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क्या 5 लाख देने की बात करे तो मुस्लिम लीग को भी वोट दे देंगे

क्या 5 लाख देने की बात करे तो मुस्लिम लीग को भी वोट दे देंगे

एक बड़ा विषय विचारणीय है कि क्या रूपये के बदले ही वोट मिलेगा, और यदि रूपये के बदले मतदान किया जायेगा तो क्या वह स्वस्थ लोकतंत्र होगा ? कांग्रेस को जो 99 सीटें मिली है उसके पीछे एक लाख रूपये देने की बात करने से मिली है और इसका प्रमाण है कि लोग कांग्रेस कार्यालयों पर जाकर एक लाख रूपये कि मांग करने लगे हैं। अगला प्रश्न और गंभीर है कि “क्या 5 लाख देने की बात करे तो मुस्लिम लीग को भी वोट दे देंगे ?”

क्या 5 लाख देने की बात करे तो मुस्लिम लीग को भी वोट दे देंगे

एक लाख रूपये महिलाओं को दिया जायेगा ये कांग्रेस के घोषणा पत्र का हिस्सा था। वर्त्तमान नियमानुसार यहां कोई त्रुटि नहीं है, लेकिन त्रुटि वहां हुयी जहां घर-घर जाकर कहा गया कि कांग्रेस को वोट दो और एक लाख पाओ, ये नहीं कहा गया कि हमारी सरकार बनेगी तभी मिलेगा, भले ही चुनावी सभाओं में नेताओं द्वारा ऐसा बोला गया हो। चुनाव आयोग से भाजपा ने इस विषय की 16/04/2024 को शिकायत की गयी थी लेकिन चुनाव आयोग इस पर सोया रहा।

होना यह चाहिये कि कोई भी पार्टी हो किसी प्रकार से 1 रूपया, राशन कुछ भी देने की बात नहीं कर सकती। सरकार बनने के बाद यदि बिना भेद-भाव के कुछ देना भी हो तो उसका विशेष प्रावधान होना चाहिये कि क्या-क्या दिया जा सकता है कितना दिया जा सकता है और किसे दिया जा सकता है ? ये नियम बनाना तो अब उसी के हाथ में है जिस भाजपा की सरकार बनने जा रही है।

चुनाव में कोई भी पार्टी जनता को कुछ भी देने की बात नहीं कर सकती, अन्यथा तो आगामी चुनावों में ऐसा भी हो सकता है कि मुस्लिम लीग किसी नये नाम से नयी पार्टी बनाकर 5 लाख 10 लाख देने की बात भी कर सकती है और चुनाव जीत सकती है। यदि ऐसा ही हुआ तो वह चुनाव कैसे निष्पक्ष माना जायेगा ? कैसे कहा जायेगा कि स्वस्थ लोकतंत्र है ? चुनाव आयोग को सोचना चाहिये कि क्या 1 लाख देने की बात जो कांग्रेस द्वारा कहा गया ये स्वस्थ लोकतंत्र की दिशा में आगे बढ़ना था ?

जनता किसे वोट देगी

ये प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है कि जनता किसे वोट देगी ? यदि प्रलोभन से ही मतदान निर्धारित होगा तो जनता उसे ही वोट देगी जो सर्वाधिक प्रत्यक्ष लाभ-सुविधा देने की बात करेगा ?

ये अलग बात है कि भाजपा ने देशहित में कांग्रेस के 1 लाख देने के बदले 2 लाख देने की बात नहीं की अन्यथा यदि इसे तुरंत नहीं रोका गया तो अगले चुनावों में सभी दल अपनी-अपनी बोली लगायेंगे और ये बोली वोट की होगी, ये बोली लोकतंत्र की होगी। भाजपा ने कांग्रेस के 1 लाख के बदले 2 लाख देने की बात नहीं की इससे तो लोकतंत्र की नीलामी बच गई लेकिन क्या चुनाव आयोग लोकतंत्र को नीलाम करना चाहता था ?

यह प्रश्न तो और भी अधिक महत्वपूर्ण है कि यदि इसे तत्काल नहीं रोका गया और इस पर कठोर दण्डात्मक प्रक्रिया नहीं अपनाया गया तो आगे क्या होगा ? यदि प्रलोभन से मतदान किया जायेगा, लोकतंत्र को नीलाम किया जायेगा तो उसका परिणाम क्या होगा ?

यदि लोकतंत्र को नीलाम किया जायेगा तो देश की सत्ता में देश के प्रतिनिधि नहीं होंगे, देश की सत्ता यदि चुनाव आयोग नीलाम करने का प्रयास करेगा और न्यायपालिका भी ऑंखें मूंद लेगी तो बोली लगाने के लिये भारतीय दलों को ही विदेशों से धन प्रदान किया जायेगा और ये धन किसी विशेष विचारधारा वाले अपनी विचारधारा के दलों को प्रदान करेंगे। राष्ट्रहित की बात करने वालों को विदेशी न तो धन देंगे न ही वो ग्रहण करेंगे क्योंकि राष्ट्रहित के लिये यह घातक होगा।

जिस विचारधारा को राष्ट्रहित से कोई लेना-देना नहीं है उस पर चलने वाली पार्टियों को जितनी भी बोली लगानी हो लगा पायेंगे क्योंकि बस एक बार की बात होगी और एक बार के लिये 5 लाख ही नहीं 10 लाख भी दे दिया जाय तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। ये धन विदेशी उपलब्ध भी करा देंगे वो इसलिये करायेंगे कि उसके बाद सत्ता पर अधिकार उनका होगा। तो क्या देश परतंत्र नहीं होगा ? आज भी विदेशी गैंग के साढ़े आठ हजार करोड़ खर्च करने की बात की जा रही है। ये किसलिये और किसे दिये गये होंगे ? ये जिसे मिले होंगे क्या वो भारत का हित चाहता होगा ?

जाँच और नियंत्रण कौन करे

ये एक गंभीर प्रकरण है और संसद से जुड़ा है। इस प्रकरण में किसी भी संस्था पर विश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि सबके काम से जगजाहिर है कि वो संस्थायें भी अधिकतर उस विचारधारा के पक्ष में ही करते हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो चुनाव आयोग इसे पहले ही नियंत्रित कर लेता, चुनाव आयोग सोती रही तो न्यायपालिका सक्रिय हो जाती और नियंत्रित करती। न्यायपालिका स्वयं को संविधान का संरक्षक उद्घोषित करती है न तो जब लोकतंत्र की नीलामी हो रही थी उस समय सोती क्यों रही ?

चुनाव आयोग और न्यायपालिका दोनों के प्रति यह प्रश्न उठता है कि क्या वो भी इसमें सहयोग करने के लिये ही घोड़े बेचकर चैन की नींद ले रही थी ? यदि यह सच है तो ये कैसे इस प्रकरण का समाधान कर सकेंगी ? यदि चुनाव आयोग का कार्य था तो चुनाव आयोग ने नहीं किया अर्थात चुनाव आयोग से इस प्रकरण में कोई अपेक्षा शेष नहीं रह जाती है। इस प्रकार यदि न्यायपालिका को सक्रिय होना चाहिये था तो न्यायपालिका ने भी कुछ नहीं किया अर्थात न्यायपालिका से भी कोई अपेक्षा शेष नहीं रही।

लोकसभा चुनाव 2024 के इतिहास में निर्वाचन आयोग और न्यायपालिका दोनों के ऊपर दाग लगा है और वो दाग है कांग्रेस लोकतंत्र को नीलाम कर रही थी निर्वाचन आयोग पक्षपात कर रही थी और न्यायपालिका घोड़े बेचकर चैन की नींद ले रही थी। लेकिन जब जनता यह बात बोलेगी तो यही संस्थायें उनके लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन करते हुये उनके विरुद्ध किसी भी सीमा को पार करके कार्रवाही कर सकती है। जब कांग्रेस नेता एक लाख रूपये देने की बात करके वोट खरीद रही थी तब तो ये सोये रही लेकिन जब इस पर चर्चा की जायेगी, ये पूछा जायेगा कि आप सोते क्यों रहे तो विपरीत प्रतिक्रिया देगी।

यह पूर्ण रूप से स्पष्ट है कि संसद का विषय है और अन्य संस्थायें निष्पक्ष होकर न तो जांच कर सकती है न ही उचित कार्रवाही करेगी। अपितु विपरीत जाकर इसे मान्यता भी दे दे कि ऐसा किया जा सकता है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। ऐसी स्थिति में विधायिका अर्थात संसद जो कि संविधानिक रूप से सर्वोच्च है उसे स्वयं ही सक्रिय होना चाहिये, स्वतः संज्ञान लेना चाहिये और स्वयं ही जाँच करके न्यायिक शक्तियों का प्रयोग करते हुये इसके ऊपर दंडात्मक कार्रवाही भी करना चाहिये।

संसद को इस विषय में आगे बढ़ने से पहले एक ठोस रणनीति बनाकर और उसके दुष्परिणामों, आंदोलनों, उपद्रवों आदि का भी आकलन करते हुये, निपटने के तरीकों का निर्धारण करके कार्रवाही करनी चाहिये। यह विषय राष्ट्रहित का है अतः इसमें उस नीति की अपेक्षा नहीं है कि “मंडी में माल भी था, बिकने के लिये तैयार भी था, हमारे पास पैसे भी थे, मगर हमने खरीदा नहीं”, राष्ट्रहित के लिये इसके विपरीत भी जाना परे तो कुछ भी गलत नहीं होगा। राष्ट्रहित के लिये, लोकतंत्र को नीलाम होने से बचाने के लिये जो भी करना पड़े किया जाना चाहिये।

भाजपा की रणनीति

संविधान और कानून का पालन कराने के विषय में भले ही दोनों बार मोदी सरकार असफल रही हो और एक-दो मामलों में पीछे भी हटी हो, किन्तु किसी कार्य को करने की रणनीति बनाने की भाजपा महारथी रही है, जिसका परिणाम है कि धारा 370 हट गया और विपक्ष द्वारा उसके पुनर्स्थापन का न्यायिक प्रयास भी विफल हो गया, राममंदिर निर्माण हुआ आदि। इस विषय में भी ठोस रणनीति की आवश्यकता होगी और भाजपा नहीं बना सकती ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता और यदि भाजपा करना चाहे तो कर भी सकती है।

आवश्यकता यदि है तो इस निश्चय पर पहुंचने का कि लोकतंत्र की नीलामी न तो चुनाव आयोग रोकेगी, न ही न्यायपालिका आँखें खोलेगी, यह कार्य विधायिका को ही करना होगा। दूसरा पक्ष ये है कि जब इस दिशा में विधायिका सक्रिय होगी तो अराजक तत्व भी उत्पात करने लगेंगे और उनके उत्पात के भय से निष्क्रिय रहना उचित नहीं होगा अपितु उनको उत्पात करने से पहले कैसे निष्क्रिय किया जा सकता है ऐसी रणनीति बनाना उचित होगा।

यहाँ पर एक विषय यह भी उत्पन्न होता है कि दो-तिहाई बहुमत का क्या ? क्योंकि यदि दो-तिहाई बहुमत हो तो कुछ भी किया जा सकता है। इसके ऊपर भाजपा को कोई सामान्य लोग कुछ कहे तो अशोभनीय होगा भाजपा स्वयं साम-दाम-दण्ड-भेद सभी नीति जानती है और कब-कहां-कैसे-किसका प्रयोग करना है यह भी जानती है।

विकसित भारत का क्या आचार बनाओगे

यहां जो सबसे बड़ी अड़चन है वो ये है कि देश विकास की पटरी पर द्रुतगति से चल रहा है और उसमें विघ्न उत्पन्न होगा, विकास गति धीमी होगी इसे नकारा नहीं जा सकता। लेकिन प्रश्न यह है कि विकसित भारत किसके लिये बनाया जायेगा ? यदि सत्ता को विदेशी गैंग खरीद ले तो उस विकसित भारत का क्या आचार बनेगा ? तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने से भारत को क्या लाभ होगा जब भारत की सत्ता ही विदेशी शक्तियों के अधीन हो जाये ? ये कथन उसी सन्दर्भ में है जो विदेशी शक्तियों द्वारा सत्ता परिवर्तन के लिये साढ़े आठ हजार करोड़ खर्च करने का प्रकरण है।

यदि भारत अभी नहीं जगा तो अगले चुनाव में वो 20 लाख करोड़ ही नहीं 40 लाख करोड़ खर्च करके भी सत्ता खरीदने का प्रयास कर सकती है। लोकसभा चुनाव 2024 में तो मात्र प्रयोग था। यदि सत्ता ही विदेशी शक्तियों के अधीन हो जायेगी तो फिर जिस विकसित भारत का निर्माण किया जायेगा उसे वही विदेशी शक्तियां लुटेगी भी, इसे नकारा नहीं जा सकता। यदि आप विकसित भारत बनाना चाहते हो तो उसके साथ ही यह भी अनिवार्य है कि उसको संरक्षित करने का भी प्रयास हो।

राहुल गांधी यूं ही नहीं शेर बन रहे थे, ये अलग बात है कि मोदी सवा शेर निकले।

जितनी आवश्यकता विकसित भारत बनाने की है उससे अधिक आवश्यकता उसके संरक्षण की भी है। वैसे मोदी ने संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद जो सम्बोधन किया था उसमें 10 वर्षों की बात करके यह भी स्पष्ट कर दिया था कि संरक्षण की भी रणनीति है और लोकतंत्र को नीलाम करने वालों के विरुद्ध भी सक्रिय होंगे, नियंत्रित करेंगे। लोकतंत्र की रक्षा के लिये सत्ता को शक्ति का प्रयोग करना चाहिये न कि लोकतंत्र की रक्षा के लिये लोकतंत्र को नीलाम हो जाने देना चाहिये।

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