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विपक्ष का सनातन द्रोह और आसुरी छाया हुआ उजागर

विपक्ष का सनातन द्रोह

“उघरहिं अंत न होंहि निबाहु। कालनेमि जिमि रावण राहू” गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस की यह पंक्ति वर्त्तमान में चरितार्थ होती दिख रही है। एक तरफ जहां प्रधानमंत्री ध्यान लगाने और आध्यात्मिक ऊर्जा के लिये विवेकानंद रॉक मेमोरियल कन्याकुमारी जायेंगे वहीं विपक्षी इस आध्यात्मिक कृत्य का भी विरोध करके यह उजागर कर रहा है कि वह घनघोर सनातन द्रोही है और आसुरी छाया से ग्रस्त है।

विपक्ष का सनातन द्रोह और आसुरी छाया हुआ उजागर

सभी सनातनी सनातन के दो सामान्य नियम जानते हैं; प्रथम यह कि शत्रु के भी धार्मिक-कृत्य में सहयोगी बनना और द्वितीय यह कि आसुरी तत्व ही धार्मिक कृत्यों में विघ्न करते हैं।

शत्रु के भी धार्मिक-कृत्य में सहयोगी बनना : बात जब धार्मिक कृत्य की आती है तो शत्रु के यहां भी उपस्थित होना सहयोगी बनना एक सामान्य नियम है। भगवान राम और रावण शत्रु थे लेकिन बात जब रामेश्वरं स्थापना की थी तो भगवान श्रीराम ने रावण को ही विद्वान होने के कारण आचार्यत्व के लिये आमंत्रित किया था और रावण सम्मिलित होकर अपने आचार्यत्व में रामेश्वरं स्थापन को संपन्न किया।

वर्त्तमान भारत के सामान्य जन भी कोई विशेष पूजा-पाठ होता है तो सभी को आमंत्रित-निमंत्रित किया जाता है भले ही वह शत्रु क्यों न हो। आमंत्रण-निमंत्रण प्राप्त करने के बाद प्राप्तकर्ता भी शत्रुता को छोड़कर धार्मिक कृत्य में सम्मिलित होता है और यथासंभव सहयोग भी करता है।

आसुरी तत्व ही धार्मिक कृत्यों में विघ्न करते हैं : प्राचीन काल से ही एक नियम यह भी रहा है कि आसुरी तत्व सदैव धार्मिक कृत्यों में स्वभावतः विघ्न उत्पन्न करते रहे हैं। विश्वामित्र के यज्ञ में भी आसुरी तत्व बारम्बार विघ्न कर रहे थे जिस कारण विश्वामित्र ने रक्षा हेतु राम और लक्ष्मण को महाराज दशरथ से माँगा था।

प्रधानमंत्री मोदी का कन्याकुमारी जाकर विवेकानन्द रॉक मेमोरियल में ध्यान

प्रधानमंत्री मोदी पिछले लोकसभा चुनाव 2019 के बाद केदारनाथ में भी ध्यान-योग करके नई सरकार बनने से पूर्व आध्यात्मिक ऊर्जा ग्रहण करते रहे हैं। विपक्षियों ने पहले भी विरोध किया था अंतर मात्र इतना है कि इस बार विरोध की सीमा का भी अतिक्रमण कर चुके हैं और यह विपक्ष का सनातन द्रोह व आसुरी छाया होना जगजाहिर हो रहा है।

प्रत्येक चुनाव के बाद प्रधानमंत्री मोदी क्यों आध्यात्मिक कृत्य करते हैं ?

चुनाव लोकतंत्र का महापर्व होता है, जिसमें मतदान की आहुति करके देश की जनता भागीदार बनती है। चुनाव के उपरांत एक विधायिका और सरकार का कार्यकाल समाप्त हो जाता है और अगली विधायिका व सरकार का निर्णय होता है। सनातन का सामान्य नियम है की चाहे किसी कार्य का संपन्न होना हो अथवा किसी नये कार्य का आरम्भ हो दोनों स्थिति में ईश्वर का स्मरण-प्रार्थना आदि किया जाता है। किसी कार्य के संपन्न होने पर ईश्वर की कृपा मानी जाती है और किसी नये कार्य के आरम्भ में ईश्वर से कृपा की अपेक्षा की जाती है।

लोकसभा चुनाव 2024 संपन्न होने वाले लोकतंत्र के महापर्व वाले अवसर पर भी प्रधानमंत्री मोदी पुनः ईश्वर की कृपा का धन्यवाद करने के लिए वो नई विधायिका व सरकार के आरंभ हेतु कृपा प्राप्ति की कामना से ध्यान में स्थित होने, नई ऊर्जा प्राप्त करने के लिये विवेकानंद रॉक मेमोरियल जा रहे हैं। यदि केक काटा जाता, नंगा नाच करने वाली पार्टी का आयोजन किया जाता तो सभी विपक्षी भी नग्ननृत्य करते और यही उनका इतिहास भी रहा है। बात चूँकि सनातनी व्यवहार का है इसलिये सबके पेट में दर्द होने लगा है।

क्या मोदी ने किसी विपक्षी नेता को ध्यान-योग करने से यज्ञ करने से, पूजा-हवन करने से मना किया है ? नहीं, सभी कर सकते हैं और सबको करना चाहिये था। लेकिन ये सनातन द्रोह और आसुरी छाया ग्रस्त होने की पराकाष्ठा है कि स्वयं तो कर ही नहीं सकते मोदी भी न करें, और यदि करते हैं तो नाना प्रकार से विघ्न उपस्थित करने का प्रयास भी करते हैं।

विपक्ष की समस्या क्या है

विपक्ष की समस्या वास्तव में सनातन द्रोह और आसुरी छाया ग्रसित होना है। जब भारत विभाजन हुआ था तो हिन्दू-मुसलमान के नाम पर हुआ था। मुसलमानों ने एक बड़ा भूभाग जो कि अनुपातिक रूप से अधिक भी था भारत का विभाजन करके ले लिया तो शेष भारत किसका हुआ ? हिन्दू का ही हुआ न ! किन्तु विभाजन के उपरांत भी ढेरों मुसलमान भारत में रह और राजनीति में पैठ बनाये रखा, देश की राजनीति में तुष्टिकरण थोप दिया।

तुष्टिकरण की राजनीति करने वाली विपक्ष ने हिन्दुओं के भारत को सनातन भारत नहीं कहा सुकुलर कहने लगे, मिली-जुली संस्कृति बताने लगे। यदि इतने तक भी सीमित रहते तो क्षम्य माना जा सकता था वास्तव में विपक्ष ने (जो उस समय सत्ता पक्ष था) सेकुलर का छद्म आवरण मात्र ओढ़ा था, स्वांग रचते रहे, इस्लाम का जो दारुल इस्लाम व गजवाये हिन्द योजना है उसके लिये प्रयास करने लगे।

शेष भारत की सनातन संस्कृति ही थी और हिन्दू का ही था, लेकिन निर्लज्जता ऐसी की मिली-जुली संस्कृति का पाठ पढ़ने-पढ़ाने लगे और इतना ही वास्तव में सनातन पर हर प्रकार से चोट ही करते रहे, जिसका प्रमाण है 70 वर्षों तक अयोध्या में राममंदिर निर्माण न होना। अभी भी ज्ञानवापी और मथुरा कृष्ण जन्मभूमि का विवाद चल ही रहा है। इसका उत्तरदायी आज का विपक्ष ही है जो उस समय का सत्तापक्ष था।

इन सनातन द्रोहियों ने सात दशकों में ऐसा षड्यंत्र किया कि गीता-रामायण, राम-कृष्ण अपने ही देश में ही सांप्रदायिक हो गये। रामायण-महाभारत-वेद-पुराण भारत के ग्रन्थ हैं , भारत की सम्पूर्ण भूमि राम और कृष्ण की भूमि है और उन्हें ही सांप्रदायिक बना देना सनातनद्रोह नहीं तो और क्या है। मिली-जुली संस्कृति तब एक बार मानी भी जा सकती थी जब भारत का विभाजन और वो भी हिन्दू-मुसलमान के नाम पर नहीं होता।

कांग्रेस के घोषणापत्र की व्याख्या करते हुये मोदी ने पहले ही दिन कहा था कि मुस्लिम लीग की छाप है। कांग्रेस के साथ जिन दलों ने गठबंधन किया था उसने भी उस घोषणापत्र को स्वीकार किया यह स्पष्ट है। साथ ही सभी विपक्षी दलों का इतिहास रहा है सनातन के धार्मिक ग्रंथों का विरोध करना, देवी-देवताओं को गाली देना और बचाव के लिये धीरे से यह कहना कि मैं भी हिन्दू हूँ। वास्तव में पूरा का पूरा विपक्ष सनातन द्रोही है जो बारम्बार उजागर भी हुआ है।

वास्तव में प्रधानमंत्री के ध्यान अर्थात सनातनी व्यवहार से विपक्षियों को द्वेष है क्योंकि वो घनघोर सनातन द्रोही हैं और विरोध करके ये स्वयं ही चरितार्थ कर रहे हैं। मोदी के ध्यान-योग से देश ही नहीं विदेशों में भी सनातन संस्कृति का एक सन्देश जायेगा जो विपक्षियों के पेट में दर्द का कारण है।

 विपक्ष क्यों है परेशान?

विपक्षियों को क्या करना चाहिये

विपक्षियों को चाहिये कि सर्वप्रथम वो सनातन द्रोह की भावना से विरत हो, आसुरी छाया से निवारण के लिये जो भी झाड़-फूंक करवाना हो कराये। इस वास्तविकता को स्वीकार करे कि जब मुसलमानों के लिये देश का विभाजन हो गया और अनुपातिक रूप से अधिक भूभाग ही दे दिया गया तो शेष भारत निःसंदेह सनातन का है और वर्त्तमान भारत में सनातन को सांप्रदायिक नहीं कहा जा सकता अपितु भारत की संस्कृति सनातन ही है।

भारत के ग्रन्थ रामायण, महाभारत, वेद, पुराण, उपनिषद आदि ही हैं कुरान या बाइबल नहीं। दूसरे को माँ को सम्मान देने का अर्थ यह नहीं होता कि अपनी माँ का तिरस्कार किया जाय। अपनी माँ की पूजा करने वाला ही दूसरों की माँ को भी सम्मान दे सकता है। इस सत्य को हृदय से स्वीकारे की भारत के ग्रन्थ यही सब हैं और इसे भारत में सांप्रदायिक नहीं कहा जा सकता। राम-कृष्ण ही भारत के महापुरुष हैं उनका अपमान नहीं किया जा सकता। सनातन ही भारत की संस्कृति है और यह स्वसिद्ध सेकुलर है।

विपक्ष को भी चाहिये कि लोकतंत्र का महापर्व संपन्न होने पर और नयी विधायिका, सरकार, विपक्ष के जीवन का आरम्भ देश की सनातनी संस्कृति का अनुकरण करते हुये करे। यज्ञ करे, रामायण-भागवत आदि कथाओं का आयोजन करे और अगले जीवन की मंगलकामना करे। एक विधायिका और सरकार का जीवन काल (जिसे कार्यकाल कहा जाता है) 5 वर्ष का होता है अर्थात चुनाव के बाद एक नयी विधायिका और सरकार (कार्यपालिका) का जीवन आरम्भ होगा, मोदी मंगलाचरण करने जा रहे हैं लेकिन यह कार्य सम्पूर्ण विपक्ष को भी अपने-अपने स्तर से विभिन्न अनुष्ठानों द्वारा करना चाहिये।

यहाँ हम किसी भी नेता के वक्तव्य की निंदा-सराहना नहीं कर रहे हैं सामूहिक रूप से ही सबके वक्तव्य का भाव ग्रहण करते हुये तदनुसार चर्चा करते हुये उचित-अनुचित निष्कर्ष तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं।

निष्कर्ष : विपक्ष और सम्पूर्ण विश्व कितना भी कुतर्क-षड्यंत्र करे यह अकाट्य है कि रामायण, महाभारत, वेद, पुराण, उपनिषद आदि भारत के ग्रन्थ हैं, कुरान और बाइबल आदि भारतीय ग्रन्थ नहीं हैं। भारतीय ग्रंथों में जो बताया गया है वही भारतीय संस्कृति-परम्परा-व्यवहार है, कुरान कर बाइबल आदि विदेशी किताबों की बातें भारतीय संस्कृति-परम्परा-व्यवहार नहीं है। ध्यान-योग करके मोदी यही सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं।

चुनाव के उपरांत नयी विधायिका (लोकसभा) और कार्यपालिका (सरकार) के जीवन का आरम्भ होने जा रहा है जिसके लिये मात्र मोदी को ही नहीं सभी प्रतिभागी राजनीतिक दलों व नेताओं को मंगलाचरण करना चाहिये। यदि मोदी के मंगलाचरण का विरोध करते हैं तो वह मोदी का विरोध नहीं देश की संस्कृति का विरोध सिद्ध होता है व विपक्षियों के घनघोर सनातन द्रोह व आसुरी छाया ग्रसित होने को उजागर करता है।

मुझे परमात्मा ने भेजा है
मुझे परमात्मा ने भेजा है
EVM राग
EVM राग
स्वस्थ लोकतंत्र की अनिवार्य शर्त
अच्छा विपक्ष स्वस्थ लोकतंत्र की अनिवार्य शर्त

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