केजरीवाल भले ही कारागार की हवा ले रहे हैं किन्तु अभी भी दिल्ली में केजरीवाल सरकार ही है। केजरीवाल भले ही कोई निर्णय नहीं ले रहे हों, कोई काम नहीं कर रहे हों किन्तु दिल्ली के मुख्यमंत्री वही हैं। कुछ दिनों पहले तक मीडिया केजरीवाल और AAP सरकार का गुणगान कर रही थी, अचानक से दिल्ली जल संकट के प्रकरण में मीडिया AAP सरकार पर टूट पड़ी है। ऐसा क्या हो गया है समझने की आवश्यकता है।
ऐसा क्या हो गया है कि मीडिया केजरीवाल और AAP के विरुद्ध हो गई
पिछले वर्ष ही मानसून में केजरीवाल और AAP सरकार यमुना में पानी अधिक आने को लेकर हरियाणा को घेर रहे थे और मीडिया पूरी तरह से साथ दे रही थी। जिस प्रकार से अबकी बार जल संकट को लेकर मीडिया घेर रही है ऐसा पहले कभी नहीं देखने को मिला था। यद्यपि एक प्रत्यक्ष कारण दिखता है और वो है AAP का विज्ञापन बंद होना लेकिन यदि मुख्य कारण यही होता तो अच्छे से घेरती न। अन्य प्रकरणों में भी रहस्योद्घाटन करती क्योंकि मीडिया को तो सारे रहस्य ज्ञात हैं किन्तु ऐसा कुछ नहीं देखा जा रहा है।
यदि हम यह मान लें की मीडिया विज्ञापन मिलने (कमाई) के कारण ही दस वर्षों तक झेंपती रही थी, अव्यवस्था का साथ दे रही थी तब तो यह बहुत ही भयावह है।
- इसका तात्पर्य तो यह है कि मीडिया पैसे के लालच में जनता को भ्रमित करती रही।
- इसका तात्पर्य तो यह है कि मीडिया जयचंद की भूमिका निभाती है।
- खान मार्केट गैंग जो कहा जाता है उसकी सत्यता प्रतीत होती है।
- फिर दस वर्षों से दिल्ली में जो लूट और अव्यवस्था फैली है क्या मीडिया भी उसके लिये बराबर की भागीदार नहीं है ?
यह मानना कि केजरीवाल और AAP का विज्ञापन बंद हो गया मात्र इसीलिये दिल्ली जल संकट को पहली बार राष्ट्रव्यापी बनाया जा रहा है मात्र एक भ्रम होगा। एक छोटा कारण हो सकता है, संभव है कि मीडिया ने केजरीवाल को जेल से जाने से बचाने में अपेक्षित सहयोग नहीं किया हो इसलिये विज्ञापन बंद कर दिया गया और मीडिया को फिर से विज्ञापन चाहिये इसलिये एक तरह से दबाव बनाने का प्रयास कर रही हो।
विज्ञापन के लिये बिकने वाली मीडिया
आज यदि विज्ञापन नहीं मिलने के कारण ही जो मीडिया दस वर्षों तक गुणगान कर रही थी वही मीडिया टूट पड़ी है यदि यह सच है तब तो मीडिया का भी घृणित रूप उजागर हो रहा है। अभी मीडिया नहीं बिकी है इसका क्या प्रमाण हो सकता है ? यदि मीडिया विज्ञापन दाताओं के अनुसार ही सूचना भी देती है तो फिर उसे समाचार कैसे माना जा सकता है ?
यदि विज्ञापन के आधार पर ही मीडिया सूचना देती है अर्थात बिकती है तब विदेशी और देशविरोधी तत्वों के हाथों नहीं बिकी है यह कैसे सिद्ध हो सकता है, खरीददार तो वही होते हैं। देश के लिये काम करने वाले न तो बिकते हैं और न ही उन्हें कोई सहयोग करता है और न ही वो इस अपेक्षा से काम करते हैं।
यदि मीडिया ने यह नियम बना लिया है कि वो विज्ञापन के लिये बिकेगी तो देश के लिये यह हितकारक नहीं है देश के साथ छल है। यदि कमाई ही करनी हो तो और भी बहुत काम हैं मीडिया में जो बिकने वाले हैं उनको अन्य काम करना चाहिये। मीडिया को बिकाऊ नहीं होना चाहिये यदि मीडिया बिकती है तो यह देश के साथ छल है और अपराध घोषित होना चाहिये और कठोर दण्ड का प्रावधान होना चाहिये।
पाप और प्रायश्चित्त
एक बार को ऐसा हो सकता है कि मीडिया को पापबोध हो गया हो और ऐसा डिबेटों में AAP प्रवक्ता को वक्तव्यों से भी प्रकट होता है। पापबोध होने के कारण प्रायश्चित्त करने लगी हो ऐसा एक बार को हो सकता है। किन्तु यदि यही बात है तो प्रायश्चित्त की यह विधि है ही नहीं की स्वयं निर्णय कर लें। प्रायश्चित्त का निर्धारण श्रेष्ठ और गुरुजन करते है तब किया जाता है। जिससे पाप हुआ हो उसे अपने पाप की घोषणा करनी चाहिये। मीडिया को सार्वजनिक रूप से क्षमायाचना करनी चाहिये थी और ये वचन देना चाहिये था कि आगे ऐसा कोई पाप नहीं करेगी।
यदि पाप का प्रायश्चित्त ही करना है तो क्षमायाचना के बाद और रहस्योद्घाटन करे न। मीडिया को तो सबके सभी रहस्य ज्ञात होते हैं, किसी का कोई रहस्योद्घाटन नहीं देखने को मिल रहा है। यदि मीडिया वास्तव में प्रायश्चित्त करना ही चाहती है तो वो रहस्योद्घाटन अवश्य ही करना चाहिये जिसके लिये पाप हुये थे। वो रहस्य किसी का भी हो उजागर होना चाहिये। सबके रहस्य बिना भेद-भाव और बिना भय के मीडिया उजागर करे तो ही प्रायश्चित्त हो सकता है।
कहीं कोई नया रहस्य तो नहीं है
मीडिया के पुराने चरित्र को देखते हुये यह विश्वास कर पाना कि सचमुच मीडिया जनता के पक्ष में है और केजरीवाल की AAP सरकार को घेर रही है, बहुत ही कठिन है। हाँ ये अलग बात है कि कुछ गिने-चुने एंकर अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन मीडिया विश्वसनीय है यह देश नहीं मानने वाला है। इस प्रकरण में भी ऐसा लगता है कि को बड़ा रहस्य छुपाने के लिये जल संकट पर हल्ला कर रही है। संतुलन बिठाने के लिये NEET की परीक्षा को भी साथ में उठा रही है।
क्योंकि अभी एक-दो दिन पूर्व की ही घटना है कि PFI के कुछ सदस्यों की बन्धनमोचन याचिका को बॉम्बे उच्च न्यायालय ने निरस्त करते हुये 2047 तक देश को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की योजना का आधार बताया, लेकिन मीडिया ने इस विषय को छुआ भी नहीं। इस विषय को दबाने का प्रयास किया जबकि यह विषय सबसे गंभीर है। देश की सुरक्षा, संप्रभुता का विषय है इस पर तो राष्ट्रव्यापी विमर्श हर महीने होना चाहिये।
निरंतर हर सप्ताह लव जिहाद के कई मामले सामने आते ही रहते हैं, क्या मुख्य मीडिया कभी उसे उठाती है। ये तो गंभीर विषय है, बहुसंख्यकों में जागरूकता और अल्पसंख्यकों में नैतिकता जगाने के लिये इस विषय पर भी निरंतर प्रतिमास एक बार बड़ी बहस करना अपेक्षित है। यदि मीडिया अभी भी ऐसा नहीं कर रही है, लव जिहाद की घटनाओं को छुपाने का ही प्रयास कर रही है तो ऐसा क्यों नहीं माना जाय कि कारण कुछ और है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि PFI के खिलाफ प्रथम दृष्टया सबूत पुख्ता मिले हैं की ये संस्था भारत को इस्लामी देश बदलने में जुटी हुई थी
— 🇮🇳Jitendra pratap singh🇮🇳 (@jpsin1) June 13, 2024
पूर्व राष्ट्रपति हामिद अंसारी कई बार इस संस्था के कार्यक्रम में शिरकत करता था pic.twitter.com/Qd9ZAQRfLy
पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा जैसे ऐतिहासिक सत्य बनता जा रहा है उसी प्रकार मीडिया का मौन भी तो ऐतिहासिक ही है। पश्चिम बंगाल का चुनावी हिंसा, कुप्रशासन कभी मीडिया में स्वस्थ विमर्श का विषय बना है क्या ? क्या बंगाल का चुनावी हिंसा दिल्ली जल संकट की तुलना में गौण विषय है ?
गूढ़ रहस्य : अभी जल की कमी से जो चिंतित हैं कुछ ही दिनों बाद अधिक वर्षा होने पर जल की अधिकता से भी परेशान होने लगेंगे। अभी भीषण गर्मी में जिस सूर्य के ताप से अभी पीड़ा हो रही है ठंढ में उसी सूर्य के उगने की प्रतीक्षा की जायेगी। समय-समय की बात है, जिस केजरीवाल और AAP के लिये कभी मीडिया ढाल बनकर खड़ी रहती थी आज वही मीडिया प्रहार करने लगी है।
निष्कर्ष : कुल मिलाकर यदि कहें तो यह सही कारण प्रतीत नहीं होता कि विज्ञापन बंद होने के कारण ही मीडिया जल संकट को लेकर बरसने लगी है। और न ही ऐसा कुछ है कि मीडिया को पापबोध हो गया है और प्रायश्चित्त कर रही है। वास्तव में मीडिया कुछ न कुछ बड़े तथ्य को छुपा रही है और लोगों का ध्यान भटकाने का प्रयास कर रही है इस संदेह का किसी प्रकार से निवारण नहीं हो पा रहा है।
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