीवाल के राजनीतिक जीवन का अंत हो जायेगा और इसीलिये केजरीवाल जेल जाने के बाद भी मुख्यमंत्री पद से चिपके हुये हैं, चाबी को अपने पास रखने का प्रयास कर रहे हैं।

वहीं जब से केजरीवाल के जेल जाने की संभावना बनने लगी पार्टी के अन्य नेताओं की दृष्टि भी मुख्यमंत्री पद पर जा टिकी जिसमें सबसे आगे आतिशी निकल गयी। आतिशी की मुख्यमंत्री पद पर दृष्टि है और ऐसी संभावना है कि शीघ्र ही केजरीवाल को चाबी किसी न किसी को देना होगा। पार्टी की चाबी संजय सिंह लेंगे और मुख्यमंत्री पद आतिशी लेगी यही खेल चलता दिख रहा है।

यदि आतिशी मुख्यमंत्री बनना चाहती है तो इसमें भी कुछ गलत नहीं कहा जा सकता और संजय सिंह यदि पार्टी की चाबी अपने हाथ में लेना चाहते हैं तो इसमें भी कुछ गलत नहीं कहा जा सकता। वैसे भी पार्टी से सहयोगियों को लात मारकर बाहर निकालने का प्रशिक्षण केजरीवाल ने ही इन लोगों को भी दिया है।

ऐसा भी संभव है कि केजरीवाल से सत्ता और पार्टी की चाबी छीनने के लिये ही जल संकट को और बड़ा किया गया हो। सत्याग्रह पर बैठना संभवतः अंतिम पड़ाव हो जैसे ही चाबी केजरीवाल के हाथ से छूटेगी ये ले लेंगे।

सौरभ भारद्वाज केजरीवाल के साथ हैं और चाबी को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। सौरभ भारद्वाज भी जानते हैं कि चाबी केजरीवाल के हाथ से छूटेगी ही लेकिन वो चाबी केजरीवाल स्वयं सौरभ भारद्वाज को सौंपे इसलिये आतिशी को मात देने के लिये केजरीवाल को बाहर निकालने का खेल रच रहे थे जिसमें असफल हो गये, केजरीवाल बाहर आते-आते भी नहीं आ पाये।

3 – नाले का पानी पिलाने की तैयारी

तीसरा संकेत जो निकल कर सामने आ रहा है वह बहुत ही चिंताजनक है। और विशेषकर उनके लिये जो मुफ्तखोरी की इच्छा रखते हैं क्योंकि पैसे वाले तो खरीद कर पानी पी रहे हैं और खरीद कर पी लेंगे किन्तु मुफ्तखोरी की जिन्हें लत लगी हुयी है वो कैसे खरीदेंगे। पैसे वाले दिल्ली छोड़कर भी दूसरी जगह चले जायेंगे लेकिन मुफ्तखोरी की लत जिन्हें दस वर्षों से लग गयी है वो कहां जायेंगे ?

सत्याग्रह पर बैठकर आतिशी लोगों को यह संदेश देने का प्रयास कर रही है कि उसके पास कोई रास्ता ही नहीं है। न तो पैसे हैं और न ही भीख मांगना आता है। कोई सरकार अपने राज्य की जनता को मुफ्तखोर बना सकती है किन्तु कोई सरकार मुफ्तखोर नहीं बन सकती। आतिशी दिल्ली की जनता को ये समझाने का प्रयास कर रही है कि हमें न तो भीख मांगना आता है और गुंडागर्दी चल नहीं रही है।

अबकी बार तो कुछ दिन अब शेष बचे हैं, वर्षा होगी और जल संकट का निवारण हो जायेगा लेकिन फिर अगले वर्ष भी तो जल संकट आयेगा ही आयेगा और तब तक संभवतः मुख्यमंत्री पद भी आतिशी के पास होगा। आतिशी धीरे से जनता को समझाने का प्रयास कर रही है कि जब मैं मुख्यमंत्री बनूंगी तब भी कोई और रास्ता नहीं होगा एक रास्ते को छोड़कर और वो अंतिम रास्ता है नाले का पानी पिलाना। लेकिन यदि यही आखिरी रास्ता है तो मात्र AAP ही उत्तरदायी नहीं होगी मुफ्तखोर जनता भी समान उत्तरदायी होगी।

आखिरी रास्ता : आखिरी रास्ता यही है कि नाले का पानी साफ करके दिया जाय, क्योंकि न ही पैसे हैं, न ही भीख (सहयोग) मांगना आता है, न ही गुंडागर्दी चल पायी। करें तो करें क्या ? दिल्ली को नाले का पानी पिलाना है इसलिये भूमिका बांधी जा रही है। लेकिन आखिरी रास्ते के रूप में नाले का पानी पिलाने की सोच रखने वाली AAP पार्टी को यह नहीं ज्ञात है कि उससे मात्र दिल्ली का सिर नीचा नहीं होगा दिल्ली देश की राजधानी भी है और देश का सिर भी नीचा होगा।

चूंकि आखिरी रास्ते से दिल्ली का सिर ही नहीं झुकेगा, देश का सिर भी झुकेगा इसलिये ये संभावना नहीं बनती कि दिल्ली सरकार को ऐसा करने दिया जायेगा। यदि ऐसी स्थिति बनती भी है और दिल्ली सरकार दिल्ली को नाले का पानी पिलाने की चेष्टा करती है तो निश्चित रूप से केंद्र और अन्य राज्य आगे बढ़कर सहयोग करेंगे लेकिन सहयोग प्राप्त कर सके इतना तो दिल्ली सरकार को सीखना ही चाहिये।

कटुसत्य : मुफ्तखोरी की सजा है ये कोई चर्चा करना ही नहीं चाहता क्योंकि यदि लोगों को मुफ्तखोरी की सजा समझ आ गयी तो कई दुकानें बंद हो जायेंगी।

निष्कर्ष : कोई भी अनुमान शत-प्रतिशत सही हो ऐसा तो नहीं होता किन्तु अनुमान से कभी कोई पीछे नहीं रहता। दिल्ली जल संकट प्रकरण में कई गुप्त रहस्य हो सकते हैं। वास्तविकता भी है किन्तु हो सकता है कि जितना कम समस्या हो सकती थी उतना कम करने का भी प्रयास नहीं किया गया। सरकार विफल हो चुकी है इसमें तो कोई संशय ही नहीं है, मुख्यमंत्री पद की लड़ाई चल रही है यह भी संशयरहित है, नाले का जल आखिरी रास्ता बचा है तो आगे और क्या सोचा जा सकता है।

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