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NTA पर निशाना क्यों लगाया जा रहा है

NTA पर निशाना क्यों लगाया जा रहा है

NEET परीक्षा प्रकरण में कई प्रकार के विवाद सामने आये और ऐसा देखा जा रहा है कि कई प्रकार की धांधली हुई है। झूठे आरोप भी लगाये गये जो न्यायालय में भी झूठा सिद्ध होने लगा है। लेकिन सभी प्रकरण को जोड़कर देश को ऐसा बताने का प्रयास किया जा रहा है कि NTA समस्याओं की जननी है। इस प्रकरण में कई प्रकार के प्रश्न उत्पन्न होते हैं जिस पर कहीं कोई चर्चा नहीं देखी जा रही है। हम इस प्रकरण से जुड़े उन पक्षों को समझने का प्रयास करेंगे जो देश को बताया नहीं जा रहा है अर्थात एक बार पुनः मीडिया देश को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है।

NTA पर निशाना क्यों लगाया जा रहा है

इस विषय पर चर्चा से पहले EVM प्रकरण को भी एक बार समझने की आवश्यकता है। विपक्ष EVM से मतदान का खुलकर विरोध कर रहा है, सर्वोच्च न्यायालय तक गया। किन्तु प्रश्न ये है कि क्यों ? इसलिये कि बैलेट पेपर से मतदान हो और बैलेट पेपर से मतदान होने पर फर्जी मतदान सरल हो जायेगा, बूथ लूटना सहज हो जायेगा और इसके द्वारा जिसे 70 सालों का अनुभव है वो पुनः सत्ता को हथियाने में सक्षम हो जायेंगे।

जब निर्वाचन आयोग खुलकर EVM को हैक करने की, छेड़छाड़ करने की चुनौती देता है तो कोई यह सिद्ध करने के लिये नहीं जाता कि हाँ EVM से छेड़छाड़ किया जा सकता है, EVM को हैक किया जा सकता है। जानते हैं ऐसा नहीं किया जा सकता किन्तु जनता को भ्रमित किया जा सकता है तो इसलिये निरंतर ऐसा प्रयास किया ही जा रहा जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कह दिया कि EVM पर पीछे नहीं हटा जा सकता।

फिर भी EVM का जिन्न कुछ अधपगलों के सर पर नाच ही रहा है। क्या चाहते हैं ? स्पष्ट है बैलेट पेपर से फर्जी मतदान करने का अधिकार चाहते हैं, बूथ-लूटने का अधिकार चाहते हैं। ऐसा इसलिये चाहते हैं कि इसके बिना सत्ता नहीं प्राप्त कर सकते इस पर विश्वास हो चुका है। अर्थात EVM-EVM वो चिल्लाते हैं जो निश्चित रूप से ऐसा मान चुके हैं कि देश उनपर विश्वास नहीं करता है, उनके कर्म ऐसे नहीं हैं जो देश को बताया जा सके और उसके आधार पर विश्वास प्राप्त कर सकें। इसलिये वही पुराना तरीका चाहिये जिससे दशकों तक सत्ता में रहे।

National Testing Agency (NTA) का प्रकरण भी इसी प्रकार से मिलता-जुलता लग रहा है।

शिक्षा माफिया का दर्द

National Testing Agency (राष्ट्रीय परीक्षण संस्थान) की स्थापना मोदी काल में 2017 में किया गया था और इस संस्थान से कई प्रकार के उन तत्वों की दुकानों पर संकट आ गया जो शिक्षा माफिया थे। जिनकी दुकानों पर ताला लगने की स्थिति उत्पन्न हो गयी है उनको निश्चित रूप से दर्द हो रहा है। यदि दर्द हो रहा है तो निश्चित रूप से चिल्लायेंगे।

क्या आपको किसी ने बताया है कि शिक्षा माफियाओं के पेट का दर्द है जो NTA-NTA चिल्ला रहा है ?

ये नहीं कहा जा सकता कि NTA के आने से सब सही हो गया है। तंत्र वही है, और काम कर रहा है। NTA बनने का तात्पर्य यह नहीं है कि परीक्षा केंद्र बदल गये, परीक्षा लेने वाले पूरी तरह से बदल गये। जिस तंत्र को 70 सालों का अभ्यास लगा हुआ है वो अचानक से कैसे सुधर जायेगी। पूरे तंत्र को बदला भी तो नहीं जा सकता। ऐसा भी नहीं है कि किसी एक दल का आशीर्वाद है, सभी दल या दल के लोग कहीं न कहीं जुड़े हैं।

वास्तव में शिक्षा माफिया चाहते हैं कि NTA को बंद किया जाय, जैसे फर्जी मतदान और बूथ लूटकर जीतने वाले चाहते हैं EVM से मतदान बंद करके फिर से बैलेट पेपर द्वारा कराया जाय। NEET परीक्षा में कोई गड़बड़ी नहीं हुयी ऐसा कदापि नहीं कहा जा सकता लेकिन हंगामा करने वाले अच्छे लोग हैं ये भी नहीं कहा जा सकता जबकि जिस पहले मामले का निष्पादन हुआ है उसमें आरोप ही झूठा सिद्ध हो भी गया है वो भी उच्च न्यायालय में।

अन्य आरोपों की अभी जांच ही चल रही है यदि अन्य आरोप भी गलत सिद्ध हो गये तो क्या होगा ? हंगामा करने वाले तब भी शांत नहीं होंगे जैसे पहले CAA फिर किसान बिल को लेकर हंगामा किया जाता रहा अब पुनः उसी विषय को लेकर हंगामा नहीं किया जा सकता अब नया विषय चाहिये। हंगामा का नया विषय NTA को चुना गया।

धांधली करने वाले कौन हैं

अगली घटना UGC-NET की परीक्षा में भी गड़बड़ी की शिकायत हुई, ये परीक्षा भी NTA से ही जुड़ा हुआ है। हंगामा नियंत्रण से बाहर न हो जाये इसलिये इसको तुरंत ही निरस्त कर दिया गया और जांच CBI को दे दिया गया। उनको वास्तव में चिह्नित करने और दण्डित करने की आवश्यकता है जो गड़बड़ी करते हैं।

धांधली करने-कराने वाले जो हैं ये NTA बनने के बाद जन्मे हैं ऐसा नहीं है, ये तो दशकों से अपनी जड़ जमाये हुये हैं और उसे बचाना चाहते हैं। कुछ कोचिंग माफिया भी बाहर आये और न्यायालय तक भी गये जहां न्यायालय ने साफ-साफ कहा तुम हो कौन ?

NTA का विरोध इसलिये नहीं किया जा रहा है कि धांधली हो रही है अपितु इसलिये किया जा रहा है कि धांधली को रोकने का प्रयास किया जा रहा है। विपक्षियों ने हाथ में तिली ले रखा है कहीं तेल दिखा नहीं की तिली फेंक आये। धांधली कैसे और कितनी होती थी, सार्टिफिकेट कैसे बिकता था ये उनसे पूछना चाहिये जिनकी आयु 40 – 50 वर्ष या अधिक है। यदि धांधली के विरोध में हंगामा होना होता तो दशकों पहले इससे भी बड़ा हंगामा हो चुका होता। डिग्री बिकने की बात को तो उपमुख्यमंत्री पद पर रहते हुये तेजस्वी यादव ने स्वयं ही जगजाहिर किया था।

उपमुख्यमंत्री पदासीन तेजस्वी यादव का ये कहना कि चाहते तो डिग्री ले सकते थे कोई छोटी बात है ? ये उस भेद को खोल देता है जो उस जमाने में धड़ल्ले से किया जाता था।

दो दशकों पहले तक जितनी धांधली होती थी और सर्टिफिकेट का बाजार जैसे चलता था उसे समाप्त किया जा रहा है। धांधली का तो ऐसे-ऐसी उदहारण मिलेंगे जहां सबके-सब परीक्षार्थी खुली पुस्तकों से उतारा करते थे। व्यंग्य किया जाता था ये चोरी नहीं है जी, चोरी तो उसे कहते हैं जिसमें चुपके से चिट का उपयोग हो, ये तो पुस्तक से लिखा जा रहा है चोरी नहीं है।

किस दिशा में जा रहे हैं

आज यदि कांग्रेस और अन्य गठबंधन सहयोगी हंगामा कर रहे हैं उन्होंने अपने शासन काल में क्या किया था यह पूछा जाना चाहिये। जब खुली किताबों से उत्तर लिखे जाते थे, सर्टिफिकेट बेचे जाते थे तब वो लोग क्या कर रहे थे और उसे क्या कहा जायेगा। तुलना अवश्य होनी चाहिये, कितना सही और कितना गलत का निर्णय करना होगा।

शत-प्रतिशत सही न कभी हो रहा था और न कभी हो सकता है, तुलना की जा सकती है पहले कितना गलत हो रहा था और NTA आने के बाद कितना गलत हो रहा है। यदि NTA के बाद सुधार हुआ है तो सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और यदि NTA के आने से स्थिति और बिगड़ गयी है तो गलत दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

NTA को भी आरोपी बनाया जाना चाहिये यदि NTA ने जानबूझ कर कोई गड़बड़ी किया हो या गड़बड़ी करने वाले को प्रश्रय दिया हो। लेकिन गड़बड़ी यदि परीक्षा केंद्रों की है, शिक्षा माफियाओं की है तो घसीटा उसे जाना चाहिये उसमें NTA कैसे दोषी होगा ? NTA तो उसी तंत्र के माध्यम से परीक्षा आयोजित करेगा जो परीक्षा कराते हैं यदि उस तंत्र में त्रुटि है तो तंत्र को घसीटना चाहिये न।

लेकिन विवाद दूसरी दिशा में आगे बढ़ाया जा रहा है तंत्र को घसीटा नहीं जा रहा है अपितु तंत्र को बचाने का और NTA को बंद करने का प्रयास किया जा रहा है। चाहे कुछ भी हुआ हो इस विवाद में जो कोचिंग माफिया सामने आते दिखे हैं उनका क्या दर्द है ? कोचिंग माफिया का दर्द जांच का विषय होना चाहिये। तब तो कभी सामने नहीं आते थे जब खुल्लम-खुल्ला धांधली होती थी, उलटी गंगा बहती थी।

वास्तव में सरकार ने कोचिंग माफियाओं के विरुद्ध भी पिछले कार्यकाल में कुछ ऐसा काम किया था कि उनके पैर के नीचे से जमीन खिसकने लगी। कोचिंग माफिया अपने स्वार्थ की सिद्धि चाहते है, अपनी दुकान बढ़ाना चाहते हैं जो सरकार रोक रही है; विरोध स्वाभाविक है। विपक्षी तिली लेकर घूमते हैं तो जहां तेल मिला वहीं तिली लगा देंगे। देश से लेकर विदेशों तक इन लोगों के नेताओं ने देश में आग लगाने की बात किया है, शब्दशः अर्थ भले कुछ और रहा हो भावार्थ यही रहा है।

राजनीति में वक्तव्यों के अर्थ और भावार्थ इसी प्रकार होते हैं, जैसे यदि कोई नेता यह कहे कि “हम शांतिपूर्ण तरीके से हल चाहते हैं” अर्थ तो यही होता है और बहुत कर्णप्रिय लगता है। किन्तु इसका भावार्थ जो होता है वो ये होता कि “सीधे-सीधे मान जाओ नहीं तो अशांति फैला देंगे”, वक्तव्यों के भाव गुप्त रखे जाते हैं। आग लगाने वाले वक्तव्यों के शब्दार्थ कुछ भी हों भावार्थ इसी प्रकार से निकलते हैं और वर्त्तमान में देशभर में हो रहे उपद्रवों से जुड़े दिखते हैं।

  • संस्थान पर सभी प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं तंत्र पर कोई नहीं ऐसा क्यों ?
  • सुधार की आवश्यकता है या संस्थान को समाप्त करने की ?
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