धड़े पड़े हैं ढेरों काम, कर नहीं सकते मतदान – Loksabha Election 2024
मीडिया भी जो हर बात पर दो फाड़ रहती है एकमत है, विपक्षी भी जो मोदी की हर बात का विरोध करती है इस विषय में पता नहीं क्यों मोदी के साथ हो गई और मोदी के सुर में सुर मिलाते हुये मतदान करने को कह रही है। अब उन लोगों का क्या होगा जो मतदान नहीं करना चाहते ?
जहां देखो, जिसे देखो हर कोई मतदान करने के लिये कह रहा है, कोई ये नहीं बता पा रहा है मतदान नहीं करना कितने साहस का काम है। ये एक ऐसा प्रश्न है गंभीरता पूर्वक जिसका विश्लेषण करना चाहये आखिर ऐसा क्या है कि हर विषय पर दो राजनीति हो, मीडिया हो, विधिवेत्ता हो अथवा कोई भी हो अलग-अलग मत रखते हैं किन्तु मतदान के विषय में एकमत क्यों हो जाते हैं।
मतदान नहीं करना
यह भी एक प्रश्न है कि वह क्या है जिसपर पक्ष-विपक्ष सभी एकमत हो जाते हैं और इसका उत्तर है मतदान। बेचारे जो कई कारणों से मतदान नहीं कर सकते कोई उत्तर भी नहीं दे पाते हैं, कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सकते। इनके पक्ष में कोई कुछ बोलने को तैयार ही नहीं होता है। अनेकों विषयों पर अधिकार की बात की जाती है, स्वतंत्रता की बात की जाती है किन्तु मतदान के समय स्वतंत्रता की बात नहीं की जाती। कौन विचार करेगा उनके विषय में जो मतदान नहीं करते हैं।
यदि मतदान करना अधिकार है तो मतदान नहीं करने का भी अधिकार स्वतः सिद्ध है न।
अधिकार और कर्त्तव्य
जब कभी भी बात अधिकार की होती है तो उसके साथ कर्त्तव्य को निश्चित रूप से जोड़कर देखा जाता है। हां कुछ लोग ऐसे अवश्य होते हैं जो अधिकार मात्र जताते हैं, कर्तव्य को दायित्व नहीं मानते, स्वैच्छिक मानते हैं और ऐसे ही लोग कुछ वर्षों से हाथ में संविधान लेकर अधिकार-अधिकार चिल्लाने लगे हैं, कभी भी इन लोगों को कर्तव्य की बात करते नहीं पाया जाता।
कर्त्तव्य पालन के लिये ही अधिकार की सिद्धि होती है, यदि कर्त्तव्यपालन न किया जाय तो अधिकार से भी मुक्ति का पात्र होता है। जैसे भोजन का अधिकार है तो भोजन की व्यवस्था करना कर्त्तव्य है, यदि भोजन की व्यवस्था न करे तो भोजन का अधिकार भी समाप्त हो जाता है। यदि दयावश अन्य कोई भोजन की व्यवस्था कर भी दे तो उसमें भोजन प्राप्त करने वाला अधिकार की सिद्धि नहीं कर सकता।
मताधिकार
मतदान करना अधिकार है, किन्तु इसके लिये की वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है फिर प्राप्ति होती है और मताधिकार का महत्व वो लोग समझते हैं जो मताधिकार का प्रयोग करना तो चाहते हैं किन्तु किसी न किसी कारण से कर नहीं पाते। इसमें उन लोगों को सम्मिलित नहीं समझा जाना चाहिये जो मतदान करना ही नहीं चाहते।
इसी प्रकार मतदान का महत्व उन देशों की जनता समझती है जहां लोकतंत्र नहीं हो, वो मताधिकार प्राप्ति हेतु संघर्ष करते हैं।
मत का यदि अधिकार प्राप्त है तो उसका प्रयोग करना कर्त्तव्य है, यदि इस कर्त्तव्य का पालन नहीं करते तो अपने अधिकार की क्षति स्वयं करते हैं। इसका दूसरा भाव यह भी है कि जो व्यक्ति मतदान के कर्त्तव्य का निर्वहन नहीं करता वह कर्त्तव्यविमुख व्यक्ति होता है, उसके अंदर कर्त्तव्यपरायणता का भाव नहीं होता है ।
लोकतंत्र और चुनाव
लोकतंत्र का तात्पर्य ही है कि सत्ता की शक्ति मूलरूप से जनता में निहित है और इसका प्रयोग करके जनता अपने अनुकूल सत्ता को निर्वाचित करती है। यदि जनता अपनी शक्ति का उपयोग न करे तो उससे लोकतंत्र की हानि होती है, लोकतंत्र विकृत होता है। सत्ता के लिये जनता अपनी मूलशक्ति मतदान का प्रयोग चुनाव के द्वारा ही करती है।
अराजक तत्व : अराजक तत्व भले ही प्रत्यक्ष रूप से जनता को मतदान करने के लिये कहते भी हों तथापि उनकी शक्ति अन्य अराजक तत्व ही होते हैं तथापि इनकी संख्या 10% से अधिक नहीं होती फिर भी ये 10% अराजक तत्व और 20-25% को प्रभावित करने की क्षमता भी रखते हैं अर्थात् यदि सामान्य जनता कम मतदान करे तो उस स्थिति में अधिक सम्भावना यही होती है कि अराजक तत्व सत्ता पर अधिकार कर लें । अराजक तत्व अन्य को प्रभावित भी तभी कर सकते हैं जब मतदान प्रतिशत कम हो, मतदान अधिक होने पर अराजक तत्व स्वतः निष्प्रभावी हो जाते हैं।
यदि मतदान 65% से अधिक हो तो अराजक तत्वों का मनोबल क्षीण हो जाता है और तब ये 10-15% को ही प्रभावित कर पाते हैं और इनका कुल प्रतिशत (प्रभावित मतों सहित) 15-20% तक ही हो सकता है । फिर भी इसे कम नहीं समझा जाना चाहिये। इनको निष्प्रभावी करने के लिये ये आवश्यक है कि मतदान का प्रतिशत 90 से अधिक करने का प्रयास करना चाहिये।
अराजक तत्व कई प्रकार से ऐसा प्रयास करते हैं कि मतदान कम हो। जैसे कई बार निर्वाचन आयोग की छवि धूमिल करने का प्रयास किया गया है। यदि निर्वाचन आयोग के प्रति जनता में अविश्वास उत्पन्न होगा तो वो मतदान से ही विमुख हो जाएगी। जनता स्वयं कोई आन्दोलन या विद्रोह नहीं करती, यदि जनता आक्रोशित हो जाये तो देश लूटने वाले नेताओं का अता-पता भी न मिले। जनता यदि आक्रोशित होती है तो वह सत्ता के प्रति नहीं अन्याय, अनीति, अत्याचार, अयोग्यता, अकर्मण्यता, भ्रष्टाचार आदि के विरुद्ध होती है।
आक्रोशित मतदान
कई बार जनता आक्रोशित मतदान भी करती है जो सामान्य से अधिक होती है और जिसे विश्लेषक सत्ता के विरुद्ध मतदान कहते हैं, इस विश्लेषण ने भी मतदान को प्रभावित किया है। मतदाताओं में एक ऐसा वर्ग बना दिया है जो मात्र सत्ता के विरुद्ध ही मतदान करेंगे अन्यथा मतदान ही नहीं करेंगे। जब तक सत्ता को पलटना न हो तब तक मतदान करेंगे ही नहीं।
ये दुर्भाग्यपूर्ण है और उन विश्लेषकों के लिये लज्जित करने वाली है। कोई भी विश्लेषक अपने विश्लेषण के दूरगामी प्रभाव को समझते हुए विश्लेषण करे ये आवश्यक होता है और एक बार को ऐसा भी प्रतीत होता है कि जान बूझकर ही ऐसा किया भी गया है।
सत्ता पलटने वाले मतदाता
सत्ता पलटने वाले मतदाता को भ्रमित किया गया है ये उन्हें समझाना होगा कि मात्र सत्ता पलटना उनका काम नहीं है यदि पलटी सत्ता से संतुष्ट हो तो उसपर पुनः मुहर लगाना भी आवश्यक होता है। यदि इस भ्रम में रहो कि तुम्हारे बिना सत्ता परिवर्तन नहीं हो सकता है तो ये भी समझाना होगा कि इस कारण सत्ता दुर्बलता को प्राप्त होगी और दुर्बल सत्ता उचित प्रकार से कार्य नहीं कर सकती जिसका परिणाम ये होगा कि फिर उसी सत्ता को पलट दोगे जिसे मुहर नहीं लगाया। मतदान प्रतिशत बढाने हेतु इनको लक्ष्य बनाकर भी कार्यक्रम करना चाहिये।
असमर्थ मतदाता
कुछ मतदाता ऐसे भी होते हैं जो असमर्थ होते हैं जैसे : जो अस्वस्थ होते हैं, जो किसी न किसी कारण अपने मतदान क्षेत्र में नहीं होते हैं, नई दुल्हन जो होती ससुराल में है किन्तु मतदान क्षेत्र नैहर (मायका) ही होता है। असमर्थ कहने का मूल भाव ये है कि ऐसे मतदाताओं को अलग से चिह्नित करते हुए बूथ उन तक कैसे पहुंचे इस दिशा में विचार करना चाहिये। वर्तमान में यह बताया जा रहा है कि मतदाता की कोई भी असमर्थता हो यदि वह मतदान नहीं करता है तो वह भी अनुचित कर रहा है किन्तु इसका समर्थन नहीं किया जा सकता।
विकास का लाभ प्राप्त करना उन मतदाताओं का भी अधिकार होना चाहिये जो असमर्थ हो। विकास के लाभ से तात्पर्य यही है कि जो मतदाता बूथ तक नहीं आ सकते बूथ उन तक पहुंच बनाये। उत्तम तो ये होगा कि बूथ लोगों के मोबाइल में पहुंच बनाये। विकास के नाम पर मेरी मांग ये है कि बूथ को मोबाइल तक पहुंचाया जाये । डिजिलॉकर जैसे वेब संसाधनो का प्रयोग करके यह सरलता से किया जा सकता है।
निर्वाचन आयोग की गरिमा
निर्वाचन आयोग की गरिमा पर प्रहार करने से मतदान प्रभावित होता है। इसलिये जो कोई भी निर्वाचन आयोग की गरिमा पर चोट करता हो उसके लिये कड़ी सजा का प्रावधान करना चाहिये। किसी भी त्रुटि, संशय का निवारण निर्वाचन आयोग से प्रत्यक्षतः करना चाहिये जो गोपनीय रूप से हो । किसी के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का तात्पर्य ये अधिकार नहीं हो कि उसे किसी के गरिमाहनन का भी अधिकार है।
दो दशकों से ऐसा देखा जा रहा है कि निर्वाचन आयोग के प्रति जनता में अविश्वास उत्पन्न करने का दुष्प्रयास किया जा रहा है और इसी उद्देश्य से निर्वाचन आयोग की शाख को ठेस पहुंचाने का प्रयास किया जाता है। आवश्यकता इस बात की है कि जो मतदाता बूथ तक नहीं पहुंच पाते बूथ को उन मतदाताओं तक पहुंचना चाहिये और अराजक तत्वों की इच्छा ये है कि पीछे जब बूथ लूटकर सत्ता प्राप्त किया जाता था फिर उसी दिशा में उल्टी चाल चलें । इसके लिये भरपूर प्रयास भी उन्होंने कर लिया है।
बहानेबाज मतदाता
यद्यपि ऐसा सिद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है जो 30-35% मतदाता मतदान नहीं करते वो सभी बहानेबाज मतदाता हैं और ये वर्तमान में सत्ता पक्ष (भाजपा) के विज्ञापन से स्पष्ट होता है, यह अनुचित है। आप अपनी विफलता छुपाने के लिये मतदाता को बहानेबाज नहीं कह सकते। आपकी विफलता यही है कि आपने मोबाइल में सब कुछ तो पहुंचाने का प्रयास किया है किन्तु बूथ नहीं पहुंचाया है।
यदि घर-घर मोदी हो सकता है तो घर-घर बूथ क्यों नहीं हो सकता। कंपनी के शेयरहोल्डर ऑनलाइन मतदान कर सकते हैं तो चुनाव का मतदान ऑनलाइन क्यों नहीं हो सकता? आपने पिछले दस वर्षों में भी ये उपलब्धि प्राप्त नहीं किया है और ये आपकी विफलता है विफलता है। हर जगह लाइन में लगने के चक्कर से जनता को आपने मुक्ति दिलाया तो मतदान के लिये लाइन में लगने का चक्कर क्यों नहीं खत्म किया ये आपकी विफलता है।
जिस जनता को बैंक में पैसा जमा-निकासी करने के लिये भी लाइन में खड़ा होना अपमानजनक लगता है आप उससे ये अपेक्षा कैसे कर सकते हैं कि मतदान करने के लिये वो लम्बी कतार में सम्मिलित होगा?
किन्तु भले ही सरकार की विफलता क्यों न हो अंततः गलती उस मतदाता की ही सिद्ध होती है कि आप अपने अहंकार के कारण कि मैं पंक्तिबद्ध नहीं हो सकता मतदान नहीं करेंगे ये कैसी देशभक्ति है। यदि देशभक्ति है तो 2 – 4 बार अहंकार का त्याग क्यों नहीं कर सकते?
काम का बोझ
कुछ मतदाता ऐसे भी होते हैं जो काम का बोझ बताते हैं, ऐसा करने वाले कोई अनुचित तर्क या कारण तो नहीं बताते। तथापि एक 5 वर्षों में कुल मिलाकर 5 से 10 घंटे यदि मतदान के अधिकार का प्रयोग करने हेतु आप नहीं दे सकते तो मतदान के अधिकार का भी त्याग कर दीजिए, सरकार से प्राप्त होने वाली सुविधाओं का भी त्याग कर दीजिए।
यदि आपने मात्र कोई एक लाभ भी प्राप्त किया है तो आप आजीवन के लिये ऋणी हैं और किसी भी परिस्थिति में आपको मतदान करना ही चाहिये। आपके लिये अधिकतम यही कहा जा सकता है कि बूथ आप तक पहुंचे इस दिशा में प्रयास हो, किन्तु जब तक बूथ की पहुंच आप तक नहीं होती तब तक आपका कर्तव्य है कि बूथ तक पहुंचें । अपने कर्तव्य का पालन करते हुये देश को एक अच्छी सरकार प्रदान करें ।
निष्कर्ष : विषय का अंतिम निष्कर्ष ये है कि मतदान केवल अधिकार ही नहीं कर्तव्य भी है। यदि मतदाता अपनी लोकतांत्रिक शक्ति का प्रयोग न करे तो अराजक तत्वों द्वारा सत्ता पर अधिकार स्थापित कर लिया जाता है। ऐसा न हो, लोकतंत्र को संबल प्रदान करने के यह प्रत्येक मतदाता का दायित्व है कि परिस्थिति जो भी हो देश को सही सत्ता मिले, अराजक तत्व अधिकार न कर लें इसके लिये अपने मतशक्ति का प्रयोग अवश्य करें।
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