पूरा NDA तात्पर्य मुख्य रूप से नितीश कुमार और चंद्र बाबू नायडू को लेकर है। नितीश कुमार उपप्रधानमंत्री बनने की इच्छा में हो सकता है राष्ट्रप्रथम की नीति न अपनायें और अपनी पुरानी पद प्रथम की नीति पर ही चलें। इंडि गठबंधन की तरफ से प्रलोभन तो प्रधानमंत्री पद का भी दिया जा रहा है। लेकिन इंडि गठबंधन की सरकार बन ही नहीं सकती ये भी एक तथ्य है।
राष्ट्रप्रथम की नीति मात्र भाजपा की नहीं NDA को भी स्वीकारने की आवश्यकता
कल नितीश कुमार के इंडि गठबंधन वाली सरकार में उपप्रधानमंत्री बनने की चर्चा की गयी। इस चर्चा का उद्देश्य इंडि गठबंधन से ऐसा कोई प्रस्ताव मिलना नहीं अपितु NDA की आगामी सरकार में उपप्रधानमंत्री पद का दावा करना था। उसके बाद इंडि गठबंधन से नितीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने का प्रलोभन भी सामने आया। और आज जब NDA की बैठक में भाग लेने के लिये नितीश कुमार दिल्ली जा रहे हैं तो तेजस्वी यादव के साथ एक ही फ्लाइट से जाने की सूचना है। मानो NDA और भाजपा को अपने पलटूराम वाली छवि दिखा रहे हैं।
क्या इंडि गठबंधन की सरकार बन सकती है
सर्वप्रथम तो यह स्पष्ट होना आवश्यक है कि क्या इंडि गठबंधन की सरकार बन सकती है ? इसका स्पष्ट उत्तर है नहीं, किसी भी स्थिति में इंडि गठबंधन की सरकार बन ही नहीं सकती। कारण ये है कि भाजपा 240 सीटों के साथ सबसे बड़ी राजनीतिक दल है और सबसे बड़ी दावेदार है। राष्ट्रपति के समक्ष इंडि गठबंधन प्रस्ताव भी दे तो भी राष्ट्रपति भाजपा को ही सरकार गठन का प्रस्ताव देंगी और प्रधानमंत्री पद की सपथ मोदी ही लेंगे।
बहुमत सिद्ध करने के समय हो सकता है कि जदयू अथवा TDP कोई एक इंडि गठबंधन में सम्मिलित हो जायें और NDA को समर्थन न दें। वैसी स्थिति में भी स्पष्ट बहुमत NDA के पास होगा और सरकार बहुमत सिद्ध कर लेगी।
दूसरी स्थिति यह भी हो सकती है कि जदयू और TDP दोनों ही NDA छोड़ दें और समर्थन न दें। उस स्थिति में बहुमत तो सिद्ध नहीं हो सकता लेकिन ऐसा ही होगा इसकी गारंटी नहीं है यदि जदयू और TDP दोनों ही NDA का साथ न दें तो भी NDA इस प्रकार के राजनीति की महारथी है और इंडि गठबंधन से भी किसी न किसी दल को अपने पक्ष में कर ही लेगी और बहुमत सिद्ध हो जायेगा।
जोड़-तोड़ के खेल की महारथी भाजपा हाथ पर हाथ रखे बैठी रहेगी ये कैसे माना जा सकता है। और भाजपा के राजनीतिक खेल में टूटी हुयी शिवसेना एक बनकर भाजपा के साथ आ सकती है, NCP (शरद पवार गुट) भी सरकार में सम्मिलित हो या बाहर से समर्थन दे सकती है, जदयू भी शिवसेना और NCP की तरह टूट सकती है कुछ भी हो सकता है। और जब कुछ भी हो सकता है तो जोड़-तोड़ की राजनीति में कांग्रेस कहीं से भाजपा को मात नहीं दे सकती है अपितु भाजपा ही “शह और मात” का खेल खेल रही है।
तीसरे कार्यकाल में देश बड़े फैसलों का एक नया अध्याय लिखेगा…
— BJP (@BJP4India) June 4, 2024
– पीएम श्री @narendramodi
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नितीश कुमार यदि फिर से पलटूराम बने तो
नितीश कुमार यदि पद प्रथम की नीति पर चलते हुये फिर से पलटूराम बनती है तो भाजपा के “शह और मात” वाले खेल में उनकी पार्टी भी टूट सकती है, बिहार की सत्ता भी छिन सकती है। नितीश कुमार को इंडि गठबंधन के प्रलोभन में फंसने से पहले पप्पू यादव का वो वक्तव्य ध्यान से समझना होगा जिसमें कांग्रेस समर्थन से जीतने के बाद भी उन्होंने कहा है कि सरकार के साथ रहेंगे।
नितीश कुमार को इस विषय पर गहन मंथन करने की भी आवश्यकता है कि प्रधानमंत्री या उपप्रधानमंत्री बनने के प्रलोभन में फंसने के दुष्परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं ! 12 सीटों वाले दल का नेता प्रधानमंत्री या उपप्रधानमंत्री बन सकता है क्या इस पर विचार करना चाहिये। एक बार को मान लिया जाय कि 12 सीटों वाले दल का नेता प्रधानमंत्री बन भी जाये तो उसकी स्थिति क्या होगी ये भी सोचने-समझने की बात है। यदि कुछ दिनों के लिये प्रधानमंत्री पद पर बैठ भी जाये तो मात्र पद का नाम प्रधानमंत्री होगा अधिकार चपरासी वाला भी होगा या नहीं यह समझना कठिन है।
क्या मोदी उस सरकार के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे जो गिरने वाली हो
लेकिन ये स्थिति भी तब की होगी जब “शह और मात” के खेल में भाजपा विफल हो जाये और मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद निर्धारित काल में बहुमत सिद्ध नहीं कर पायें। प्रधानमंत्री पद की शपथ मोदी ही लेंगे यह सुनिश्चित है, बहुमत सिद्ध करने का अवसर भी मिलेगा और जिस दिन बहुमत सिद्ध करना होगा उस दिन की तैयारी किये बिना गिरने वाली सरकार के प्रधानमंत्री पद का शपथ मोदी लेंगे यह भ्रम भी नितीश कुमार को नहीं रखना चाहिये।
मोदी यदि प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते हैं तो शपथग्रहण से पूर्व ही यह सुनिश्चित हो जायेगा कि सरकार 5 वर्षों तक चलेगी और भले ही पहले वाली खनक न रहे लेकिन भाजपा उस दैन्य स्थिति में भी नहीं है कि सरकार कार्यकाल भी पूरा न कर सके। अभी जब यह आलेख लिखा जा रहा है तभी ऐसे समाचार भी आने लगे हैं कि उद्धव ठाकरे इंडि गठबंधन की बैठक में सम्मिलित नहीं होंगे और ये अटकलें भी लगायी जाने लगी है कि क्या उद्धव पुनर्वापसी करेंगे ?
नितीश को क्या करना चाहिये
नितीश कुमार अब अस्त होने वाले हैं और इस समय एक सम्मानजनक स्थिति प्राप्त करने का प्रयास करें। इसमें बिहार से विदाई भी न हो और केंद्र में भी सीट के अनुसार भागीदारी मिल जाये नितीश कुमार को यही सुनिश्चित करना चाहिये। उपप्रधानमंत्री बनना प्रधानमंत्री पद का सपना देखना भी नितीश कुमार के हास्यास्पद अंत का कारण बन सकता है भारतीय राजनीति के इतिहास में एक घृणित पात्र के रूप में दिखने का कारण बन सकता है।
जदयू को जो सीटें मिली है उसके अनुसार वो न तो इंडि गठबंधन के प्रधानमंत्री बन सकते हैं और न ही उपप्रधानमंत्री, लेकिन यदि प्रलोभन में फंसे तो एक दुःखद राजनीतिक अंत को अवश्य प्राप्त कर सकते हैं। अपने राजनीतिक जीवन के अंतिमकाल में नितीश कुमार को चाहिये कि भाजपा यदि सीट के अनुसार भागीदारी देती है तो उसे स्वीकार करते हुये बिहार की सत्ता भी बचाये रखें।
राजनीतिक अस्तकाल में नितीश कुमार को अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता दिखाने की आवश्यकता है न की पदलोलुपता दिखाते हुये पलटूराम बनने की अदूरदर्शिता।
निष्कर्ष : कुल मिलाकर निष्कर्ष में यही कहा जा सकता है कि सत्ता हर परिस्थिति में भाजपा के हाथ ही रहने वाली है भले ही नितीश कुमार फिर से पलटूराम बनकर NDA से अलग होकर अपना दुःखद राजनीतिक अंत क्यों न कर लें। दुनियां जानती है कि भाजपा जोर-तोड़ की राजनीति की महारथी है और कांग्रेस यदि महारथी बन भी जाये तो तब बनेगी जब भाजपा महारथी पद छोड़कर अतिरथी बन जाये।
राजनीतिक विश्लेषण करने वाले महारथी ही बोल सकते हैं अतिरथी के बारे में जानते भी नहीं होंगे। भाजपा को अब अतिरथी है यह सिद्ध करने के लिये ही बहुमत से नीचे जनता ने रखा है। मोदी वो कच्चा खिलाड़ी नहीं है जो एक गिरने वाली सरकार के प्रधानमंत्री पद की शपथ ले। मोदी यदि प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते हैं तो इसका तात्पर्य ही होगा कि सरकार 5 वर्षों का कार्यकाल पूरा करेगी।
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