विभिन्न चर्चाओं में यह सिद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है कि यदि डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को दिया जाय तभी लोकतंत्र को स्वस्थ लोकतंत्र कहा जा सकता है अन्यथा नहीं। न जाने क्या-क्या बोला जा रहा है लेकिन पिछले 7 दशकों तक क्या होता रहा, कांग्रेस के शासन काल में लोकतंत्र कितना स्वस्थ रहा है यही एक गंभीर प्रश्न हो जायेगा। स्वस्थ लोकतंत्र का डिप्टी स्पीकर पद से क्या संबंध है हम इसे समझने का प्रयास करेंगे।
स्वस्थ लोकतंत्र का तात्पर्य डिप्टी स्पीकर पद विपक्ष को देना है या …
स्वस्थ लोकतंत्र का तात्पर्य बताया जा रहा है कि डिप्टी स्पीकर पद विपक्ष को दिया जाना चाहिये। जो पूर्ण रूप से गलत है, बनाने के लिये तो कुछ मंत्री भी विपक्ष के हों ऐसा भी कुतर्क किया जा सकता है। स्वस्थ लोकतंत्र का तात्पर्य देश के लिये समर्पित लोगों को जो सर्वाधिक योग्य हो उसे उचित रूप से कार्य करने के लिये कार्यभार देना है, न कि सत्ता, गठबंधन या विपक्ष के नाम पद देना। यदि के सुरेश ही सर्वाधिक योग्य हैं, सही से काम करें, तो डिप्टी स्पीकर ही नहीं स्पीकर उन्हीं को बनाया जाना चाहिये।
देशहित का भाव रखकर सत्ता और विपक्ष कार्य करें उसे स्वस्थ लोकतंत्र कहा जायेगा न कि संख्या बल के आधार पर पद की लड़ाई को। लोकसभा अध्यक्ष हों या उपाध्यक्ष पद, यदि स्वस्थ लोकतंत्र की बात करें तो सर्वश्रेष्ठ के चयन में न तो सत्ता कहे कि मेरा और न ही विपक्ष मेरा-मेरा कहे। सर्वश्रेष्ठ कौन है यह संख्याबल से सिद्ध ही नहीं होता है। स्वस्थ लोकतंत्र संख्याबल के दुरुपयोग को नहीं सदुपयोग को कहा जा सकता है।
परम्परा
परम्परा तब सिद्ध होती जब पहली सरकार जब नेहरू काल से ही किसी नियम का पालन किया गया हो। जिस किसी नियम का भी नेहरू काल से पालन किया गया हो उसे परंपरा कहा जा सकता है। यदि डिप्टी स्पीकर कर पद विपक्ष को नहीं दिया जाता है तो स्वस्थ लोकतंत्र नहीं कहा जा सकता तो कांग्रेस को ये भी बताना आवश्यक है कि उसने सदा ऐसा किया था। परम्परा केवल बोलने से नहीं होता है, परम्परा जो पुराने काल से होता रहा है यह सिद्ध होने से होता है।
यदि वास्तव में यही परंपरा है कि डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को दिया जाता रहा है तो सिद्ध करें न। अभी भी कुछ राज्यों में कांग्रेस + की सरकार है कहे कि जहां कहीं भी कांग्रेस + की सरकार है वहां उसने परंपरा का निर्वहन किया है और डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को दिया है। यहां यह कुतर्क नहीं चल सकता कि भाजपा शासित राज्यों में भी नहीं है यदि यह कुतर्क ही करना है तो परंपरा सिद्ध नहीं होती और परंपरा कहना ही गलत है। यदि परंपरा है तो आप सिद्ध कीजिये की आप उस परम्परा का निर्वहन करते रहे हैं और करते हैं। उसके बाद यह बताईये की आपका विरोधी परंपरा का पालन नहीं कर रहा है।
कांग्रेस की कमजोरी
चाहे निंदनीय राजनीति हो अथवा कांग्रेस की विफलता इसके मुख्य दो कारण हैं : प्रथम ये कि विपक्ष के रूप में कांग्रेस की अनुभवहीनता और द्वितीय योग्यता के स्थान पर परिवार का महत्व।
1 – विपक्ष के रूप में कांग्रेस की अनुभवहीनता : देश की स्वतंत्रता के बाद लगातार इकलौती बड़ी राजनीतिक दल होने के कारण कांग्रेस सत्ता में रही। यदि कभी दूसरा आगे बढ़ा भी तो आपातकाल लगाकर भी सत्ता में ही रहने का प्रयास करती रही और अभी भी कर रही है। विपक्ष के रूप में कार्य करने का कांग्रेस को कोई अनुभव ही नहीं है जिसका परिणाम है कि आज वो विपक्ष में होने के बाद भी विपक्ष का कार्य करना नहीं चाहती है। राहुल गांधी ने तो स्वयं कहा है जन्म से ही देखते रहे हैं कैसे चलता है।
जन्म से उन्होंने क्या देखा है सत्ता में रहना, जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तब अघोषित रूप से राहुल गांधी स्वयं को प्रधानमंत्री मानते थे और ऐसा देखा भी गया, जैसे बिल को फाड़ देना। कांग्रेस कभी भी विपक्ष के रूप में काम करते दिखी ही नहीं, कांग्रेस ने विपक्ष का काम केवल विरोध करना समझ रखा है ऐसे में पद की लालसा और उसके लिये भी विरोध से स्वस्थ लोकतंत्र सिद्ध ही नहीं होता।
साथ ही यदि कांग्रेस को डिप्टी स्पीकर का पद दे दिया जाये तो उसे सभी स्वस्थ लोकतंत्र घोषित करने लगेंगे। जबकि स्वस्थ लोकतंत्र का तात्पर्य है कि स्पीकर हो या डिप्टी स्पीकर जो पद के सर्वाधिक योग्य हों, सर्वश्रेष्ठ हों उन्हें बनाया जाना चाहिये, भले ही अपने दल के वो इकलौते सांसद क्यों न हों।
सभी जानते हैं कि प्रारंभिक काल से ही लोकसभा अध्यक्ष सत्ता का ही रहा है, भले ही विपक्ष के नेता क्यों न सुयोग्य रहे हों। अटल बिहारी वाजपेयी के काल में जब भाजपा विपक्ष में थी तब भी लोकसभा अध्यक्ष पद के लिये वो सर्वाधिक योग्य थे, स्वस्थ लोकतंत्र का परिचय कांग्रेस ने क्यों नहीं दिया था, वाजपेयी को स्पीकर क्यों नहीं बनाया था ? डिप्टी स्पीकर से ही स्वस्थ लोकतंत्र नहीं सिद्ध होगा, स्वस्थ लोकतंत्र के लिये स्पीकर पद भी सुयोग्य को देना आवश्यक है।
2 – योग्यता के स्थान पर परिवार का महत्व : कांग्रेस और अन्य सभी क्षेत्रीय दलों की सबसे बड़ी विशेषता नहीं सबसे बड़ा दुर्गुण है परिवार में सिमटे रहना, योग्यता का तिरस्कार करना। जब कांग्रेस सहित सभी क्षेत्रीय दलों के भीतर ही योग्यता के आधार पर चुनाव नहीं परिवार का आरक्षण है, आतंरिक लोकतंत्र ही नहीं है तो इन लोगों के मुंह से लोकतंत्र शब्द निकलना भी लोकतंत्र का अपमान जैसा लगता है। स्वस्थ लोकतंत्र की तो बात ही क्या करें। लोकतंत्र का तात्पर्य है संख्याबल से निर्णय करना, स्वस्थ लोकतंत्र का तात्पर्य है संख्याबल का सदुपयोग करना, सर्वश्रेष्ठ का चयन करना।
जो दल अपने अंदर के सर्वश्रेष्ठ का कभी चयन तो छोड़ें परिवार से अलग चयन तक नहीं करते, परिवार का एकाधिपत्य रहता है वो दल और उसके नेता निर्लज्जता पूर्वक लोकतंत्र-लोकतंत्र चिल्लाते रहते हैं। जब राहुल गांधी कहते हैं लोकतंत्र खतड़े में है तो उन्हें यह क्यों नहीं दिखता कि उनका कांग्रेस पर लोकतंत्र के कारण नहीं पारिवारिक आधार से अधिपत्य है।
राहुल गांधी से कई श्रेष्ठ नेता कांग्रेस में भी हैं, यदि आज घोषित रूप से खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष हैं भी तो दुनियां जानती है कि बस मुखौटा हैं, वास्तविक नियंत्रण सोनियां गांधी और परिवार के पास ही है। कुछ महीने पहले एक विडियो वायरल हुआ था, तब खड़गे को कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनाया गया था। विडियो में राहुल गांधी खड़गे की पीठ (कोट) पर नकटी (नाक का मैल) पोंछते देखे गये थे।
प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति बनाया गया था, लेकिन कभी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनाया गया, प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया क्यों ? क्योंकि प्रणव मुखर्जी को यदि ये पद दिया जाता तो वो परिवारभक्ति करते इसकी गारंटी नहीं थी। परिवारभक्ति की गारंटी नहीं होने के कारण सर्वश्रेष्ठ होने के कारण भी कांग्रेस का कभी अध्यक्ष नहीं बनाया गया और न ही प्रधानमंत्री बनाया गया।
राहुल गांधी को किस आधार से कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया था। अध्यक्षता के कई मानक होते हैं जो सर्वश्रेष्ठता के चयन को सुनिश्चित करने के लिये होते हैं। ज्ञान, अनुभव, नेतृत्व क्षमता, स्वच्छ छवि आदि कई मानक होते हैं जिसके आधार पर कहीं भी अध्यक्ष का चयन होना चाहिये। यदि इन चारों प्रमुख मानकों की बात करें तो राहुल गांधी किसी एक मानक से भी कांग्रेस अध्यक्ष बनने की योग्यता नहीं रखते थे, उनकी एक ही योग्यता थी परिवार विशेष में जन्म लेना।
यदि राहुल गांधी को नेता प्रतिपक्ष भी बनाया गया है तो उसका कारण पारिवारिक पृष्ठभूमि ही है, योग्यता या श्रेष्ठता नहीं। तथापि यही सत्य है यदि परिवारवाद है तो है स्वीकार करना होगा। लेकिन जो भी हो राहुलगांधी को नेता प्रतिपक्ष बनाया जाना उनके लिये शुभद है, कार्यशैली का अनुभव प्राप्त होगा, बोलने की मर्यादा सीखेंगे और पांच वर्षों बाद एक अनुभवी नेता के रूप में दिख सकते हैं।
स्वस्थ लोकतंत्र
स्वस्थ लोकतंत्र को एक बार पुनः समझने का प्रयास करेंगे क्योंकि डिप्टी स्पीकर पद यदि कांग्रेस को दिया जाता तो स्वस्थ लोकतंत्र होता ऐसा समझाया जा रहा है। ये बस भ्रमित करने का प्रयास है और इसका कारण नेताओं की अज्ञानता है। यह स्पष्ट है कि लोकतंत्र का तात्पर्य संख्याबल से निर्णय करना है। किन्तु यदि मात्र संख्याबल से निर्णय लिया जाय तो उसमें त्रुटियां होती है जिस कारण संख्याबल से जब निर्णय लिया जाता है तो उसे स्वस्थ लोकतंत्र नहीं कहा जाता। क्योंकि स्पीकर हो या डिप्टी स्पीकर चयन तो संख्याबल से ही होगा।
#WATCH 18वीं लोकसभा के अध्यक्ष चुने जाने के बाद भाजपा सांसद ओम बिरला लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे।
— ANI_HindiNews (@AHindinews) June 26, 2024
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, विपक्ष के नेता राहुल गांधी और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू भी उनके साथ आसन तक पहुंचे। pic.twitter.com/9hLObWu5KP
यदि मात्र संख्याबल से चयन किया जाय तो सर्वाधिक योग्य, सर्वश्रेष्ठ का चयन होगा यह सुनिश्चित नहीं होता है। सर्वसम्मति का भी वास्तविक तात्पर्य सर्वाधिक योग्य, सर्वश्रेष्ठ का चयन करना है, और जब ऐसा हो तभी स्वस्थ लोकतंत्र कहा जा सकता है। डिप्टी स्पीकर विपक्ष का हो तो स्वस्थ लोकतंत्र होगा यह भ्रम के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। यदि विपक्ष के नेता ही सर्वाधिक योग्य हों तो स्पीकर भी उन्हें बनाया जाना स्वस्थ लोकतंत्र होता।
यदि स्वस्थ लोकतंत्र पर गंभीर विचार किया जाय तो राजनीतिक दल होना ही नहीं चाहिये। जनता मात्र एक योग्य प्रतिनिधि का चयन करती, फिर सभी प्रतिनिधि सुयोग्य नेता को प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष आदि चयन करके बनाती। राजनीतिक दल के कारण भी योग्य व्यक्ति का चुनाव नहीं होता है। अर्थात जब तक दलगत राजनीति चलेगी तब तक लोकतंत्र को स्वस्थ कहा ही नहीं जा सकता।
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