मतदान कम क्यों हो रहा है ? क्या मोदी हारने वाले हैं 2024 में ?
इस आलेख में हम चर्चा करेंगे कि लोकसभा चुनाव 2024 में मतदान प्रतिशत कम होने के कारण क्या हैं? क्या मतदान प्रतिशत कम होने से मोदी हारने वाले हैं? क्या आगे मतदान का प्रतिशत बढ़ने वाला है?
मतदान प्रतिशत कम क्यों ?
सबसे पहले मतदान प्रतिशत कम क्यों हो रहा है इसे समझना आवश्यक है। मतदान प्रतिशत कम होने के तीन कारण हैं :
प्रतिकूल मौसम (अधिक गर्मी) में चुनाव कराया जाना : सामन्य रूप से होने वाले लोकसभा चुनाव काल की अपेक्षा 2024 का लोकसभा चुनाव 1 से 2 महीने विलंब से कराया जा रहा है और इस कारण गर्मी अधिक है। पहले की तुलना में अब AC, कूलर, पंखे में दिनभर रहने वाले लोगों की संख्या कई गुना बढ़ गई है जो गर्मी झेलने के लिये तैयार नहीं है। इस वर्ग में किसी एक पक्ष के मतदाता नहीं हैं किन्तु सत्तापक्ष को अधिक नुकसान होगा। क्योंकि उच्चवर्ग या मध्योच्च वर्ग जो पहले मतदान नहीं करता था मोदी जी ने उन्हें भी मतदान के लिये प्रेरित किया था और वो मत मोदी के पक्ष में ही अधिक होता भी था । अतः यदि अबकी बार वो मतदान न कर रहे हैं तो निश्चित रूप से सत्तापक्ष की ही अधिक हानि हो रही है।
यदि यही प्रमख कारण रहा हो तो आगामी चरणों में भी मतदान प्रतिशत बढ़ने की संभावना नगण्य है। किन्तु यदि ये प्रमुख कारण न हो तो आगामी चरणों में मतदान का प्रतिशत बढ़ना चाहिये।
मतदान प्रतिशत कम क्यों |
विवाहादि मुहूर्तो के दिन या आगे पीछे चुनाव कराना : लोकसभा चुनाव में जो मतदान की तिथि होती है उस दिन अथवा उसके आगे-पीछे विवाहादि मुहूर्तों का होना भी एक महत्वपूर्ण कारण है जिसपर संभवतः किसी ने विचार ही नहीं किया। यदि किसी घर में विवाह हो तो 2-3 दिन पहले व न्यूनतम 1 दिन बाद मात्र उस परिवार का ही नहीं उनके कई संबंधियों को भी इतनी व्यस्तता होती है कि मतदान करने के लिये समय निकाल पाना कठिन होता है। वर-वधू जिसका विवाह हुआ हो यदि किसी जोड़े ने कहीं मतदान किया हो तो ये अविश्वसनीय घटना है और अपवाद मात्र है क्योंकि एक ही दिन में दोनों पति-पत्नी का मतदान केंद्र एक कैसे हो गया? इसमें भी सत्तापक्ष व विपक्ष दोनों के मतदाता हैं अर्थात दोनों के मत कम हो रहे हैं किसी एक के नहीं, किन्तु विपक्ष को इसका थोड़ा लाभ प्राप्त हो सकता है और यह लाभ उन क्षेत्रों में होगा जहां मुस्लिम मतदाता की संख्या भी अधिक हो ।
लेकिन उपरोक्त स्थिति प्रथम दो चरणों में ही थी, आगामी पांच चरणों में उपरोक्त स्थिति नहीं है। यदि यही प्रमुख कारण रहा हो तो आगामी चरणों में मतदान प्रतिशत बढ़ने की पूरी सम्भावना है क्योंकि आगे इस प्रकार की बाधा नहीं है।
मतदाता का परिमाण के प्रति निश्चिंतता : लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की निश्चिंतता भी एक गौण कारण है। कौन से मतदाता निश्चिंत हैं 400 पार वाले या 2 अंक पार न करने वाले। इसका भी उत्तर है दोनों पक्षों के मतदाता निश्चिंत हैं एक विजय का दिवास्वप्न देख रहे हैं तो दूसरा पराजय भय में। दोनों चुनाव परिणाम के प्रति आश्वस्त हो गये हैं और दोनों ही पक्षों के थोड़े मतदाता सक्रियता से विमुख हो गये हैं। किन्तु इसमें अधिक संख्या पराजय भयाक्रांत की है। इस प्रकार यदि पराजय भयाक्रान्तों की संख्या अधिक है तो इसका सीधा तात्पर्य यही है कि सत्तापक्ष लाभ की स्थिति प्राप्त कर रहा है।
विजय का दिवास्वप्न देखने वाले आश्वस्त हैं कि “जीतेगा तो मोदी ही” और इसी कारण उन्हें ज्ञात भी नहीं है कि मतदान न करके देश और लोकतंत्र के प्रति अपराध कर रहे हैं। इसी प्रकार जो पराजय भयाक्रांत हैं उनमें रोष भी है, कांग्रेस के घोषणापत्र की सच्चाई उनको समझ आ गई है और भाजपा को अपना मत देना नहीं चाहते अतः मतदान से ही विरक्त हो गये। पराजय भयक्रांत के भीतर रोष अधिक प्रबल है जो विपक्ष के लिये दुर्गति का सूचक है।
क्या मोदी हारने वाले हैं 2024 में ?
जीतेगा तो मोदी ही |
मतदान प्रतिशत की कमी से यह कहा जा रहा है कि मोदी हार रहे हैं, यद्यपि पूरी दुनियां पहले ही बता चुकी है कि फिर मोदी सरकार ही बनने वाली है और तदनुसार सभी अपने व्यवहार में परिवर्तन भी करने लगे हैं। विपक्ष का यह कहना कि “मोदी हार रहे हैं” कहीं से अनुचित नहीं है। किन्तु मीडिया, राजनीतिक विश्लेषक आदि जो इस प्रकार की बात कह रहे हैं उनसे एक प्रश्न है कि यदि पिछले चुनाव से अधिक मतदान प्रतिशत होता तो क्या कहते ? यही न कि मोदी से असंतुष्टि के कारण मतदान प्रतिशत बढ़ी है। अर्थात यदि मतदान प्रतिशत बढ़ता तो भी आप यही कसम खाते और कम हो रहा है तो भी यही कसम खा रहे हैं। और ये पहली बार भी नहीं कर रहे हैं पिछले चुनावों में भी यही व्यवहार रहा है।
अर्थात जिस प्रकार विपक्षी दल यह कह रहे हैं कि “मोदी हार रहे हैं” इसका कोई महत्व नहीं है उसी प्रकार उन मीडिया, राजनीतिक विश्लेषकों और बौद्धिकों के वक्तव्य को भी अनसुनी करना ही उचित होगा जो पिछले चुनाव में भी इसी प्रकार मोदी को हरा रहे थे।
ये सत्य है कि दो चरणों में मतदान प्रतिशत कम होने से भाजपा और समर्थकों को भी चिंता होने लगी है लेकिन फिर भी उनके उत्साह में कमी नहीं है, उनका इतना ही मानना है कि अधिकतम हानि भी होगी तो भी 2019 के तुलना में सीट बढ़ेगी ही, चिंता बस इतनी है कि “400 पर का नारा” पूरा न हो पाये। अर्थात सत्तापक्ष व समर्थक की व्यग्रता का कारण मात्र इतना है कि हो सकता है 400 पर न हो, लेकिन ये उत्साह नहीं टूटा है कि सरकार मोदी की ही बनेगी।
मोदी हार रहे हैं |
इसी प्रकार विपक्ष अपनी करारी हार को तय मान रहा है विजय मात्र इतना समझ रहा है कि भाजपा के 400 पार नारे को पूरा न होने दिया जाय। यदि भाजपा 400 पार नहीं होती है तो इसमें विपक्ष की कैसी विजय होगी ये समझना अत्यंत कठिन है। विपक्ष तो शतक लगाने के प्रति भी आश्वस्त नहीं है।
- कन्नौज की घटना लीजिये लड़ेंगे, नहीं लड़ेंगे के उधेड़बुन से बिना उबरे अखिलेश यादव मैदान में उतरे।
- ममता बनर्जी को लीजिये, “चोट पर वोट” का पुराना “भेड़िया आया” वाला राग गाने लगी है वो इसीलिये कि सहानुभूति का मत प्राप्त किये बिना विजय का दर्शन नहीं होने वाला है किन्तु जनता “भेड़िया आया” राग को समझ चुकी है और अब यह भी काम नहीं आने वाला है।
- कांग्रेस को लीजिये अमेठी और रायबरेली जो कि दशकों से संरक्षित सीट रहा है वहां राहुल गाँधी और प्रियंका वाड्रा पर संघर्ष करने का दबाव बनाया जा रहा है पर उन दोनों का साहस समाप्त हो चुका है और आज-कल में समय खपा रहे हैं। मतलब साफ है जब एक तरह से आरक्षित लोकसभा में भी हार का भय हो तो आगे अन्य क्षेत्रों की बात ही क्या है।
- वहीं सत्तापक्ष को यदि देखें तो प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन की जगह मुंबई से उज्जवल निकम को प्रत्याशी बनाया गया है। यदि तनिक भी भय होता तो यह निर्णय नहीं लिया जा सकता था।
- इसके बाद भाजपा पूर्वी और दक्षिण भारत में भी बढ़त करने के लिये संघर्ष कर रही है अर्थात पहले की तुलना में अधिक सीटें प्राप्त करने वाली है।
मतदान कम होने का अर्थ
मतदान कम होने का अर्थ भाजपा या कांग्रेस की हार-जीत से नहीं जोड़ना चाहिये क्योंकि यदि अधिक मतदान होता तो भी भाजपा की हार का ही राग अलापा जाता। मतदान प्रतिशत कम होने का तात्पर्य कुछ और लेना चाहिये। यहां हम इस विषय के कुछ प्रश्न रख रहे हैं उत्तर आपको स्वयं ढूंढना चाहिये :
- क्या सामान्य जनसुविधाओं के प्राप्त होने पर जनता मतदान से भी मुंह फेरने लगती है ?
- क्या 7 दशक बाद भी जनता ने अपने मताधिकार के महत्व को नहीं जाना है ?
- यदि जनता ने अपने मताधिकार का महत्व नहीं जाना है तो इसके लिये उत्तरदायी कौन है ?
- जिन क्षेत्रों में लगातार 50% से भी कम मतदान किया जाता हो क्या वहां मतदान कराना स्वस्थ लोकतंत्र है ?
मतदान प्रतिशत बढ़ाने हेतु क्या-क्या उपाय किया जाना चाहिये ?
स्वस्थ लोकतंत्र के लिये यह आवश्यक है कि जनप्रतिनिधि अल्प मतदाताओं द्वारा चयनित न हों। किन्तु यदि अल्प मतदाता ही मतदान करते हैं तो उस क्षेत्र में मतदान बढ़ाने हेतु कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है, जिसमें प्रमुख सुविधा, सेवा आदि से वंचित करना हो सकता है।
इसके साथ ही जब “वर्क फ्रॉम होम” का युग आ गया है तब भी मतदान हेतु उनके लिये किसी प्रकार से विचार नहीं करना जो कभी मतदान नहीं करते उचित नहीं है। ऑनलाइन मतदान की सुविधा आवश्यक है। ऑनलाइन मतदान की सुविधा आरम्भ करने से पूर्व मतदान नहीं करने वालों के प्रति कठोर व्यवहार करना भी अनुचित ही होगा।
- मतदान केंद्रों पर लम्बी कतारों का निस्तारण किया जाना चाहिये।
- मतदान के लिये मौसम का भी ध्यान रखना चाहिये, न तो अधिक गर्मी हो न ही अधिक सर्दी।
- मतदान की तिथियां ऐसी सुनिश्चित करनी चाहिये जिसमें विवाह आदि का भी शुभ मुहूर्त न हो।
- मतदान की तिथि के आगे-पीछे छुट्टियां भी न हो।
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