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भारत की दिशा … अब कहां जायेगा भारत ….

भारत की दिशा

जब भाजपा के पास पूर्ण बहुमत नहीं है, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पास पूर्ण बहुमत है और सरकार निश्चित रूप से NDA की सरकार बन रही है किन्तु मोदी को वो शक्ति प्राप्त नहीं हो पाई जो बड़े निर्णय लेने के लिये आवश्यक थी। अब यह विचार करना आवश्यक है कि देश जिस विकास पथ पर आगे बढ़ने के साथ सांस्कृतिक जागरण का कार्य करती रही क्या आगे कर पायेगी ?

भारत की दिशा … अब कहां जायेगा भारत …

वैश्विक तंत्र जो कि निर्बल सरकार चाहती थी उसमें सफल हो गई और जिस ठनक के साथ भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दो बार वैश्विक राजनीति को प्रभावित करते रहे, आंतरिक राजनीति में बड़े-बड़े निर्णय करते रहे, क्या अब जबकि सबल नहीं रहे कर सकते हैं। स्पष्ट रूप से कोई भी कह सकता है कि नहीं अब ऐसा संभव नहीं है। जब भाजपा को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं है तो मोदी के पास भी पूर्ण निर्णायक शक्ति नहीं है।

लेकिन फिर प्रश्न ये भी है कि मोदी है तो मुमकिन है का क्या होगा? अब ये मोदी की वास्तविक परीक्षा की घड़ी है जब उन्हें सिद्ध करने का अवसर मिला है कि मोदी है तो मुमकिन है। अपार बहुत रहने पर तो कोई भी मुमकिन कर लेगा। मोदी तब मुमकिन करे जब अपार बहुमत नहीं मिली है।

जोड़-तोड़ की राजनीति

इसे किसी प्रकार से नकारा नहीं जा सकता कि भले ही अभी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन 400 नहीं 300 पर ही अटक गयी है किन्तु जोड़-तोड़ की राजनीति से 350 पर पहुंच जाये तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। और इसमें ऐसा भी हो सकता है कि भाजपा भी पूर्ण बहुमत प्राप्त कर ले वो भी कार्यकाल पूरा करने से पहले। मोदी है तो मुमकिन है ये भी तो प्रभाव दिखायेगा।

वैश्विक प्रभाव और भ्रष्टाचार पर प्रहार

जब पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं है तो कई विषयों पर विपक्ष के साथ की भी आवश्यकता होगी। यदि विपक्ष का सहयोग चाहिये तो भ्रष्टाचार पर प्रहार करना संभव नहीं होगा मात्र भ्रष्टाचार वाले नस को दबाकर रखा जा सकता है। अथवा यदि भ्रष्टाचार पर प्रहार किया जाता है तो विपक्ष का सहयोग प्राप्त नहीं होगा और विपक्ष का सहयोग न मिले तो वैश्विक राजनीति को भारत ने एक दशक तक जिस प्रकार प्रभावित किया वैसा करना संभव नहीं।

विकास

विकास के विषय में बात करें तो चाहे आर्थिक विकास हो या निर्माण हो, चूंकि मंत्रालय का विभाजन ही इस आधार पर करना संभव नहीं होगा क्योंकि यदि नितीश कुमार की बात करें तो इंडी गठबंधन की ओर से उपप्रधानमंत्री पद का प्रस्ताव दिया गया है ऐसी सूचना है। ये प्रस्ताव दिया गया है या नहीं प्रश्न ये नहीं है प्रश्न ये है कि नीतीश कुमार ने परोक्ष रूप से अपनी मांग भाजपा को बता दिया। इसी तरह और भी कई महत्वपूर्ण मंत्रालय हैं जो भाजपा को समझौते की शर्त्त में छोड़नी होगी।

ये अवश्य है कि प्रधानमंत्री पद के लिये कोई दूसरा है ही नहीं अकेले मोदी ही हैं । वहीं TDP की भूमिका भी अब महत्वपूर्ण हो गई है। लेकिन किसी की भूमिका बढ़ने का तात्पर्य मात्र इतना भर है कि भाजपा को अकेले बहुमत नहीं मिला। उतनी संख्या बल भी नहीं है कि यदि निर्दलीय सांसद को भाजपा में सम्मिलित कर भी लिया जाय तो भी बहुमत के आंकड़े से पीछे ही रह जाती है।

जब मंत्रालय का निर्धारण राजनीतिक स्थिति के आधार पर होगी तो यह भी सुनिश्चित है कि विकास कार्य प्रभावित होगा। मोदी सरकार भी मात्र काम करने पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पायेगी, चुनाव में बढत को ध्यान रखकर भी काम करेगी कि अगले चुनाव में पूर्ण बहुमत मिले । जब चुनाव में बहुमत पाने के आधार कार्य किया जायेगा तो निश्चित है कि विकास प्रभावित होगा। यदि काम से बहुमत न मिले राजनीति से मिले तो भाजपा भी काम की जगह राजनीति को ही प्रार्थमिकता देगी ।

मोदी ने काम के आधार पर 400 पार की बात किया था जो सीट में परिवर्तित नहीं हो पाया। इसका प्रमाण अयोध्या है, अमेठी है।

जहां तक देश के तीसरी बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने की बात है उसमें सफलता प्राप्त तो कर सकती है किन्तु यदि समय सीमा बढे तो आश्चर्य की बात नहीं होगी।

सांस्कृतिक विकास

सांस्कृतिक विकास की दिशा में भाजपा जिस गति से आगे बढ रही थी अब वो निश्चित रूप से अवरोधित होगा। यद्यपि उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार सबल है जिससे ज्ञानवापी, मथुरा कृष्ण मंदिर आदि कार्यों में अधिक कुप्रभाव नहीं पड़ेगा किन्तु अपेक्षाकृत विरोध बढ़ जायेगी क्योंकि विपक्ष सबल होने लगा है।

लेकिन सांस्कृतिक विकास के लिये जो अनिवार्य आवश्यकता एक देश एक विधान की है अब उस UCC के प्रभाव में आने की संभावना कम हो गयी है। इसके साथ ही जब तक भाजपा स्वयं में पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं कर लेती तब तक सांस्कृतिक उत्थान सम्बन्धी कार्यों को करने में विफलता का सामना कर सकती है।

सर्वाधिक हानि

दुर्बल सरकार बनने के कारण न्यायपालिका पुनः कार्यपालिका व विधायिका की शक्तियां अपहृत करने का प्रयास कर सकती है। यदि सबल सरकार और विधायिका होती तो न्यायपालिका द्वारा अपहृत शक्तियों का पुनः अधिग्रहण करती किन्तु अतिउत्साह के कारण पिछले कार्यकाल में नहीं कर पायी इसलिये आगे न्यायपालिका द्वारा अत्यधिक नियंत्रित और प्रभावित होते देखी जाय तो आश्चर्य की बात नहीं होगी।

ऐसा अनिवार्य नहीं है ये न्यायपालिका की इच्छा पर निर्भर करेगा कि वह कार्यपालिका की कितनी शक्तियां हरण करना चाहती है। लेकिन पुराने गतिविधियों के आधार पर यही संभावना बन रही है कि कार्यपालिका की शक्तियां न्यायपालिका को और प्रवाहित होते देखा जा सकता है।

इसके साथ ही कई अन्य गारंटी जो कि मोदी दे रहे थे उन सभी गारंटियों को पूरा करना सरल कार्य नहीं होगा।

एक स्थिति में मोदी पूर्ववत कार्य करते रह सकते हैं यदि सहयोगी दलों का स्वार्थ राष्ट्रहित पर हावी न हो। यदि गठबंधन के सहयोगी दलों ने राष्ट्रहित को ऊपर रखा तो मोदी निश्चित रूप से पहले की तरह ही चौंकाने वाले निर्णय लेते रह सकते हैं। अब देखना ये है कि भाजपा अपने सहयोगियों को इस विषय में सहमत कर पाती है या नहीं।

निष्कर्ष : कुल मिलाकर यही स्पष्ट होता है कि भारत के विकास की जो गति थी वह गति निःसंदेह प्रभावित होगी और सत्ता की नीति भी परिवर्तित होगी। यदि भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलता तो अन्य सहयोगी दल किसी विशेष नीति के लिये बाध्य नहीं कर पाते किन्तु अब जो भाजपा सरकार बनेगी वह गठबंधन की नीति से काम करने के लिये बनेगी।

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