Headlines

जो वचन का पक्का हो जाये वो केजरीवाल नहीं

जो बात का पक्का हो वो केजरीवाल नहीं

पुराने समय में मर्द उसे कहा जाता था जो वचन का पक्का हो। रघुकुल की तो रीत ही रही थी “प्राण जाय पर वचन न जाई” बाद में फिल्मी दुनियां ने पहले दर्द से जोड़ दिया और कहा “मर्द को दर्द नहीं होता” और अब एक महापुरुष कट्टर ईमानदार अरविन्द केजरीवाल हैं जो राजनेताओं का लक्षण दिखा रहे हैं “जो वचन का पक्का हो जाये वो राजनेता कैसा” और टक्कर उस मोदी से लेते हैं जिसके वचन का महत्व है।

जो वचन का पक्का हो जाये वो केजरीवाल नहीं

जबसे दिल्ली की राजनीति में कट्टर ईमानदार अरविन्द केजरीवाल का जन्म हुआ है तबसे दोमुंहा सांप गायब हो गया है, उसे तभी ज्ञात हो गया था ये किसी की नहीं चलने देगा। ये सबके साथ होता है कि कभी-कभार पिछले बात से पलटना पड़ता है किन्तु उस समय पिछली बात को गलत कहकर, क्षमायाचना करके पलटता है और सामने वाले को यह आभास दिला देता है कि सत्य के लिये, सबके हित के लिये पलटना ही होगा। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कभी पलटी मारते ही नहीं भले ही यह क्यों न बोल दिया हो कि सूरज पश्चिम में उगता है इसका सबसे बड़ा उदहारण राहुल गांधी हैं ।

लेकिन बात जब अरविन्द केजरीवाल की आती है तो पलटूराम परेशान हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें भी बात पलटने में कुछ साल लग जाते हैं, अरविंद केजरीवाल है कि खटाखट खटाखट खटाखट पलटी ही लेते रहते हैं। अब तो ऐसा भी लगने लगा है कि “जो वचन का पक्का हो जाये वो केजरीवाल नहीं”, केजरीवाल का तात्पर्य मात्र अरविन्द केजरीवाल है, कोई उपनाम नहीं।

अरविंद केजरीवाल की एक और बड़ी विशेषता है कि दुनियां कितना भी कितनी भी थू-थू करे इनको लज्जा नहीं आ सकती कट्टर निर्लज्ज हैं। इनकी निर्लज्जता को देखते हुये यदि राजनेताओं के लिये एक प्रशिक्षण विश्वविद्यालय बनाकर और उसमें निर्लज्जता को एक विषय बनाया जाये तो विभागाध्यक्ष पद के लिये केजरीवाल के अतिरिक्त दूसरा चेहरा नहीं मिलेगा।

हमें तो चिंता ये हो रही है कि ये अपने बच्चों को क्या सीखा रहे हैं, भविष्य में इनके बच्चों के साथ समाज क्या व्यवहार करेगा ? अच्छा तो यही होगा कि बच्चों को भी कट्टर निर्लज्ज बना दें अन्यथा वो तो धरती में धंस जायेंगे। यदि केजरीवाल का पद चला जाये तो चिंता ये भी है कि लोग इनके बच्चों का भी जीना न मुहाल कर दें।

अरे धूर्त केजरीवाल अपने बच्चों के बारे में भी थोड़ा सोचो उसका भविष्य क्यों खराब कर रहे हो ? यदि पद और पैसा चला गया तो तुम्हारे कारण तुम्हारे बच्चों का विवाह भी नहीं हो पायेगा। यदि तुमने बच्चे को राजनीति में नहीं घसीटा तो जहां भी जायेगा लोग उसे हेय दृष्टि से ही देखेंगे।

इस विषय में तो बाल अधिकार और बच्चों के लिये काम करने वाली संस्थाओं को आगे आना चाहिये और जाँच करनी चाहिये इन्होंने अपने बच्चे को निर्लज्जता का ज्ञान दिया है या नहीं। पिता के सम्बन्ध में तो दिखाई दे गया है, पहले दिन ऐसे बूढ़े बनकर चलते हैं जैसे अब और तब की स्थिति में हैं और दो दिन बाद वोटिंग करके पारिवारिक फोटो खिंचाते हैं तो युवा दिखने लगते हैं।

इनके पिता के बारे में कहा जाता है की पूरी संपत्ति हड़पने के लिये माँ की जगह बहन का नाम लिख दिया था, अर्थात बेटी को बाप की पत्नी बना दिया था और इस विषय में इनकी बुआ ने भी एक बार धरना प्रदर्शन किया था, न्याय मांगी थी पता नहीं न्याय मिला या नहीं ?

वैसे ये विषय राहुल गांधी का है कि वो देश को बतायें अरविन्द केजरीवाल की बुआ को न्याय मिला है या नहीं ? और यदि अब तक न्याय नहीं मिला है तो कब तक मिल जायेगा ये भी बता दें। वैसे न्याय के लिये सरकार होने की आवश्यकता नहीं होती, न्यायपालिका में नामी वकील होने चाहिये जो की कांग्रेस में भरे परे हैं। एक प्रश्न ये भी है कि किसी मीडिया ने कभी इस प्रसंग को उठाया क्यों नहीं।

कल केजरीवाल ने जो फोटो डाला उसमें सब तो दांये हाथ की अंगुली दिखा रहे हैं लेकिन सुनीता केजरीवाल दांये हाथ की ऊँगली दिखा रही है और मानो फोटो के माध्यम से सन्देश दे रही हो : “मैं दो कदम आगे हूँ, रिश्ते में तुम्हारी ……. “

मैं दो कदम आगे हूँ, रिश्ते में तुम्हारी ...
मैं दो कदम आगे हूँ, रिश्ते में तुम्हारी …

अभी तक तो ऐसा लग रहा है कि मास्टमाइंड अरविन्द केजरीवाल हैं, लेकिन इस फोटो को देखकर तो लगता है कि अरविन्द केजरीवाल भी मुखौटा हैं, असली मास्टरमाइंड सुनीता केजरीवाल है।

मैं कॉमेंट नहीं करुँगा जी

यहां हम इनके पुराने विरोधी बोलों पर विचार नहीं करेंगे नये बोल से समझेंगे।

इंडिया टीवी को दिये गये साक्षात्कार में अरविंद केजरीवाल को …… याद आ गयी थी, यद्यपि कुछ प्रश्न यदि और होते तो संभवतः गिर भी जाते, क्योंकि ये कहते दिखे हैं कि अभी मैं जिन्दा हूँ। इसी कारण AAP ने और सभी साक्षात्कार तो “X” पर साझा किया किन्तु इस साक्षात्कार को साझा नहीं किया, ये भी वही बात है कि दोमुंहा सांप भी छिप गया है।

साक्षात्कार में कई बार स्वाति मालीवाल प्रकरण के बारे में पूछा गया और हर बार टपाटप टपाटप टपकाते रहे “मैं कॉमेंट नहीं करुँगा जी”, बहाना था कि यह विषय न्यायालय में विचाराधीन है। वहीं स्वयं के विषय में जिसपर सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी करने से मना भी कर रखा है धराधर धराधर धमकने लगते हैं “चवन्नी नहीं मिला जी”, अपने (दिल्ली सरकार के) कारागार में ही उनके साथ क्या हुआ बढ़-चढ़ कर बोलते हैं। यहाँ तक घोषणा कर दिया कि यदि वोट दोगे तो जेल नहीं जाऊंगा।

स्वाति मालीवाल की राज्यसभा सीट के प्रश्न पर भी कहते हैं इस विषय में टिप्पणी नहीं करूँगा जी, जबकि पत्रकार बताती है कि ये न्यायाधीन विषय नहीं राजनीतिक विषय है राज्यसभा सीट की बात है फिर भी नहीं बोले, लेकिन चड्ढा की बात आयी तो बोल दिये कोई खतड़ा नहीं है।

जेल जाने की बात पर न्यायालय भी कह चुका है कि जेल सरकार नहीं भेजती न्यायालय भेजती है फिर भी सबका नाम गिनाते हुये कहते हैं कि मोदी ने सबको जेल में डाला, पत्रकार पूछती है कि बाहर आये तो क्या मोदी ने ही बाहर निकाला तो कहते हैं कि नहीं न्यायालय ने निकाला।

स्वस्थ लोकतंत्र की अनिवार्य शर्त
अच्छा विपक्ष स्वस्थ लोकतंत्र की अनिवार्य शर्त
बुझते दिये की तरह भभकते केजरीवाल
बुझते दिये की तरह भभकते केजरीवाल
टीविया
टीविया

Discover more from Kya Samachar hai

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Discover more from Kya Samachar hai

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading